रणघोष की सीधी सपाट बात

विज्ञापनों में शिक्षक मदारी, डॉक्टर्स जादूगर नजर आते है, संभल कर रहिए  


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


इन दिनों समाचार पत्रों एवं चैनलों पर प्राइवेट स्कूलों एवं निजी अस्पतालों के प्रकाशित विज्ञापनों को गंभीरता पढ़िए एवं देखिए। बेहतर शिक्षा के नाम का डमरू बजाकर शिक्षक मदारी नजर आ रहा है। मदारी जिस तरह बंदरों से इंसानी हरकतें करवाकर तालियां बटोकर पैसे कमाता है। वहीं विज्ञापन की आड में यही अंदाज स्कूल संचालक कर रहे हैं।  इसी तरह बेहतर इलाज एवं सुविधा का हवाला देकर डॉक्टर्स जादूगर बनकर चमत्कार करने का दावा कर रहा है। इन डॉक्टरों का दावा है कि उनके अस्पताल में भर्ती होते ही मरीज की जिंदगी हमारे हाथों में सुरक्षित हो जाती है। इनके विज्ञापनों में इतना गजब का आत्मविश्वास नजर आता है मानो मरीजों की जिंदगी– मौत के नाम पर इनका यमराज से एंग्रीमेंट हो चुका है।  असल जीवन में मदारी- जादूगर की क्या हैसियत है यह बताने की जरूरत नहीं है।  विज्ञापन देना किसी भी व्यवसाय के फैलाव का आधार होता है बशर्ते वह ईमानदारी एवं मूल्यों की कसौटी पर खरा नजर आए। विशेषतौर से स्वास्थ्य एवं शिक्षा से जुड़े विज्ञापनों की अपनी मर्यादा होती है लेकिन पैसों की हवस में निजी अस्पताल, कोचिंग एवं स्कूल संचालक विज्ञापनों में तरह तरह के झूठ पर सच की पाॅलिस कर  किसी भी हद तक अपने पेशे की पवित्रता से दुराचार करने में पीछे नहीं हट रहे हैं। एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड, खुद को सर्वेष्ठ साबित करने की मानसिकता ने उन्हें अंधा बना दिया है। डॉक्टरों के लिए मरीज एवं इन शिक्षकों के लिए विद्यार्थी प्रोडेक्ट की तरह है जिसे अलग अलग नामों से बेचा एवं खरीदा जा रहा है। सोचिए क्या प्राइवेट अस्पतालों एवं स्कूलों में पढ़ने वाला प्रत्येक विद्यार्थी संपन्न परिवारों से हैं। अगर ऐसा सोचना सही है तो इनकी संख्या के आधार पर समाज में गरीबी ना के बराबर है। असल में ऐसा नहीं है। बेहद जरूरतमंद माता-पिता भी अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए जगह जगह खुली इन शानदार इमारतों में चल रही बाजारू शिक्षा की चपेट में आकर बहुत बड़ी ठगी का शिकार हो जाते हैं। इसका अहसास उन्हें दो-तीन साल बाद होता है जब वे कर्जदार हो जाते हैं ओर उनकी संतान घर बैठी नजर आती है। आप किसी भी स्कूल का विज्ञापन उठा लिजिए। सभी में नीट, आईआईटी, एनडीए, सैनिक- मिल्ट्री स्कूल में दाखिला कराने का ठेका लेते नजर आएंगे। कई हजारों की संख्या में विद्यार्थी हर साल राष्ट्रीय स्तर की इन परीक्षाओं में भाग लेते हैं। सफल एक हजार में 10 भी नहीं हो पाते हैं। नतीजा विद्यार्थी डिप्रेशन में जाने लगता है और माता –पिता कर्ज डूबकर टूटने लगता है। उधर अपने इस खेल में कामयाब स्कूल संचालक मोटी कमाई कर एक ओर नई इमारत खड़ी कर देते हैं और डॉक्टर्स करोड़ों की बेनाम जमीन खरीदकर एक ओर नया मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल खोलने की तैयारी में जुट जाते हैं। शहर के बिल्डर्स एवं प्रोपर्टी डीलरों के सबसे ज्यादा क्लाइंटस ही स्कूल संचालक एवं डॉक्टर्स है। नतीजा आज रेवाड़ी शहर में 150 से ज्यादा छोटे बड़े अस्पताल खुल चुके हैं और खुलते ही जा रहे हैं। इसी तरह गली- मोहल्लो यहां तक  की रिहायशी कालोनियों में कोचिंग सेंटर एवं स्कूलों भरमार नजर आ रही है। बच्चों को बचपन में जिस तरह टाफी देकर बहलाया व चुप करा दिया जाता था। स्कूल संचालक भी अब स्कालरशिप टेस्ट के नाम पर यह सब कर रहे हैं। बस किसी तरह विद्यार्थी उनके स्कूल में कदम रख दे। उसके बाद बिछे जाल में उसे इस कदर फांस लिया जाएगा कि वह भूल जाएगा कि वह शिक्षा के मंदिर में आया है या किसी कसाई घर में। यही हाल प्राइवेट अस्पतालों का है। जिस मरीज के परिवार की हालात गर्मी के समय कुलर लगाने की नहीं हो, मटका ही उसका फ्रिज हो। उसे इलाज के समय एसी की हवा एवं ठंडा पानी पीने की कीमत भी बेड चार्ज एवं अन्य सुविधा खर्च के नाम पर देनी पड़ती है। यह है हमारे धरती के भगवान। रणघोष सम्मानित पाठकों से अपील करता है कि वे भी अगर इस तरह की ठगी का शिकार हो चुके हैं तो अपने अनुभव मर्यादा में रहकर सांझा करें। हम उन्हें प्लेटफार्म देंगे। बेहतर सोच से ही बेहतर बदलाव आता है।

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