हम सभी के शब्द जया किशोरी की तरह अनमोल हो, ऐसा कर पाए तो कथा सफल हुईं..

रणघोष खास. सुभाष चौधरी

कथा वाचक जया किशोरी के शब्दों में वह गजब का तेज है जिसने हरियाणा के गर्वनर बंडारू दत्तात्रेय को भी चल रही श्रीमद भागवत कथा में बुला लिया है। किशोरी के अनमोल शब्दों का प्रवाह होना और गर्वनर का समय निकालना यह बताता है कि जीवन में सत्संग कितना जरूरी है। अखिल भारतीय वैश्य महासम्मेलन की तरफ से चल रहे इस आयोजन की खास बात यह है कि उन्होंने रेवाड़ी से केंद्रित इस आयोजन की धमक को राष्ट्रीय पटल पर पहुंचा दिया है। देश भर से नामी नेताओं की मौजूदगी यह बताने के लिए काफी है कि इस भव्य आयोजन की आर्थिक- सामाजिक और धार्मिक पटकथा बहुत ही सोच समझकर तैयार की गई थी। इस आयोजन का स्वरूप बेहद भव्यता के साथ प्रस्तुत किया गया है इसलिए अर्थ की धारा प्रवाह के लिए अलग अलग रास्ते बनाए गए। मुख्य अतिथियों का चयन भी इसी दृष्टिकोण से किया गया। पंडाल में मंच के बेहद निकट जितने भी चेहरे नजर आ रहे है वे आर्थिक नियमों का पालन करते हुए इस कथा का आनंद ले रहे हैं। यह  जरूरी भी है अगर ऐसा नहीं होता तो जया किशोरी भी नहीं होती। किशोरी का आगमन नहीं होता तो तेलुगु भाषाई के धनी गर्वनर बंडारू दत्तात्रेय हिंदी भाषा के ओज से निकलने वाली इस कथा को सुनने राजभवन छोड़कर नहीं आते। जीवन में सत्संग बेहतर इंसान बनने बनाने का जरिया है। जया किशोरी ने 9 साल की उम्र में इस ज्ञान को समझ लिया था। उसने बेसिक- एकेडमिक शिक्षा के साथ कथा वाचक के रूप में  सत्संग के सफर को भी जारी रखा। नतीजा किशोरी का एक एक शब्द विश्व की सभी मुद्राओं से ज्यादा मंहगा होकर पंडाल में झूम रहा है। हजारों लोग प्रतिदिन इस कथा से बरसने वाले शब्दों में छिपे भाव को अपने दिलों दिमाग में बैठाकर जब घर पहुंचते हैं तो क्या उन्हें अपने बच्चों में जया किशोरी के व्यक्तित्व की हलकी फुलकी झलक नजर आती है। नहीं आती तो इसमें गलती किसकी है। माता- पिता की या उस स्कूल की जहां से शिक्षा ग्रहण की जा रही है। किशोरी तरह उन्हें अपने बच्चों का एक एक शब्द अनमोल नजर क्यों नहीं आता। इसे इस सत्संग के बहाने समझना होगा। 26 साल की जया किशोरी को पंडाल में उससे ज्यादा उम्र के बैठे लोग सुनकर तालियां बजाते हैं तो उन्हें घर आकर एक सवाल खुद से भी करना चाहिए कि आखिर उनकी परिवेश में क्या कमी रह गई थी कि किशोरी को यह बताने- समझाने के लिए रेवाड़ी आना पड़ा। इस सवाल का ईमानदारी से जवाब तलाश कर पाए तो यकीन मानिए आपने सत्संग में खुद को पा लिया है। नहीं तो पर्ची कटाइए, पास पाइए, बच्चों के साथ तैयार होकर पंडाल पहुंचिए, मोबाइल से एक दूसरे की विडियो बनाइए, मिलने वालों को शेयर किजिए, उनसे कामेंट बॉक्स में बधाई पाकर खुश हो जाइए। कथा समापन के बाद  वापस वहीं लौट जाइए जहां से चले थे और फिर तैयारी में जुट जाइए एक ओर नया आयोजन कराने के लिए।

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