हरियाणा में बदल रही राजनीति

भाजपा को जिसकी तलाश थी वह अशोक तंवर निकला


रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

हरियाणा भाजपा अपनी जमीन को चौतरफा मजबूत करने के लिए जिसे तलाश कर रही थी वह उसे मिल गया है। अशोक तंवर संभवता: 20 जनवरी को भाजपा के होने जा रहे हैं। तंवर के आ जाने का सीधा असर हरियाणा की जातीय राजनीति पर साफतौर से नजर आएगा। यह नेता तमाम उतार चढ़ाव के बाद भी अनुसूचित जाति वर्ग में सबसे बड़ा चेहरा है जिसकी पहचान किसी पार्टी बैनर से ज्यादा मैन टू मैन कम्युनिकेशन के तौर पर ज्यादा रही है। प्रदेश में जाट ओर एससी वर्ग विशेष तौर से  जातीय समीकरण के आधार पर राजनीति में उल्टफेर करते रहे हैं। कांग्रेस का हरियाणा में सबसे लंबे समय तक सत्ता में बने रहने का कारण भी इसी दो वर्ग का साथ मिलना रहा है। इसलिए मुख्यमंत्री जाट रहा तो प्रदेश अध्यक्ष पद पर  एससी चेहरे को पहचान मिलती रही है। भाजपा तमाम प्रयासों के बावजूद जाट ओर एससी- एसटी वर्ग में अपनी मजबूत पैठ नहीं बना पाई है। इसकी वजह उसके पास जमीनी स्तर के ऐसे नेताओं की कमी रही है जिसका प्रभाव प्रदेश की चारों दिशाओं में रहा हो। अभी तक जितने भी नेता है वे अपनी सीमाओं में किसी के रहमों करम पर या भाजपा के नाम पर एक दायरे तक सिमटे हुए हैं। अशोक तंवर ऐसा चेहरा है जिसने कांग्रेस में युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर लीग से हटकर अपनी छाप छोड़ी तो  हरियाणा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहकर पार्टी के ताकतवर नेता उस समय के सीएम भूपेंद्र सिंह हुडडा से सीधे टकराते रहे। तंवर की राजनीति जवानी  जमीन पर ज्यादा पसीना बहाती रही इसलिए प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र में यह नेता आज भी एक आवाज पर भीड़ जुटाने की हैसियत बनाए हुए हैं। तंवर के आ जाने से भाजपा जातीय संतुलन को बनाए रखने में मजबूत नजर आएगी। देखना यह है कि भाजपा हाईकमान अशोक तंवर का उपयोग लोकसभा में बतौर सांसद प्रत्याशी के तौर पर करती है या विधानसभा  चुनाव में। या फिर संगठन के तौर पर हरियाणा में एससी वर्ग को अपना बना लेने के लिए उसकी क्षमता को अपनी ताकत बनाती है। कुल मिलाकर इस नेता के आने से कम से कम जातीय राजनीति में बिखरती रही भाजपा का संवारना तय है।

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