शख्सियत: जीवन शास्त्र को समझना है तो डॉ. सूरत सिंह से मुलाकात जरूरी है..

यहां कानून की धाराएं- धर्म- संस्कार- संस्कृति एक थाली में बैठकर भोजन करते हैं


IMG-20221214-WA0006[1]रणघोष खास. प्रदीप नारायण

डॉ. सूरत सिंह पर लिखने से पहले शब्दों से सहमति लेना जरूरी है। वजह भी वाजिब है। जो शख्स वर्ल्ड की टॉप यूनिवर्सिटी हॉर्वर्ड और ऑक्सफोर्ड में कानून की पढ़ाई करने के बाद भगवान सत्यनारायण व्रत की बात करें तो कानून की धाराओं  वाले शब्दों का परेशान होना वाजिब हैँ कि अब उनका क्या होगा। माता-पिता के संस्कार- वाले शब्द जो अभी तक अंग्रेजी की सुनामी से घबराकर दिमाग के  किसी कोने में दुबके बैठे थे एकाएक व्रत की बात सुनकर जोश में बाहर आकर इतराने लगते हैं। शब्दों की इस अलग अलग बिरादरी में झगड़ा नहीं हो जाए डॉ. सूरत सिंह झट समझदारी दिखाते हुए संस्कृत को बीच में लेकर श्रीमद् भगवत गीता का श्लोक सुनाकर विवाद को शांत करा देते हैं। लिहाजा उनकी अभिव्यक्ति व भाव सार में तीनों भाषाओं का सम्मान बना रहता है। शब्दों को एकजुट रखने के बाद  किसी तरह यह शख्स जब इंसानी समाज में अलग अलग स्टेटस वाली दुनिया में घूमना शुरू कर देता है तो यहां हालात बेकाबू नजर आते हैं। अलग अलग टुकड़ों में बंटी मनोस्थिति उस पर हावी होना शुरू कर देती है। कोई उन्हें हॉर्वर्ड ला स्कूल में साथ पढ़े अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा के परम मित्र की नजर से देखता तो अधिवक्ता साथी कॉरर्पोरेट एवं व्यवसायिक मामलों में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अच्छे जानकार। 1997 में दिल्ली के सीएम साहिब सिंह वर्मा उन्हें प्रख्यात न्यायवादी पुरस्कार से सम्मानित कर राजनीति समाज की विरासत बताना शुरू कर देते हैं। दो साल बाद ही राष्ट्रीय पर्यावरण विज्ञापन एकादमी  1999 में उन्हें सामाजिक वैज्ञानिक सम्मान से नवाजकर अपना होने का दावा कर देती है। यह शख्स इससे पहले कुछ समझ पाता 2001 में अंतर्राष्ट्रीय शिक्षकों का संगठन  उन्हें अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार से सम्मानित कर विश्व बिरादरी में अपना बना लेने का सबूत पेश कर डालते हैँ। भारत की इस शख्सियत पर कोई बाहरी ताकतें कब्जा नहीं कर ले 2011 में अमेरिकन इंडो फ्रेंडस ग्रुप भारत के मुख्य न्यायधीशों के साथ उन्हें द प्राइड ऑफ इंडिया अवार्ड 2011 से सम्मानित कर भारतीय होने के गर्व में नहला देती हैं। चारों तरफ अपना बना लेने की होड़ से बचने के लिए यह शख्स वापस अपनी जन्मभूमि रेवाड़ी (हरियाणा) को याद कर बचपन में मोंहल्ले की रामलीला में हनुमान जी के किए रोल को याद कर मुस्कराना शुरू कर देता है। नतीजा इंसानी खाल को धीरे धीरे खा रही मतलबी ओर मिलावटी जीवन शैली डॉ. सूरत सिंह को देखकर अपना रास्ता बदल लेती है। रविवार को रेवाड़ी में महर्षि नारद के जन्मोत्सव में बाइचांस मुख्य अतिथि बने विश्व स्तर के इस कानून विशेषज्ञ ने बोलना शुरू किया तो अंग्रेजी- संस्कृत  ओर हिंदी के शब्द सुपर स्टार के अंदाज में नजर आए। जिन्हें देख हाथों की तालियां भी अपने शहर के गुर्जरवाड़ा में बेहद ही साधारण परिवार में जन्में, पले पढ़े सूरत से डॉ. सूरत सिंह बने इस शख्सियत को इतना करीब देखकर खुशी के मारे हिलोरे मारती नजर आईं। इसलिए जीवन शास्त्र को समझना है तो डॉ. सूरत सिंह से किसी ना किसी बहाने मुलाकात जरूरी है।

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