कोरोना आमजन के लिए वायरस है, नेता- अधिकारियों के लिए वीआईपी कूपन
रणघोष खास. सुभाष चौधरी की रिपोर्ट
मार्च 2020 में कोरोना एक डर था। 2021 में यह वायरस खौफ से ज्यादा अलग अलग अंदाज में मजाक नजर आ रहा है। देश के किसी कोने में कोई छोटा- बड़ा नेता भीड़ जुटाकर कुछ भी करें। कोरोना कुछ नहीं कहेगा। सिस्टम को चलाने वाले अधिकारियों के लिए भी कोरोना दोस्त की तरह है। इसलिए अधिकारी का मूड किया तो बाजार में गाड़ी लेकर पहुंच गए और मास्क नहीं पहनने की एवज में दनादन चालान काटकर कोरोना के प्रति अपनी दोस्ती का फर्ज निभा रहे हैं। देश का आम आदमी आज वैक्सीन से ज्यादा इस बात से सहमा हुआ है कि कोरोना किसी की हैसियत या चेहरा देखकर फैल रहा है या अपने स्वभाव के हिसाब से। वास्तव में यह वायरस है तो हमारा सिस्टम एक साथ एक ही नियम और जिम्मेदारी- जवाबदेही के साथ नजर क्यों नहीं आता। रोडवेज की बसों में कितने ही यात्री सफर करें चलेगा, नेता रैली करे कोई दिक्कत नहीं, अधिकारियों के कार्यालयों में किसी भी तरीके से रहे कोई धबराने वाली बात नहीं है लेकिन बाजार में दुकानदारों की दुकान पर आने वाली भीड़ अचानक कोरोना के फैलने की वजह नजर आती है। शादी के सीजन में जमकर धूम धड़ाका हुआ। यहां बच्चों को कोरोना ने कुछ नहीं कहा। जैसे ही शिक्षण संस्थानों में उन्हें भेजने की तैयारी चली अचानक कोरोना डराने लगा। सोशल डिस्टेंस शराब के ठेकों पर लगी कतार में नजर नहीं आता लेकिन जूस की रेहड़ी और दुकानों पर नजर आने वाली भीड़ कोरोना फैलने की वजह बनती है। बड़े धार्मिक स्थलों के लिए अच्छी खासी फीस के साथ ऑन लाइन बुकिंग कराने से कोरोना कुछ नहीं कहेगा। अपनी मर्जी से चले गए तो वायरस के फैलने का डर बना रहेगा। यहां सबसे बडा सवाल यह है कि जब पुलिस प्रशासन अधिकारियों के साथ मास्क नहीं पहनने पर आमजन का चालान करने में देर नहीं करती है तो उनकी आंखें हैसियत वाले नेताओं, असरदार लोगों की तरफ से जुटाई जा रही भीड़ को देखकर क्यों बंद हो जाती है। इस सवाल का ईमानदारी से जवाब मिलने पर ही कोरोना के लिए बनी वैक्सीन सही असर करेगी नहीं तो कोरोना को वीआईपी कूपन की तरह समझिए। जिसके पास है उसे कोरेाना कुछ नहीं कहेगा।