सरकारी कंपनियों का हिस्सा बेचकर रुपये क्यों जुटा रही सरकार?

सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर पौने दो लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य है और साथ ही दो सरकारी बैंक, एक सरकारी जनरल इंश्योरेंस कंपनी, अनेक सड़कें, बंदरगाह, एयरपोर्ट, पावरग्रिड कॉर्पोरेशन की बिजली लाइनें, रेलवे लाइनें और डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बेचकर पैसे जुटाने का एलान भी किया गया है। सरकारी विभागों की खाली पड़ी ज़मीनों को बेचने के लिए एक एसपीवी बनाने का नया एलान भी है।


रणघोष खास. आलोक जोशी की रिपोर्ट


घाटे की फ़िक्र छोड़कर इस वक़्त सरकार को ख़र्च करना चाहिए। तमाम विद्वानों की यह बात तो वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मान ली है। उन्होंने इतनी हिम्मत दिखाई है कि चालू वित्तवर्ष में न सिर्फ़ सरकार का घाटा यानी फिस्कल डेफिसिट साढ़े नौ परसेंट पहुँचने की बात खुलकर कबूल की बल्कि यह भी बताया कि अभी इस साल ही अस्सी हज़ार करोड़ रुपए का क़र्ज़ और लेना पड़ेगा। कुल मिलाकर सरकार इस साल 18.48 लाख करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। कोरोना काल में यह कोई आश्चर्य भी नहीं है। ऐसी आशंका थी। हालाँकि ज़्यादातर विद्वान मान रहे थे और अंदाजा लगा रहे थे कि यह आँकड़ा सात से आठ परसेंट के बीच रह सकता है। लेकिन संशोधित अनुमान में यह साढ़े नौ परसेंट तक पहुँच चुका है। अगले साल जब बजट आएगा तब ही शायद पता चले कि बीते साल का घाटा दरअसल रहा कितना। हालाँकि यहाँ यह साफ़ करना ज़रूरी है कि वित्तमंत्री ने इस बार घाटे में वो घाटे भी शामिल करके दिखा दिए हैं जिन्हें अब तक सरकारें छिपाकर रखती थीं या जिन्हें बैलेंस शीट से बाहर रखा जाता था।कर्ज लेने की एक बड़ी वजह तो साफ़ है। कोरोना की वजह से आमदनी में आई तेज़ गिरावट। डायरेक्ट और इनडायरेक्ट दोनों ही तरह के टैक्स की वसूली में भारी गिरावट है। दूसरी तरफ़ कोरोना की वजह से सरकार का ख़र्च कम होने के बजाय बढ़ा ही है। बजट के बाद अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में निर्मला जी ने कहा भी – हर कोई मुझे सलाह दे रहा था कि प्लीज़ खर्च बढ़ाइए। और इसीलिए हमने ख़र्च किया, ख़र्च किया और ख़र्च किया! ऐसा न होता तो आपका सरकारी घाटा इस जगह तक नहीं पहुँच सकता था। और इसी तर्ज पर उन्होंने आगे की योजना भी बनाई है और अगले वित्तवर्ष में सरकारी घाटा जीडीपी के 6.8% पर पहुँचाने का लक्ष्य रखा है। इसके साथ उन्होंने हौसला बढ़ानेवाला एक एलान यह किया है कि अगले साल कैपिटल यानी ऐसी चीजों पर साढ़े पाँच लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा का ख़र्च होगा जिनसे सरकार के पास संपत्ति बनती है। यानी वो ख़र्च जो बेकार नहीं जाता, या वह रक़म जो इस साल सिर्फ़ ख़र्च हो जाती है आगे उससे कुछ मिलने की उम्मीद नहीं रहती।लेकिन निजी क्षेत्र को, बड़े क़ारोबारियों को या शेयर बाज़ार के खिलाड़ियों को बजट में जो चीज़ सबसे ज़्यादा पसंद आई वो वही है जिसपर बजट के दिन वित्तमंत्री की सबसे ज़्यादा आलोचना हुई और शायद आगे भी होती रहे। यह है सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर पौने दो लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य और साथ ही दो सरकारी बैंक, एक सरकारी जनरल इंश्योरेंस कंपनी, अनेक सड़कें, बंदरगाह, एयरपोर्ट, पावरग्रिड कॉर्पोरेशन की बिजली लाइनें, रेलवे लाइनें और डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बेचकर पैसे जुटाने का एलान। यही नहीं सरकारी विभागों की खाली पड़ी ज़मीनों को बेचने के लिए एक एसपीवी बनाने का नया एलान। विपक्षी पार्टियों और इस फ़ैसले के आलोचकों की जुबान में कहें तो सरकार ने बहुत बड़ी सेल लगाने का फ़ैसला किया है। लेकिन इसके बाद दो और एलान आए। सरकारी बैंकों में डूबे या डूबने की कगार पर पहुँचे कर्ज को खरीदकर ठिकाने लगाने के लिए एक सरकारी ऐसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी और इसी तरह एक ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी बनाने का फ़ैसला। बैंकिंग क़ारोबार के लिए इसका सीधा मतलब हुआ कि अब सरकारी बैंकों की बैलेंस शीट में जो भी उल्टे सीधे कर्ज चढ़े हुए हैं वो वहाँ से बाहर होकर इधर आ जाएँगे, यानी बैंकों के खातों की सफ़ाई हो जाएगी। और उसके बाद इन सरकारी बैंकों में से कोई दो बैंक बेचने की भी तैयारी है। नाम अभी सामने नहीं आए।

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