बेटे के इलाज के लिए प्लाट, जेवरात बेच दिए, गांव में भीख मांगी, दोस्त मदद में आए फिर भी बिल पूरा चाहिए
– इस घटना ने समाज में इंसान के अलग अलग चरित्र को सार्वजनिक कर दिया है। डॉक्टर्स इलाज के नाम पर शैतान बन जाते हैं। वे सारी हकीकत समझने के बावजूद इंसानियत को नोंचते हुए नजर नजर आते हैं।
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
मानवता- इंसानियत का अलग अलग चरित्र उजागर करती यह घटना समाज-राष्ट्र और सिस्टम चलाने वालों पर एक दाग लगाकर जा रही है। एक विधवा- मजदूर 50 वर्षीय महिला सड़क हादसे में गंभीर तौर पर घायल हुए अपने 30 वर्षीय होमगार्ड बेटे के इलाज के लिए पहले अपने घर के आभूषण उसके बाद घर का एक हिस्सा बेच डालती है। रेवाड़ी शहर के गढ़ी बोलनी रोड गंदे नाले पर स्थित एक प्राइवेट अस्पताल में इलाज करते डॉक्टरों की भूख शांत नहीं होती है तो वह इलाज के खर्च के लिए अपने गांव में कटोरा लेकर घर घर जाकर भीख मांगती है। पूरा गांव मदद में खड़ा हो जाता है। इतना सबकुछ होने के बावजूद डॉक्टरों का बिल बेहिसाब दौड़ता रहता है। किसी तरह बेटे की जिंदगी बच जाए महिला की मदद में 70 से ज्यादा होमगार्ड अपने वेतन से कुछ हिस्सा निकालकर इलाज का बिल भरते हैं। पीड़ितजन बार बार डॉक्टर्स से गुहार लगाते हैं कि वे उसे पीजीआई रोहतक रेफर कर दे। उनके पास अब देने को कुछ बचा नहीं है। डॉक्टरों का फिर भी दिल नहीं पसीजा। 5 लाख रुपए लेने के बाद भी उसकी हालत नाजुक बनी हुई है। अस्पताल प्रबंधन का दो टूक कहना है कि करीब दो लाख रुपए बकाया बिल जमा करा दो मरीज को डिस्चार्ज कर देंगे। अब यह महिला अपने शरीर के अंगों को बेचकर इलाज का बिल चुकाना चाहती है।
गांव कारौली, तहसील फरूर्खनगर, जिला गुरुग्राम की 50 वर्षीय विधवा मजदूर संतोष के साथ हुई यह घटना समाज पर एक कंलक है। इस घटना ने समाज में इंसान के अलग अलग चरित्र को सार्वजनिक कर दिया है। जिस डॉक्टर्स को धरती का भगवान मानकर मान सम्मान दिया जाता है वह इलाज के नाम पर शैतान बन जाते हैं। सारी हकीकत समझने के बावजूद इंसानियत को नोंच डालते नजर आते हैं। दूसरी तरफ देखिए होमगार्ड की नौकरी करने वाले युवा जिनका वेतनमान गुजारे लायक है वे अपने सहयोगी की मदद में सबकुछ करने को तैयार है। ये युवा इंसानियत और मानवता जीती जागती मिशाल बनकर सामने आए। एक मां के ममत्व को देखिए अपने इकलौते बेटे को बचाने के लिए सबकुछ कुर्बान करने के लिए तैयार हो गईं। गांव में घर घर जाकर मदद मांगी। अपना घर का टुकड़ा, छोटे मोटे सभी आभूषण तक बेच डाले। अब कुछ नहीं बचा तो अपने शरीर के अंगों को बेचने के लिए तैयार है बस उसका बेटा बच जाए।
एक साल पहले पोते को भी इलाज के अभाव में गवां चुकी है
इस परिवार के सदमें की कोई इंतहा नहीं है। सिर पर भारी चोट की वजह से अस्पताल में जिंदगी- मौत से लड़ रहे होमगार्ड मनोज का 8 साल का बेटा पिछले साल इलाज के अभाव में दम तोड़ गया था। हेली मंडी एक अस्पताल में उसका इलाज चल रहा था। प्लेट्स रेट कम होने पर डाक्टरों ने उसे गुरुग्राम ले जाने को कहा। उस समय उनके पास गाड़ी करने के पैसे तक भी नहीं थे। वे उसे घर ले आए ताकि इंतेजाम करने के बाद अस्पताल ले जाए। रात को ही उसने घर में ही दम तोड़ दिया। संतोष अब पोते की तरह अपने बेटे को इलाज के अभाव में नहीं खोना चाहती है। इसलिए वह अपने शरीर के अंगों को भी बेचने के लिए तैयार है
आइए जाने कैसे हुई यह घटना
3 नवंबर को मनोज कुमार फरीदाबाद यूनिवर्सिटी में होमगार्ड की डयूटी करके अपने साथी के साथ बाइक से घर लौट रहा था। तावडू सोहना रोड पर एक ट्रक ने टक्कर मार दी। इस घटना में मनोज गंभीर तौर पर घायल हो गया उसे तावडू के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। वहां से उसे रेवाड़ी शहर के गढ़ी बोलनी रोड, गंदे नाले पर स्थित निजी सुपरस्पेशिल्स्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज के नाम पर डॉक्टर्स भरोसा दिलाते रहे कि वह ठीक हो जाएगा। हर रोज 20 से 30 हजार रुपए खर्च हो रहे थे। 15 दिन पहले घायल मनोज के होमगार्ड दोस्तों ने कहा कि वे उसे रोहतक पीजीआई रेफर कर दे। डॉक्टरों ने कहा कि वे ज्यादा खर्चा नहीं होने देंगे यहां ठीक कर देंगे। जब इलाज के नाम पर सबकुछ बिक गया तो डॉक्टर्स अब करीब 2 लाख रुपए का बकाया बिल चुकाने पर नाजूक हालत में डिस्चार्ज करने के लिए तैयार है। 5 लाख से ज्यादा की राशि इलाज पर खर्च हो चुकी है।
सीएससी की लापरवाही से नहीं बन पाया आयुष्मान कार्ड
बीपीएल में आने के बाद भी संतोष देवी को सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल पाया। वह खुद अनपढ़ है और बेटा भी 8 वीं है। आयुष्मान कार्ड के लिए उसके कागजात जमा हो गए थे लेकिन बनाने वाले की कुछ गलतियों की वजह से अभी तक कार्ड नहीं बन पाया।
इतने कठोर- निर्दयी क्यों हो जाते हैं डॉक्टर्स
अपने दोस्त की जिंदगी बचाने के लिए मिशाल बने होमगार्ड राधे चौहान, दिनेश शर्मा, अनिल चौहान, बजरंग सिंह, मुन्नीलाल, धर्मेंद्र, सुरेंद्र, सतबीर, मुकेश कुमार, प्रदीप कुमार एवं राकेश कुमार ने कहा कि वे डॉक्टरों के पैरो में भी पड़ गए थे कि वे किसी तरह पीजीआई रोहतक के लिए रेफर कर दे। यह परिवार आर्थिक तौर पर टूट चुका है लेकिन अपने लालच में उसे भर्ती रखा। एक- दो दिन का नाम लेकर 26 से ज्यादा दिन निकाल दिए ओर स्थिति अभी नाजुक बनी हुई है।
विधि का विधान अस्पताल से घायल के जीजा की बाइक चोरी हो गईँ
विधि का विधान देखिए। घायल मनोज की बहन अपने पति लक्ष्मण के साथ बाइक से अस्पताल में आई थी। रात को देखभाल के लिए ठहर गई। सुबह देखा तो बाइक चोरी मिली। सीसीटीवी फुटेज में भी चोरी बाइक ले जाते नजर आए।
अब प्रशासन से ही मदद की उम्म्मीद
पीड़ित महिला और घायल के होमगार्ड दोस्त मदद के लिए एडीसी से मिले। एडीसी ने कहा कि हर संभव मदद की जाएगी।