रणघोष की सीधी सपाट बात:

आओ मोती चौक पर कोरोना- कोरोना खेले, माफ करना हे महामारी असली फसाद की जड़ हम खुद है..  


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


आखिर क्या हो गया है हमें। पिछले डेढ़ माह में लाखों की संख्या में लाशों को देखने के बाद भी हमारी मानसिकता ने सबक नहीं लिया है।  क्या सोचकर घर से बाहर निकलते हो कि चेहरे पर मास्क लगा लेने से, हाथों पर सेनेटाइज का छिड़काव करने से या वैक्सीन लगने से  कोरोना वायरस से बच जाओंगे। दिमाग में पनपे इन कुतर्कों को जितनी जल्दी हो सके निकाल दीजिए। बाजारों को सशर्त खुलने की इजाजत क्या मिली हम भेड़ियों की तरह बाजार में ऐसे टूट पड़े मानो घरों में रहकर जिंदगी मौत से लड़ रहे थे। हम कितनी आसानी से सोशल मीडिया पर अखबारों में सरकार- प्रशासन के खिलाफ जनहित मुद्दों पर हमला करते रहते हैं। बुधवार को रेवाड़ी शहर के मौती चौक का नजारा देख लिजिए। समझ में आ जाएगा कोरोना वायरस के फैलने की असल वजह क्या है। भीड़ से सटे बाजार को देखकर कोई कह सकता है कि कोरोना का खौफ है। एक तरफ तीसरी लहर के आने का डर सोने नहीं दे रही है। ऊपर से कुछ घंटों के लिए खुलने वाले बाजार में नजर आ रही भीड़ यह साबित करती है कि इस देश में रहने वालों की मानसिकता लाखों की संख्या में लाशों को देखने के बाद भी अगर नहीं बदलती है तो इन्हें शायद ही कोई बचा पाए। पता है कि मोती चौक शहर का सबसे व्यस्तम बाजार है। भेड़चाल की तरह झुंड बनाकर पहुंचने से पहले दिमाग का इस्तेमाल कर लेते की दो गज की दूरी इस वायरस से लड़ने के लिए कितनी जरूरी है। इस चौक पर बनी दुकानों में ऐसा क्या है जो शहर के बाहर खुली दुकानों में नहीं है। शहर के बाजारों के अंदर ऐसा क्या मिलता है जो गांव- या शहर के बाहर बनी दुकानों में नहीं मिलता हो। कुछ नहीं बस सबक नहीं लेना है। जब कोरोना पॉजीटिव हो जाए। गंभीर हालत में अस्पतालों में भर्ती होना पड़े ओर उस समय वेंटीलेटर या आक्सीजन नहीं मिले तो सोशल मीडिया पर भड़ास निकालना शुरू कर दो। सिस्टम व सरकार को जमकर गालियां दो अपनी जिम्मेदारियों को मत समझो। हमें शर्म क्यों नहीं आती कि मौजूदा हालात में समझदारी दिखाते हुए कुछ समय के लिए अपने आस पास की दुकानों से शॉपिंग कर लें। खुद के बचाव के लिए सभी वह सावधनियां बरतें ताकि घर लौटे तो खुद एवं परिवार के प्रति सुरक्षित महसूस करें। दुकानदार भाईयों इस मानसिकता से बाहर निकल आइए कि पास की दुकान में भीड़ ज्यादा है तो मै भी कोरोना को लेकर बने सुरक्षा चक्र को चंद लालच में तोड़ कर रख दू। ऐसा करने से पहले अपने परिवार के बारे में सोचिए जो घर से बाहर निकलते ही आपकी लगातार चिंता कर रहा है। कुल मिलाकर इस भीड़ को अपनी समझदारी और जिम्मेदारी से खत्म करिए। यहां प्रशासन ओर सरकार क्या करेगी। चालान करते है तो शोर मचाना शुरू कर देते हो। समझाते हैं तो बात समझ में नहीं आती। आखिर जिम्मेदार नागरिक होने का कोई तो प्रमाण पेश करिए।

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