यह लेख सरकारी सिस्टम की असल तस्वीर पेश करता है जरूर पढ़े

मसानी बैराज में गंदा पानी छोड़कर  हजारों पक्षियों को मार चुका है जनस्वास्थ्य विभाग, वन विभाग ने कहा अब बर्दास्त नहीं


रणघोष खास.  सुभाष चौधरी की कलम से


जिस मसानी बैराज को सरकार टूरिज्म प्लेस बनाने की योजना को आगे बढ़ा रही है वहां अब कोई व्यक्ति दो मिनट खड़ा नहीं हो सकता। दिन रात गंदा पानी बिना ट्रीट कराए उसमें डाला जा रहा है। इस वजह से  हजारों पक्षियों का स्थानीय आशियाना खत्म हो चुका है और हर साल इतनी ही संख्या में आने वाले प्रवासी पक्षियों ने पिछले दो-तीन सालों से  आना छोड़ दिया है। जनस्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की यह छोटी सी नादानी ना केवल पर्यावरण एवं जीव जंतु के अस्तित्व पर सीधा आघात है साथ ही प्रकृति के भविष्य के लिए भी खतरनाक स्थिति पैदा कर रही है। गौर करिए जनस्वास्थ्य विभाग की तरफ से मजबूरी में इस बैराज में पानी नहीं डाला जा रहा है। इसके लिए अलग से ट्रीटमेंट प्लांट के तहत टेंडर तक मिला हुआ है। वन विभाग एवं सिंचाई विभाग के अधिकारी इस बारे में जनस्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से लगातार मीटिंग कर चुके हैं। पत्र भी लिख रहे हैं कि किसी तरह गंदे पानी को डालने से रोका जाए। उसे पहले ट्रीट कर छोड़ा जाए लेकिन मजाल कोई गंभीरता दिखाई हो। सोचिए जब सरकारी विभाग के अधिकारी एक दूसरे की गाइड लाइन का पालन नहीं कर रहे तो आम आदमी को फिर नैतिकता एवं तरह- तरह का पाठ क्यों पढ़ाया जाता है। अगर यह पानी कोई निजी कंपनी या व्यक्ति छोड़ता तो विभाग वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत पक्षियों की सुरक्षा के मद्देनजर अभी तक कोई बड़ा एक्शन ले चुका होता। यहां जनस्वास्थ्य विभाग पिछले दो सालों से बदस्तूर गंदा पानी सीधे डाल रहा है।

 हजारों पक्षियों का आशियाना खत्म किया, प्रवासी पक्षियों ने आना छोड़ा

जनस्वास्थ्य विभाग की इस घोर कोताही के चलते मसानी बैराज में हजारों स्थानीय पक्षियों का आशियाना खत्म हो चुका है। हजारों की संख्या में आने वाले प्रवासी पक्षियों ने अपना स्थान बदल लिया है। इसके लिए विभाग के अधिकारियों की जवाबदेही तय होनी चाहिए।

 एचएसआईडीसी ट्रीटमेंट प्लांट से सीखना चाहिए

जनस्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को बावल स्थित एचएसआईडीसी के ट्रीटमेंट प्लांट में आकर सीखना चाहिए। निजी कंपनियों से आने वाले दूषित एवं रासायनिक पानी को पहले ट्रीट किया जाता है और उसे निर्धारित खाली जमीन पर छोड़ा जाता है। यहां हजारों की संख्या में प्रवासी पक्षियों डेरा जमा लिया है। लोकल जीव जंतु एवं पक्षी भी अपना आशियाना बना चुके हैं। पर्यावरण एवं प्रकृति के प्रति एक समझदार सोच ने निजी कंपनियों के कद को ऊंचा कर दिया वहीं मसानी बैराज में स्थिति शर्म करने वाली बन गईं। हालांकि वन विभाग के अधिकारी लगातार चिंतित है ओर बार बार जनस्वास्थ्य विभाग को लिखित में आगाह कर रहे हैं अगर इस पानी से  इसी तरह पक्षियों की मौतें होती रही तो इसके लिए संबंधित विभाग, व्यक्ति या संस्था के खिलाफ विभाग वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत कार्रवाई करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।

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