यह लेख नहीं दैनिक रणघोष पाठकों का विजन है समय मिलते ही इसे जरूर पढ़े

नए साल हम उन सभी लोगों के लिए खड़े रहें जिनको हमारी जरूरत हो


-जिसके घर नहीं गए हो उसके घर जाओ,और ये सब इसलिए करो क्योंकि दुनिया लेनदार है और हम देनदार हैं।


रणघोष खास. पाठक की कलम से


महीनों का एक और सफर अपने पड़ाव पर पहुंच गया है। बीता साल 2021 जाते हुए फिर से हमें एक दर्जन महीनों का एक और गुच्छे का हाथ थमा गया। कैलेंडर बदल रहा है। नए साल 2022 ने दस्तक दे दी है। तो क्या वाकई सब नया हो जाएगा? लिबास बदलने से इंसान कहां नया हो जाता है! दरअसल, प्रकृति भी तब तक नई नहीं लगती है, जबतक कि वो अपने भीतर तह तक नहीं उतरती। गहरे उतरकर ही वो अपने नए तरु पल्लव को प्राप्त करती है। केवल मौसम से वसंत नहीं फबता, वो हवा में झूमते पेड़, पौधों की नई डालियों और पत्तों से ही खिलता है। नए वर्ष द्वार पर है। हम भी जरा अपने भीतर उतरे और तलाश करें कि वो क्या है जो हमें नया सोचने से रोकता है। हम बाहरी सजावटों में उलझकर जिंदगी को रसहीन क्यों बना रहे हैं। नए साल में प्रवेश से पहले चलते हैं पुराने सफर की ओर।

नए साल में क्या बदला? क्या छूटा?


साल के आखिरी महीने के अंतिम सप्ताह से हम गुजरते हुए इस साल को देखते हैं, तो कितना कुछ दिखता है, हम सभी ने कुछ नया करने की कितनी कोशिशें की हैं। सरकारों ने कागजों पर कितनी योजनाएं बनाईं, कुछ जमीन पर उतरीं और कुछ फाइलों में दबकर ही सफल हो गईं। हमने तमाम कोशिशें की हैं अपने जीवन को सफल बनाने के लिए, सत्ता ने कई प्रयास किए हैं इस देश की समस्याओं को दूर कर संवारने के लिए। अगर ये कोशिशें इस साल सफलता में तब्दील हो जाएंगी तो यह आता हुआ साल सच में नया हो जाएगा, लेकिन सफलता के लिए हम सभी को लगातार प्रयास करते रहने होंगे। जटिल समस्याओं पर बातचीत कर उसे सुलझाने के लिए कदम उठाने होंगे। देश के माहौल में घुल रही किसी भी नकारात्मकता को हमें मिलकर दूर करना होगा और उन लोगों से भी संवाद स्थापित करने के मौके बनाने होंगे, जिनके साथ हमने अपने संबधों के पूल मनभेदों से तोड़ दिए हैं। देश की सरकारें और हम सभी आने वाले साल में हर मोर्चे पर तभी सफल होंगे जब नफरतों के बीच संवाद स्थपित करेंगे। आपसी संवाद ही लोकतंत्र की खूबसूरती तय करता है। हमें अपने विचारों को बिना किसी पर थोपे एक दूसरे की परेशानियों के हल तलाशने होंगे। आपसी संवाद लोकतंत्र की आधारभूत शर्त है। भारत जैसे विभिन्न समाजों वाला देश सांस ही संवाद से लेता है। हम जितनी आपसी बातचीत करेंगे समस्याओं के निदान पर आसानी से पहुचेंगे। जितना संवाद करेंगे पास आएंगे, एक दूसरो की समस्याओं को समझेंगे और हल निकालने की कोशिश करेंगे। नए साल में हम जिनसे सहमत नहीं उन तक भरोसे का पुल बनाएंगे। संवाद के छोटे-छोटे रास्ते तलाशने का प्रयत्न करेंगे।

सारी शंकाओ का समाधान करना होगा


हम जिनसे सहमत नहीं उन तक भरोसे का पुल बनाएंगे। संवाद के छोटे-छोटे रास्ते तलाशने का प्रयत्न करेंगे। रिश्तों का सेतु विश्वास के सीमेंट पर टिका होता है। विचारों के एक नहीं होने से उसमें दरारे आती हैं, पर हमें मरम्मत के लिए तैयार रहना होगा। शंकाओं को मिटाकर नए आयाम स्थापित करने की कोशिश करने होंगे। हमें लगातार सभी से अपने रिश्ते मजबूत करने के लिए उनके करीब जाना होगा। हमें उन लोगों तक पहुंच संवाद स्थापित करने होंगे, जो अपनी संस्कृति के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं। देश की सत्ता को संवाद के सहारे पनपी कटूता को दूर करने के प्रयास करने होंगे। अलग अलग वजहों से मिल रहे सबके घावों पर मरहम लगाने की कोशिश करने होंगे। सत्ता को दिमाग पर जकड़ी जाति, धर्म और गोरे-काले के भेदभाव की जंजीर को तोड़कर सभी के लिए तरक्की के रास्ते को तैयार करना होगा। हम सभी को कर्कश आवाज में चिल्लाते धर्म के ठेकेदारों की दलीलों को नजरअंदाज कर अपने भविष्य को संवारने के लिए कार्य करने होंगे, क्योंकि इसके बिना हम कैलेंडर कितने भी बदल लें पर नया साल नहीं आएगा। विनोभा भावे कहते थे कि अब हम देश के रूप में इतने बड़े हो गए है। और इतने करीब आ गए हैं कि कामना भी करेंगे तो जय जगत की करेंगे। जगत की जय नहीं होगी तो भारत का जय संभव नहीं है। जगत की जय में ही हिंदुस्तान की जय समाहित है। वैसे ही इस देश के हर एक व्यक्ति की तरक्की में ही हमारी सफलता है।

 ऐसे ही 1932 के नए साल में महात्मा गांधी ने किसी को लिखा था-


देखता हूं कि नए साल में तुम क्या निश्चय करते हो, जिससे ना मिले हो, उससे मिलों, जिससे ना बोले हो उससे बोलो, जिसके घर नहीं गए हो उसके घर जाओ,और ये सब इसलिए करो क्योंकि दुनिया लेनदार है और हम देनदार हैं। चादर जैसे हमारे देश की बुनावट अनगिनत समाज की रेशम से हुई है। ये बुनावट बड़ी ही जटिल है, दिखती नहीं है पर सबको बांधे रखती है, लेकिन एक रेशम खींचों तो सब बिखर जाता है। इस नए साल हम उन सभी लोगों के लिए खड़े रहें जिनको हमारी जरूरत हो।

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