हनुमान मंदिर में छिपा अर्थ तंत्र सार्वजनिक होना चाहिए तभी आस्था आशीर्वाद बनेगी

बड़ा तालाब हनुमान मंदिर


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


रेवाड़ी शहर में बड़ा तालाब स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर पिछले कुछ दिनों से अलग ही चर्चा बटोर रहा है। इसकी देख रेख का जिम्मा एक विशेष परिवार के दायरे से निकलकर ट्रस्ट के हाथों में देने को लेकर मच रहे शोर ने धर्म- कर्म ओर आस्था की आड़ में छिपे आर्थिक तंत्र को उजागर कर दिया है। जिसे समझना ओर जानना भी बहुत जरूरी है।
दरअसल धर्म कोई शब्द नहीं है जो आप अपना ले तो धार्मिक हो जाए। धर्म उन नीतियों की व्यवस्था है जो हमें एक श्रेष्ठ इंसान बनाती है, और जो इन नीतियों को अपनाता है वही धार्मिक कहलाता है। धार्मिक स्थानों पर पैसा चढ़ाना हमारे कर्म और वश में है लेकिन उसका उपयोग हमारे वश में नही है। इन तमाम पहुलओं को देखते हुए इस मंदिर में आने वाले चढ़ावे के उपयोग व इस्तेमाल पर अभी तक छिपे एवं दबे रहे सवालों ने अब खुलकर शोर मचाना शुरू कर दिया है। शहर के कुछ जागरूक नागरिकों ने मिलकर श्री हनुमान जी मंदिर ट्रस्ट गठित किया है। जिला प्रशासन को अवगत कराकर मंदिर की देख रेख के लिए प्रशासक नियुक्ति की मांग की जा रही है। यानि सरकारी जमीन पर बने इस मंदिर में चढ़ावे व अन्य शुर्भ मुहुर्त के नाम पर हर माह आने वाले हजारों- लाखों रुपए की राशि किसी व्यक्ति विशेष के पास जाने की बजाय ट्रस्ट में जमा होकर मंदिर की देखरेख एवं अन्य जनकल्याणकारी कार्यों पर खर्च होगी। अगर ऐसा होता है तो धर्म के क्षेत्र में यह बड़ा कदम होगा। इसके बाद शहर के अन्य मंदिर भी जो कई सालों से परिवार विशेष के अधीन रहे हैं वे उनके दायरे से आजाद हो जाएंगे। देखा जाए तो धार्मिक स्थलों पर आने वाले चढ़ावे को लेकर समय समय पर अलग अलग कारणों से विवाद एवं सवाल खड़े होते रहे हैं। जिस मंदिरों में अच्छा खासा चढ़ावा आता है वहां ट्रस्ट बनाने एवं नहीं बनाने को लेकर संघर्ष रहता है। जिन मंदिरों की आर्थिक स्थिति कमजोर है वहां ना तो पुजारी जाना पसंद करता है ओर ना हीं कोई ट्रस्ट बनाकर उसकी सुध लेना चाहता है। मतलब साफ है सारा खेल ही धर्म की आड़ में छिपे अर्थ तंत्र का है जिसके गणित को ईमानदारी से समझकर उस पर अमल करना ही धर्म की गरिमा का पालन करना है। बड़ा तालाब हनुमान मंदिर पर आने वाले चढ़ावे पर गौर किया जाए तो इसका कोई रिकार्ड नहीं है। ट्रस्ट बनाने के पक्षकारों का दावा है कि हर माह 5 से 6 लाख रुपए श्रद्धालुओं की तरफ से मंदिर में आते हैं जिसे अभी तक संचालित करता आ रहा परिवार अपने हितों पर खर्च करता है। यह मंदिर 500 साल से भी पुराना है जिस पर इस परिवार की पीढ़ी दर पीढ़ी काबिज होती आई है। इस मंदिर के प्रति आस पास क्षेत्रों के हजारों लोगों की गहरी आस्था है। विशेषतौर से मंगलवार एवं शनिवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की लंबी कतार मंदिर के आगे रहती हैं। इतना ही नहीं किसी भी शुभ अवसर, नया वाहन खरीदते समय भी शगुन के तोर पर अच्छा खासा चढ़ावा भी मंदिर में अलग कमाई का जरिया है। ट्रस्ट के प्रधान परमात्मा शरण, सचिव नरेंद्र राव एडवोकेट, सह सचिव जगदीश कुमार, कोषाध्यक्ष विकास कुमार का कहना है कि आस्था के नाम पर आने वाली राशि का उपयोग मंदिर के देखरेख एवं जनकल्याणकारी कार्यों पर खर्च होना चाहिए। 1993-94 में तत्कालीन डीसी रामनिवास भी मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाना चाहते थे। नगर पालिका में प्रस्ताव भी पारित हो चुका था लेकिन राजनीति कारणों से इस प्रयास को दबा दिया गया। ट्रस्ट के अधीन आने के बाद चढ़ावे की सही रिपोर्ट सामने आएगी। उसी आधार पर खुलासा होगा कि मंदिर में अभी तक करोड़ों के हिसाब से आ चुकी राशि का उपयोग इस परिवार ने कहां किया। हांलाकि उस परिवार की तरफ से कहना है कि इतना चढ़ावा नहीं आता जितना दावा किया जा रहा है। जो राशि आती है वह मंदिर के देखरेख में खर्च हो रही है। दोनों तरफ से मौखिक दावें किए जा रहे हैं। ऐसे में यह साफ होना जरूरी है कि हर माह इस मंदिर में कितना चढ़ावा आता है और उसका उपयोग किस स्तर पर होता है। अगर यह राशि लाख का पार कर रही है तो समझ जाइए आने वाले दिनों में बहुत बड़ा खुलासा होने जा रहा है। क्योंकि इतनी राशि एक सीमा के बाद टैक्स के दायरे में आती है। यहां बताना जरूरी है कि भारत में जितने भी बड़े और नामी मंदिर हैं, वहां का चढ़ावा जो की करोड़ो अरबो में होता है, एक बहुत बड़े टैक्स के रूप में सरकार को जाता है। सरकार इसका उपयोग बहुत से शुभ कार्यों में करती है। यह कड़वा सत्य है कि हमारे देश में अन्य जगहों की अपेक्षा धार्मिक स्थानों में ही ज्यादा पैसा दान किया जाता है या चढ़ाया जाता है ।लेकिन इसका सदुपयोग अच्छी तरह से नहीं हो पाता। अगर उन पैसों को जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई में ,गरीब लोगों के इलाज के लिए अस्पतालों की सुविधा, तथा उनके लिए घर बनाना, कपड़ों की व्यवस्था करना, भूखे व्यक्तियों के लिए भोजन आदि की व्यवस्था की जा सकती है। इसके अलावा लाइब्रेरी खोली जा सकती है जो बच्चे किताब नहीं खरीद सकते हैं उनके लिए तो यह सबसे उपयुक्त होगा। शहर के विकास कार्यों में पैसा खर्च किया जा सकता है ताकि लोगों को और सुविधाएं उपलब्ध हो सके।इन कामों को करने से भगवान भी खुश… इंसान‌ भी खुश। इसलिए इस मंदिर को लेकर मच रहे शोर का सच सामने आना जरूरी है।

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