सीधी सपाट बात : प्राइवेट स्कूली बसों को 10 दिन की छूट या एक महीने की, आइए मौत से पूछते है..

सात साल पहले बनी पॉलिसी पर कोई अमल नहीं। इसलिए उसे रददी की टोकरी में डाल देना चाहिए। मासूमों की मौत पर दो मिनट का मौन धारण कर एक नई घटना का इंतजार करना चाहिए। हर घटना के बाद छूट चाहिए आखिर क्या साबित करना चाहते है..



रणघोष खास. सुभाष चौधरी

महेंद्रगढ़ के कनीना क्षेत्र में प्राइवेट स्कूली बस के  शराबी चालक की वजह  से हुए हादसे में छह मासूमों की हुई दर्दनाक मौत और 22 से ज्यादा घायलों के जख्म पर सिस्टम में बैठे लोग मरहम लगाने की बजाय उस पर  नमक  छिड़क रहे हैं। भविष्य में इस तरह के हादसे नहीं हो इसके लिए  चंडीगढ और जिला स्तर पर अधिकारियों की मीटिंग हो रही है। चंडीगढ़ से आदेश जारी हुआ की प्राइवेट स्कूलों को अपनी बसों  में खामिया दूर करने के लिए दस दिन का समय दिया जा रहा है  वही जिला स्तर पर  प्रशासन की तरफ  से एक महीने की छूट दिए जाने की बात कही जा रही  है। उधर  प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन बसों  को लेकर मिली छूट को अपनी संघर्ष की  जीत बता रहा है।  इस हिसाब से  मासूमों की मौत  के बाद माता पिता का ताउम्र  दर्द इनके लिए भददा मजाक है। एक के बाद एक हो रहे हादसों के बावजूद  सिस्टम में बैठे अधिकारियों ओर प्राइवेट स्कूल संचालकों की मानसिकता यह साबित कर रही है कि सरकारी सिस्टम की फाइलों में मौत कितनी सस्ती हो चुकी है।

आइए हरियाणा में  2016-17  में  सुरक्षित स्कूल वाहन  पालिसी पर नजर डालते हैं जिस पर अमल के नाम पर अभी तक अधिकारियों एवं निजी स्कूल संचालकों ने मासूमों की मौत पर चाय नाश्ता कर मीडिया में झूठी वाही वाही लूटी है। जब यह पॉलिसी बनाई जा रही थी उस समय भी स्कूली बस चालकों की लापरवाही से मासूमों की जिंदगी छिनने का खेल जारी था। उस समय तय हुआ की भविष्य इस तरह की घटनाए नहीं हो इसके लिए इस पॉलिसी पर अमल जरूरी है। पॉलिसी के चार बिंदुओं से समझ जाएंगे हमारे सिस्टम को हादसे में बहने वाला खून कितना पसंद है। इसलिए वह हर बार हादसों के बाद ही जागता है।   

  1. इस पॉलिसी के तहत एक उप जिला स्तरीय समिति का गठन किया गया था जिसमे सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (चेयरमैन ) ,पुलिस के डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ,उपमंडल शिक्षा अधिकारी ,रीजनल ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के नामित सदस्य ,व हरियाणा रोडवेज के नामित सदस्य को शामिल किया गया था। आरभ मैं इन्हे कार्य सौपा गया था की ये तीन महीने मैं एक बार एकजुट होकर स्कूल वाहनों की जांच करेंगे। यह जांच इस प्रकार करेंगे की प्रत्येक स्कूल की प्रत्येक बस की वर्ष मैं एक बार जांच अनिवार्य रूप से हो सके जिसे बाद में बदलकर तीन माह से एक माह कर दिया गया था। कागजों में भी यह मीटिंग कितनी बार हुई इसका कोई रिकार्ड नहीं है। यदि अब बसों में कमिया मिल रही है तो संबंधित अधिकारी या यह प्राधिकरण जिम्मेवार क्यों नहीं ?
  2. प्राधिकरण पीटीजेड कैमरा स्थापित करने पर जोर नहीं देगा, लेकिन वाहनों का निरीक्षण करेगा ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या सीसीटीवी कैमरा स्थापित किया गया है और सीसीटीवी कैमरे द्वारा उत्पन्न डेटा के कब्जे वाले प्राधिकारी का भी पता लगाएगा, इस पर अभी तक कुछ नहीं हुआ।

 

  1. अतिरिक्त परिवहन कमिश्नर के जारी पत्र के  अनुसार बसों में आईपी कैमरा 15 दिन की रिकॉर्डिंग के साथ और DVR CCTV  तीन महीने की रिकॉर्डिंग बैकअप के साथ उपलब्ध होंगे। पूरी बस 6 मीटर तक की मे एक कैमरा और इस से अधिक मे दो कैमरा होंगे। किसी भी एक स्कूल के पास यह व्यवस्था नहीं है।  

 

  1. सुरक्षित स्कूल वाहन  पालिसी के तहत स्कूल बसों मे स्पीड कंट्रोलर का होना आवश्यक है। बस की स्पीड 50 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक नहीं होनी चाहिए। यहा कुछ बस चालकों ने चालाकी भी की है जो कभी कभार पकड़ी गई। स्पीडोमीटर को संचालित करने के लिए ऐसे नट लगाए हुए है जिनसे रफ़्तार को हाथ से ही एडजस्ट किया जा सकता है।

 

 पॉलिसी को कायदे से रददी की टोकरी में डाल देना चाहिए

कुल मिलाकर कनीना में बस पलटने से मासूमों की जिदंगी छिनने वालों में सिस्टम  पूरी तरह से जिम्मेदार है। इस पर गंभीरता से एक्शन लेना होगा नहीं तो इस तरह की पॉलिसी को रददी की टोकरी में डाल देना चाहिए और मासूमों की मौत पर दो मिनट का मौन धारण कर एक नई घटना का इंतजार करना चाहिए। हर घटना के बाद छूट चाहिए आखिर क्या साबित करना चाहते है..