मास रैपिड ट्रांसपोर्ट परियोजना अधर में, सरकार ना इधर की ना उधर की, 120 करोड़ बांट भी दिए बाकी के रोके

    किसानों का कहना है कि यही हाल गांव माजरा में प्रस्तावित एम्स का भी होगा, भ्रम में ना रहे लोग


रणघोष अपडेट. रेवाड़ी गुरुग्राम


गुरुग्राम– मानेसर– रेवाड़ी के लिए पिछले कुछ सालों से जमीनी तौर पर चल रही मास रैपिड ट्रांसपोर्ट  परियोजना को लेकर एक बड़ा खुलासा सामने आ रहा है। इसमें कितनी सच्चाई है आधिकारिक तौर पर सामने आनी बाकी है। इतना जरूर है कि इस परियोजना पर भी ग्रहण लग गया है। अधिकारियों की माने तो इस प्रोजेक्ट को आगे ले जाने का कोई फायदा नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर ऐसा ही करना था तो फिर इस परियोजना के तहत सरकार ने कुल मुआवजा 201 करोड़ 53 लाख 62 हजार 130 रुपए में से एचएसआईडीसी द्वारा 120 करोड़ रुपए की राशि भूस्वामियों को क्या सोचकर वितरित कर कर दी। अब उसकी किस तरीके से वापसी होगी यह देखने वाली बात होगी। तीन दिन पहले जिला राजस्व एवं भूमि अधिग्रहण कलैक्टर रेवाड़ी ने एचएसआईआईडीसी को 15 वां रिमाइंडर पत्र  भेजते हुए साफ लिखा है कि इस परियोजना के तहत 120 करोड़ रुपए प्राप्त हो चुके हैं जो भू स्वामियों को वितरित किए जा चुके है। बाकी 81 करोड़, 53 लाख, 62 हजार 130 रुपए को लेकर भू स्वामी समय समय पर डीआरओ कार्यालय में आकर अपनी अधिग्रहित भूमि की मुआवजा राशि की मांग करते आ रहे हैं। यह मुआवजा  अधिग्रहण की गई 7 कनाल 16 मरला जमीन को लेकर है।

 परियोजना की सफलता में संभावना कम,क्या इसलिए रोका बाकी मुआवजा

पिछले एक साल से जो बाकी मुआवजा रोका गया है उसकी वजह इस परियोजना की सफलता  पर संदेह होना है। हालांकि इस पर आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है लेकिन सूत्रों के मुताबिक यह मामला सीएम मनोहरलाल की संज्ञान में भी आ चुका है। अभी सरकार इस परियोजना को लेकर पूरी तरह से उलझन में हैं कि वह करें तो क्या करें।

 25 गांवों की बनी संघर्ष कमेटी में भी इस मुददे को रखा जाएगा

इस कमेटी के सदस्य पूर्व सरपचं सुमन कुमार रसगन ने कहा कि इस परियोजना के तहत जिन गांवों का मुआवजा रोका गया है वह हमारी संघर्ष कमेटी में आते हैं। हम साहबी नदी में गंदा पानी छोड़े जाने से उसके अस्तित्व को बचाने का संघर्ष कर रहे हैं। इसके साथ मुआवजा को लेकर संघर्ष कर रहे किसानों के साथ भी है। जल्द ही इस बारे में उपायुक्त को ज्ञापन सौंपा जाएगा।

 अगर यही काम करने का तरीका है तो माजरा एम्स का भी यही हाल होगा

किसानों ने कहा कि अगर मास रैपिड ट्रांसपोर्ट  परियोजना फेल होती है तो इसमें सरकार की सबसे बड़ी नाकामी है। इस परियोजना के आने से सैकड़ों लोगों की आजिविका बदल रही थी। जिनके व्यवसायिक प्रतिष्ठान अधिग्रहण आ रहे थे उन्होंने मुआवजा की उम्मीद में कहीं ओर जमीन ले ली। इस परियोजना के चलते साथ लगती जमीनों के रेटों में भी उछाल आया हुआ था। इस आधार पर तो गांव माजरा में प्रस्तावित एम्स का भी यहीं हश्र हो सकता है। ऐसा हो जाने से जनता का सरकार की योजनाओं पर भरोसा कम होगा।

केंद्रीय मंत्रियों से लेकर राज्य मंत्रियों तक पहुंचा यह मामला

मुआवजा को लेकर किसान कई माह से संघर्ष कर रहे थे। जिसके तहत उन्होंने  सीएम विंडो से लेकर राज्य के कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारीलाल, केंद्रीय मंत्र राव इंद्रजीत सिंह से लेकर भाजपा के सीनियर नेताओं को भी ज्ञापन सौंप चुके हैं। चार रोज पहले केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव को भी स्थिति से अवगत कराया गया।

कहीं गुमराह तो नहीं कर रहे अधिकारी

इस प्रोजेक्ट को लेकर सरकार एवं अधिकारी कुछ भी स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में यह शंका बनी हुई है कि सरकार इस परियोजना को लेकर आखिर किस निर्णय पर पहुंची है। भाजपा के नेता भी हैरान है कि वे चंडीगढ़ से संपर्क कर स्थिति का पता कर रहे हैं लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं आ रहा।

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