रणघोष खास. कीर्ति दुबे बीबीसी से
गुरुवार को दो दिवसीय वर्चुअल कॉन्फ्रेंस ‘वॉयस ऑफ़ ग्लोबल साउथ’ के पहले दिन भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि दक्षिणी देशों के लिए दुनिया में अनिश्चितता का ख़तरा बना हुआ है. कोविड-19 ने अति-केंद्रीय वैश्विकरण (सेंट्रलाइज़ ग्लोबलाइज़ेशन) के ख़तरे और कमज़ोर सप्लाई-चेन की परेशानी को उजागर किया है. जयशंकर ने चीन की ओर इशारा करते हुए कहा कि विकासशील देशों को भी वैश्विकरण का विकेंद्रीकरण (डिसेंट्रलाइज़ेशन ऑफ़ ग्लोबलाइज़ेशन) करना चाहिए ताकि दूसरे विकासशील देशों को बेहतर मौके मिल सकें. इसके लिए लोकलाइज़ेशन की ज़रूरत होगी, बेहतर कनेक्टिविटी की ज़रूरत होगी और सप्लाई चेन के नेटवर्क को फिर से तैयार करने की ज़रूरत है. चीन पर ये आरोप पश्चिमी देश लगाते रहे हैं कि वह अपनी ‘कर्ज़ देने की नीति’ से विकासशील देशों को कर्ज़ के दलदल में इतना ढकेल देता है कि वह देश चीन के दबाव में आ जाता है. हालांकि चीन इस तरह के आरोपों को ख़ारिज करता रहा है.
चीन कम आय वाले देशों को कितना कर्ज़ देता है?
चीन दुनिया का सबसे ज़्यादा कर्ज़ देने वाला देश है. मध्यम आय और कम आय वाले देशों को कर्ज़ देने के मामले में बीते 10 साल में चीन तीन गुनी रफ़्तार से आगे बढ़ा है. और साल 2020 तक चीन ने दुनिया के तमाम देशों को 170 बिलियन डॉलर कर्ज़ दिया है. माना जाता है कि चीन की ओर से तमाम देशों को दिए गए कर्ज़ का आंकड़ा इससे कहीं ज़्यादा है.अमेरिका के विलियम एंड मैरी यूनिवर्सिटी स्थित रिसर्च लैब एडडेटा के अनुसार विकासशील देशों को चीन की ओर से दिया गया आधे से अधिक कर्ज़ आधिकारिक रूप से दर्ज ही नहीं किया जाता. इसे सरकारी बैलेंस शीट में नहीं लिखा जाता. कई बार चीन सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी या बैंक के ज़रिए कर्ज़ देता है ना कि सीधे सरकारों को देता है. एडडेटा के मुताबिक़ 40 से अधिक कम और मध्यम आय वाले देश हैं जिन पर ‘हिडेन डेटा’ को मिलाकर चीन का इतना कर्ज़ है जो वह उनकी कुल जीडीपी का 10 फ़ीसदी हिस्से के बराबर है.