लोभ, मोह, माया, काम आदि विकारों को त्याग कर कार्य करना ही वैराग्य है–आनंद मुनि

चरखी दादरी: वैराग्य का बहुधा अर्थ हममें से सन्यास को समझते है, लेकिन इसका विस्तृत रूप अगर हमे जानना व समझना है तो प्रभू भक्ति का मार्ग इसके लिए श्रेष्ठ है। हमारी संस्कृति सिखाती है कि जब हम इस संसार के भौतिक पदार्थो को तुच्छ समझ कर सर्व जीव कल्याण मार्ग पर चल समस्त मोह को त्याग देते है तो वह वैराग्य का ही एक रूप होता है। अर्थात संसार में रहते हुए भी बिना किसी सन्यास के अपने हृदय कें अंतर से लोभ, मोह, माया, काम आदि विकारों को त्याग कर कार्य करना ही वैराग्य है। यह बात आज स्थानीय छोटी बजारी स्थित जैन स्थानक परिसर में धर्म चर्चा के दौरान उपिस्थत श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उप प्रवर्तक महाश्रमण पंडित रतन आनंद मुनि जी महाराज साहब व प्रवचन दिवाकर दीपेश मुनि ने कही महासाध्वी शक्ति प्रभा जी की शिष्य अक्षिता रक्षिता ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज जिस‌ तरह से समाज के युवाओं में भटकाव के लक्ष्ण दिखाई दे रहे हैं वह एक नकारात्मक वातावरण का निर्माण करते हैं। इसके लिए युवाओं को अध्यात्म का सहारा लेते हुए अपने अंतर की गलत धारणा को बदलने की परम आवश्यकता है। यह मार्ग केवल अहिंसा व दया के मार्ग पर चलते हुए ही पाया जा सकता है, इसे अपने जीवन में उतारना ही प्रभू भक्ति है। प्रवचन दिवाकर दीपेश मुनि ने बताया कि आज वीरवार को समाधि स्थल पर गुरुओं की आरती व प्रभावना का वितरण होगा प्रभावना इंद्र जैन के परिवार द्वारा वितरित की जाएगी और आगामी 6 फरवरी को साध्वी अक्षिता रक्षिता के 18 में दीक्षा दिवस पर अनेक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा इसी कड़ी में 6 फरवरी को इकासना दिवस मनाया जाएगा जिसमें जैन समाज के सदस्यों द्वारा इकासना रखा जाएगा और 7 फरवरी को अनेकों धार्मिक कार्यक्रम होंगे और दीक्षा गुणगान दिवस मनाया जाएगा

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