रणघोष की चौपाल से जिला परिषद वार्ड एक के प्रत्याशियों का लेखा जोखा

कागजों में उम्मीदवार आर्थिक तौर पर बेहद कमजोर, हकीकत में रईसों वाली लाइफ स्टाइल 


रणघोष अपडेट. रेवाड़ी

 जिला परिषद सदस्य का चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार खुद के प्रति कितने ईमानदार है। इसका सच जानने का यह बेहतर अवसर है। नामाकंन के समय उम्मीदवारों ने अपनी चल- अचल संपत्ति का जो ब्यौरा प्रस्तुत किया है वह उनकी जमीनी हकीकत से कहीं मेल नहीं खा रहा है। मतदाताओं को यह समझना होगा कि जो प्रत्याशी नामाकंन भरते समय भी अपनी संपत्ति को लेकर चतुराई, झूठ या छिपाव करता है। जनप्रतिनिधि बनने के बाद क्या गारंटी है कि वह आपके प्रति ईमानदार रहेगा। रणघोष ने वार्ड नंबर एक से इसकी शुरूआत की है। कुल 9 प्रत्याशी मैदान में है। इसमें अधिकांश संपत्ति के मामले में बेहद साधारण परिवार से खुद को बता रहे हैं जबकि उनकी लाइफ स्टाइल, रहन सहन शान शौकत रईसों की तरह है।

उम्मीदवार अजीत के पास 5 हजार की नगदी एवं बैंक में 7 हजार रुपए जमा है। कृष्ण कुमार चल संपत्ति के तौर पर 21 लाख 65 हजार 135 रुपए के मालिक है। चंद्रदीप पुत्र सत्यपाल के पास केवल 10 हजार की नकदी है। इसके अलावा कुछ नहीं है। जगफूल सिंह व्यापार करते हैं। ये भी बेहद साधारण है। एक लाख रुपए की नगदी बताई है और बैंक में राशि 26 475 है। 10 हजार रुपए के आस पास के जेवरात है। जितेंद्र कुमार के पास 13 लाख 50 हजार की संपत्ति है। बिटटू कुमार के पास 20 हजार रुपए की नगदी है। विनोद कुमार के पास 2 लाख रुपए नगद और तीन लाख रुपए बैंक में जमा है। सुरेंद्र सिंह ने अपनी सम्मपति का विस्तृत ब्यौरा दिया है जिसमें उन्होंने अपनी कुल संपत्ति 33.26 रुपए बताई है। सुरेश कुमार यादव ने अपनी संपति में एक लाख 25 हजार रुपए की नगदी दिखाई है जबकि बैंक में महज 10 हजार रुपए जमा है।

 कागजों में साधारण परिवार से , लाइफ स्टाइल रईसों वाली

 जिस उम्म्मीदवार के पास केवल 10 हजार रुपए नगद है। वे कुछ माह पहले अपनी शादी में दुल्हन को हेलीकॉप्टर से लेकर आए थे  और लाखों रुपए विज्ञापन पर खर्च किए थे। उन पर यह राशि किसने खर्च की यह देखने वाली बात है। यह सार्वजनिक एवं मीडिया में प्रकाशित सूचना है। इसी तरह एक उम्म्मीदवार के पास एक से दो पेट्रोल पंप है। शानदार गाड़ी और घर है लेकिन नगदी के तौर पर मुश्किल से एक लाख रुपए के आस पास है। कुल मिलाकर जितने भी उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति का  ब्यौरा दिया है उसमें अधिकांश ने सरासर अपनी संपत्ति का 10 से 20 प्रतिशत दिखाया है जबकि कुछ ने 80 प्रतिशत सार्वजनिक किया है।

 अधिकारियों के लिए यह बेहतर अवसर

अधिकारियों के लिए यह बेहतर अवसर है कि वे नामाकंन में भरी संपत्ति को आधार बनाते हुए जमीनी स्तर पर इसकी जांच कर स्थिति को दूध का दूध पानी का पानी कर सकते हैं।

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