रणघोष की सीधी सपाट बात : टाइगर पकड़ते रहना, पहले मुझे कटड़े के 11 हजार चाहिए, नहीं मिलने पर मिशन फेल

रणघोष खास. सुभाष चौधरी

पिछले चार-पांच रोज से रेवाड़ी के कुछ गांवों में दहशत बना चुके टाइगर को लेकर छिपा हुआ सच सामने आया है जिसने सीधे तौर पर इंसानी मानसिकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बताया जा रहा है कि टाइगर को पकड़ने के लिए प्रशासन ने 11 हजार रुपए में कटड़ा खरीदा था। जिसका  मौका स्थल पर उपयोग भी किया  गया। बाद में कटड़ा के मालिक ने तुरंत पैसा नहीं मिलने पर कटडा वापस ले लिया ओर प्रशासन का मिशन अधूरा रह गया। वन अधिकारियों ने पशु पालक को भरोसा दिलाया था कि उसकी राशि उसे सरकारी सिस्टम के तहत मिल जाएगी। अभी टाइगर को पकड़ना है लेकिन वह नहीं माना ओर अपने पशु को वापस ले गया। इसी तरह टाइगर को पकड़ने के लिए जिन खेतों में जेसीबी चलाने से फसल का नुकसान हुआ उस खेतों के किसान भी अधिकारियों से तुरंत मुआवजा देने के लिए उलझ गए। जिस वजह से प्रशासन के मिशन झटका लगा। अधिकारियों का कहना है कि स्थानीय लोगों के इस व्यवहार से हमारे कर्मचारियों का मनोबल भी कम हुआ है जो अपनी जान पर खेलकर उसे पकड़ने में लगे हुए थे। इस तरह के मिशन में सभी का सहयोग बहुत जरूरी होता है। चार दिनों से ग्रामीणों में दहशत है हम प्रयास कर रहे हैँ। उसके बावजूद उनके इस रैवये से यह जानवर समय रहते काबू में नहीं आया। बता दें कि  यह टाइगर राजस्थान के सरिस्का वन क्षेत्र से भटकर जिले की सीमा से सटे गांव भठसाना के खेतों में प्रवेश कर गया था। सोमवार को भी उसकी तलाश जारी रही।  जिला प्रशासन ओर आस पास गांवों के ग्रामीण पूरी तरह से  मुस्तैद है। जान लेवा यह जानवर अभी तक तीन लोगों को घायल कर चुका है। टाइगर को पकड़ना इसलिए आसान नहीं है क्योंकि वह सरसों की खेत में छिपा हुआ है जिसका कलर उसके शरीर की त्वचा से मेल खाता है। टाइगर एक बड़ी बिल्ली की तरह होता है इसलिए वह अपने शरीर को इस कदर छिपा लेता है कि इंसान भी पास होने पर  गच्चा खा जाए। उसके पंजे व जबड़ो में गजब की ताकत होती है। उसकी दहाड़  से ही कंपकंपी आ जाती है।  इसलिए उसे इंजेक्शन लगाकर बेहोश करके ही काबू पाया जा सकता है।अधिकारियों को अंदेशा है कि यह जानवर अब भठसाना से होता वापस वहीं उसी रास्ते से चला जाएगा जहां से वह आया था। यह जानवरों में खूबी होती है कि वह रास्ते पहचान लेते  हैं।

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