सिस्टम को डर है कि ओमिक्रोन हावी हो गया तो हमें कौन पूछेगा इसलिए काटो चालान, करो गिफ्तारी

कोरोना इसलिए मजबूत नजर आ रहा है कि वह छोटा- बड़ा, ऊंच- नीच, जाति- धर्म, ताकतवर- कमजोर, तेरा- मेरा, छल- कपट नहीं करता ओर ना ही ले देकर मामला निपटाता है। जबकि हमारे सिस्टम की असली खुराक ही यही है।


-देसी पत्रकार धरमु- करमु व डॉ. बल्हारा भाईयों की गिरफ्तारी यह बताने के लिए काफी है।


Danke Ki Chot par logoरणघोष खास. प्रदीप नारायण


देश में मतलबी मिजाज से बने सिस्टम की असलियत को समझने के लिए उल्टा चलना पड़ेगा। विश्व यात्रा के दौरान भारत पहुंचे कोरोना परिवार के सदस्य ओमिक्रोन ने अपने रैवये में कोई तब्दीली नहीं की है। उसे पता है कि भारत के सिस्टम में  बेहतरी के नाम पर संडाध के अलावा कुछ नहीं बचा है। इसलिए उसने सबसे पहले सिस्टम की औकात बता दी। पक्ष- विपक्ष के ताकतवर नेता दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल, सांसद दीपेंद्र हुड्‌डा, पूर्व सीएम अखिलेश यादव समेत देशभर से सैकड़ों सांसद- विधायकों के शरीर में घुसकर उन्हें अकेले में आत्ममंथन करने के लिए छोड़ दिया। इससे पहले 2020 में कोरोना देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, गृह मंत्री अमित शाह, हरियाणा सीएम मनोहरलाल, हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज समेत हजारों छोटे- बड़े नेता- अधिकारियों को अपनी चपेट में लेकर सिस्टम की बात करने वालों को आइना दिखा चुका है। कोई भ्रम में नहीं रहे इसलिए अपने कहर से उसने कईओं की शहादत ले ली। यहां सवाल उठता है कि सबक क्या लिया। गंभीरता से सोचिए जिस ओहदेदारों की सुरक्षा में बाहर की हवा भी अपनी मर्जी से अंदर नहीं जा सकती वहां कोरोना उनके शरीर में कैसे पहुंच गया। कोई बताने वाला नहीं है कि देश के सिस्टम में हर लिहाज से ताकतवर इन नेताओं को यह वायरस आसानी से कैसे अपनी चपेट में ले लेता है। कोरोना कहर के बीच क्या कोई बिना मास्क, सोशल डिस्टेंस, सेनेटाइज हुए अमित शाह जैसे देश की सबसे ताकतवर हस्ती से मिलकर उन्हें संक्रमित कर सकता है। बजाय इस स्थिति साफ करने के हमारा सिस्टम इस वायरस को रोकने के लिए सड़कों पर चालान, लाठीचार्ज समेत अनेक पाबंदियों की शक्ल में दौड़ता नजर आ रहा है। समय पर ऐसे अनगिनत सवालों का सही जवाब नहीं मिलने पर  देश की सोचने समझने की शक्ति कमजोर हो चुकी है। समझ में नहीं आ रहा जिन्हें हम छोटे- बड़े चुनाव में चौकीदार बनाकर भेजते हैं। वे चोरों को पकड़ रहे हैं या उन्हें आसानी से चोरी करने की ट्रेनिंग दे रहे हैं। मौजूदा हालात में देश की आम जनता ओमिक्रोन वायरस से ज्यादा हमारे सिस्टम के तौर तरीकों से ज्यादा सहमी हुई है। पक्ष- विपक्ष के नेता भीड़ जुटाकर कुछ भी करें चलेगा, एक आम आदमी अकेले बिना मास्क नजर आ जाए तो पुलिस वाले ऐसे टूट पड़ेंगे मानो असली वायरस को पकड़ लिया हो जिस पर करोड़ों रुपए का ईनाम रखा हुआ था। चंडीगढ़ में देसी पत्रकार करमु- धरमू व डॉ. देवेंद्र बल्हारा- डॉ.अजय बल्हारा की मास्क नहीं पहनने पर हुई गिरफ्तारी पर मचे बवाल ने एक साथ कई सवाल खड़े किए हुए हैं। पुलिस की कार्रवाई से ऐसे लग रहा है कि उन्होंने कोरोना फैलाने वाले मास्टर माइंड सरगनाओं को पकड़कर नए साल पर देश को सबसे बड़ा तोहफा दिया है। इस तरह के मसलों को सलीके से निपटाया जा सकता था। किसान आंदोलन के मसले से भी किसी ने सबक नही लिया। ऐसा लग रहा है कि हमारा सिस्टम यह साबित करने में लगा हुआ है कि अगर ओमिक्रान सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो गया तो पुलिस के डर की हैसियत ही खत्म हो जाएगी। इसलिए जंग इस बात की छिड़ी हुई है कि सबसे ज्यादा खतरनाक कौन है हमारा सिस्टम या वायरस। कोरोना इसलिए मजबूत नजर आ रहा है कि वह छोटा- बड़ा, ऊंच- नीच, जाति- धर्म, ताकतवर- कमजोर, तेरा- मेरा, छल- कपट नहीं करता ओर ना ही ले देकर मामला निपटाता है। जबकि हमारे सिस्टम की असली खुराक ही यही है। ओमिक्रोन को पूरा भरोसा है कि उसके काम करने का तौर तरीका पाक साफ एक है इसलिए वह एक बार फिर  अपने मंसूबे में आसानी से सफल हो जाएगा। जब वह अमेरिका- चीन- जैसों की अकड़ ठीक कर सकता है तो हम भारतीयों की क्या औकात है। सोचिए जिस देश- प्रदेश के मुखिया बिना मास्क के दोपहर में बड़ी रैलियां, कार्यक्रम करते हैं। उसके एक घंटे बाद ओमिक्रोन वायरस को कंट्रोल करने के लिए बुलाई गई आपातकालीन मीटिंग में कुछ अधिकारियों के साथ मास्क पहने नजर आते हो।  मंथन करिए रात को जब लोग गहरी नींद में होते हैं, बाजार- सड़के सुनसान नजर आती है। उस समय वायरस को कंट्रोल करने के लिए लॉकडाउन लगा दिया जाता है। सुबह होते ही जब भीड़ सड़कों पर नजर आने लगती हैं उस समय यहीं लॉकडाउन खत्म कर दिया जाता है। ऐसे में बताइए इस मानसिकता में कोरोना परिवार तांडव नहीं करेगा तो क्या फूल बरसाएगा। रणघोष के पाठक शुरूआत से ही यही कहते आ रहे हैं कि वायरस ईमानदार सोच से कंट्रोल में आएगा नाटकबाजी से नहीं।  यह सोच ऊपर से चलकर नीचे तक सीधी सपाट साथ पहुंचनी चाहिए। दुर्भाग्य से हो यह रहा है कि हमारा सिस्टम उसे नीचे से ऊपर ले जाने के लिए पागलों की तरह सड़कों पर चालान, लाठीचार्ज, गिरफ्तारी की शक्ल में दौड़ता नजर आ रहा है। देसी पत्रकार धरमु- करमु व डॉ. बल्हारा भाईयों की गिरफ्तारी यह बताने के लिए काफी है।

 

 

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