रणघोष की सीधी सपाट बात

जया किशोरी ने बेहतर इंसान बनने की कथा सुनाईं तो बरसात ने हमारी असलियत बता दी ..


    मत भूलिए सुंदरता प्रकृति से तय होती है ब्यूटी पार्लर से नहीं। सत्संग की सुगंध भावों से फैलती है हेलीकॉप्टर से बरसने वाले फूलों से नहीं।   


रणघोष खास. प्रदीप नारायण

रेवाड़ी शहर में कथा वाचक जया किशोरी की श्रीमद् भागवत जिस जोश- उत्साह एवं भव्यता के साथ शुरू हुई उतनी ही खामोशी के साथ संपन्न होकर वहीं चली गईं जहां किशोरी को पहुंचना था। यह आयोजन कई लिहाज से याद किया जाएगा। जिसने इसे कराने की जिम्मेदारी ली उनका कद इस कथा में पहुंची अनेक हस्तियों के बीच मान्यता प्राप्त पहचान पत्र बन गया। आयोजन में बेहतर व्यवस्था के नाम पर शुरू की गई पास की अनिवार्यता ने कथा में छिपे भाव को आम से खास बना दिया। मतलब इस कथा में आने वालों की पहचान भावना, आस्था से ना होकर जेब में पास की पहचान से तय की गईं। भागवत एक तरह से सत्संग है जिसका मतलब सत का संग है। दूसरे शब्दों में कहे तो यहां आकर छोटा- बड़ा, अमीर-गरीब, ऊंच- नीच की मानसिकता स्वत: खत्म होकर सम्मान के साथ समानता में समाहित हो जाती है।

जया किशोरी ने कथा के पहले दिन ही स्पष्ट कर दिया था कि वह कोई दिव्य शक्ति, साधु या संत की संस्कृति से नहीं आईं। एक सांसारिक मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखती है। कथा वाचन उसका प्रोफेशन है। इसलिए उसे उसी दृष्टि से ही देखा जाए। किशोरी के ओज से निकले शब्द असरदार बनकर देशभर में एक पहचान के तौर पर स्थापित हो चुके हैं। इसलिए उसे सुनने ओर देखने वालों की भीड़ को देखते हुए आयोजकों ने पास की अनिवार्यता को व्यवस्था का बेहतर विकल्प समझा। उन्होंने इस आयोजन में आर्थिक सहयोग करने वालों को लिफाफे में वजन के हिसाब से सम्मान देते हुए कथा मंच के आस पास बने एक तरह के वीआईपी कल्चर में रखा ताकि कोई नाराज नहीं हो जाए। इतना ही नहीं आयोजकों ने सत्संग से सैकड़ों किमी दूर बैठी उन हस्तियों को भी बुलाया। जिसका मकसद यहां आकर पंडाल में अच्छी खासी भीड़ से निकलने वाले भावों को आयोजकों की ताकत मानकर आपसी संबंधी को सामाजिक और राजनीतिक तौर पर मजबूत करना था। इससे आयोजकों को भी अपना शक्तिप्रदर्शन दिखाने का बेहतर अवसर मिला और काफी हद तक वे यह बताने में सफल रहे कि संबंधों की भी अपनी दुनिया है।  जिसकी वजह से इस तरह के आयोजनों की भव्यता बनती है। राजभवन से गर्वनर का समय निकालकर आना अपने आप में विशेष बात रही। जहां तक किशोरी के मुख से बेहतर इंसान बनने के लिए निकल रही रस धारा (खुशी की धारा) को महसूस करने की बात है। उस पर पास से होने वाली एंट्री से मचे शोर ने बेअसर कर दिया। जो एक दिन सत्संग में आया वह घर आकर अगले दिन के लिए पास हासिल करने की मशक्कत में इधर उधर भटकता रहा। वह भूल गया कि किशोरी इसी भटकाव को खत्म करने के लिए हमारे बीच आई है। दूसरी तरफ दुनिया के किसी भी गुरुद्वारे में देखिए। यहां आगे पीछे बैठने के लिए वीआईपी कल्चर तो दूर बड़े बड़े वीआईपी को गुरुद्वारे में लोगों के झूठे बर्तन, व जूते साफ करते हुए देखा है। अगर इस कथा में सबसे अग्रणी पंक्ति में बैठने की होड़ रखने वाले मुख्य गेट पर खड़े होकर बाहर से आने वालों का स्वागत करते नजर आते तो यकीन मानिए श्रीमद भागवत कथा अपने आप ही खिलखिला उठती। सोचिए जिस आसमान से बरसने वाले पानी को देखकर प्रकृति, पशु पक्षी और इंसान खुशी के मारे झूम उठते हैं। सावन आने की खुशी मदहोश व आंनदित करती है। आज यही बरसात जमीन पर गिरते ही इंसान की मतलबी- स्वार्थी व मिलावटी हरकतों व मानसिकता के चलते बाढ़, मुसीबत व नालों में बहते गंदे पानी की शक्ल में तब्दील हो जाती है। मत भूलिए सुंदरता प्रकृति से तय होती है ब्यूटी पार्लर से नहीं। सत्संग की सुगंध भावों से फैलती है हेलीकॉप्टर से बरसने वालों से फूलों से नहीं।

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