रणघोष की सीधी सपाट बात : शिक्षा के मंदिरों में बेहतर इंसान नहीं उत्पाद तैयार हो रहे हैं, इसलिए ऐसी घटनाएं होती रहेगी

शिक्षा के मंदिर कहलाए जाने वाले स्कूलों के सामने अब अपनी मर्यादा- पवित्रता को बचाए रखना सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। जब स्कूल में बेटियां ही शिक्षकों  की छाया में खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे तो समझ जाइए हम अपने पतन के करीब पहुंच गए हैं। इस तरह की घटनाएं एक बेटी, परिवार, शिक्षण संस्थान को आघात नहीं पहुंचाती है साथ ही समाज ओर राष्ट्र के नैतिक पतन का आधार भी बनती है। रेवाड़ी में स्कूल के एक शिक्षक की गलत हरकतों का खामियाजा मासूस बच्ची, उनके माता पिता के साथ साथ उन तमाम अभिभावक,  शिक्षक एवं स्कूल संचालकों को भुगतना पड़ रहा है जो दिन रात मेहनत करके परस्पर एक दूसरे के प्रति विश्वास कायम करते हैं। इन घटनाओं की मुख्य वजह भी सामने आ रही हैं। प्राइवेट स्कूल पूरी तरह बाजारवाद के रंग में रंग चुके हैं। इसलिए इन स्कूलों की उपलब्धियों में बच्चों का डॉक्टर्स, इंजीनियर, अधिकारी बनना तो शामिल है लेकिन इनके पास बच्चों को बेहतर इंसान बनाने का रिपोर्ट कार्ड नहीं है। यह कड़वा सच है कि स्कूलों में अब बेहतर इंसान से ज्यादा उन्हें शानदार प्रोडेक्ट बनाया जा रहा है जिसकी बाजार में अच्छी खासी बोली लग सके। माता-पिता भी यही चाहते हैं इसलिए तो जब बच्चे स्कूल से पढ़कर घर लौटते हैं तो उनसे यहीं पूछा जाता है कि टेस्ट में कितने नंबर आए, क्या होमवर्क दिया, नंबर कम आए तो क्यों आए। क्या कोई ऐसा अभिभावक है जो अपने बच्चों से यह पूछे कि आज दिन भर स्कूल में तुमने ऐसा कोई कार्य किया जिससे किसी के चेहरे पर मुस्कान आई हो। जरूरत पड़ने पर किसी की मदद की, स्कूल में आज सबसे अच्छी बात क्या रही। दुर्भाग्य से स्कूलों में बेहतर  इंसान बनने की संस्कृति  इस बाजारवाद की शिक्षा के सामने संघर्ष करती नजर आ रही है। क्या हम  मीडिया वालों का काम अब इस तरह की घटनाओं को अपने स्वार्थ के आइने से सनसनी, ब्रेकिंग न्यूज बनाकर प्रतिष्ठा को धूमिल करना  रह गया है या सबक लेकर उस जड़ तक पहुंचना जिसकी मनोवृति की वजह से इस तरह की घटनाए जन्म लेती हैं। याद रखिए डॉक्टर्स, इंजीनियर, अधिकारी, सरपंच, विधायक, सांसद, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, जज बनना आसान है लेकिन एक अच्छा इंसान बनना बहुत मुश्किल..। क्या ऐसा कोई स्कूल है  यह दावा कर सके कि उनके यहां बच्चे बेहतर इंसान बनकर निकले हैं।   

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