होली पर्व पर कलम कुछ कहती है..

माफ करना लोकतंत्र, मै कई रंगों में रंगा पत्रकार हूं..


Pardeep ji logoरणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

हे मेरे देश के महान लोकतंत्र होली पर्व की ढेर सारी शुभकामनाए। इसी बहाने आपसे कुछ कहना चाहता हूं। मै मौजूदा हालात में आपका  सच में कोई चौथा स्तंभ नहीं हूं। यह सब कहने की बाते हैं। इसे स्वीकारना ही मेरा असली रंग है। असल में मै मीडिया की मंडी में खड़ा कई रंगों में रंगा वह पत्रकार हूं जो चेहरा देखकर अपना रंग बदल लेता है। आज हमारी कलम पिचकारी की तरह नजर आ रही है। जिसमें पता ही नहीं चलता कि उसमें आपसे भाईचारे का रंग है या  आपसी नफरत का। या फिर समाज- राष्ट्र को मजबूत करने का या जाति धर्म के नाम पर एक दूसरे को बांटने का।

देश में जो हालात चल रहे हैं। उस पर  निष्पक्ष और भरोसे लायक नहीं लिख सकते। इसे मानना होगा। ऐसा करने की वजह भी जान लिजिए। जिस विपक्षी नेता की आवाज को सरकार के खिलाफ प्रमुखता के साथ उठाया पता चला अगले दिन ही वही सरकार के साथ माला पहने मिठाई खिलाते हुए खड़ा नजर आ रहा है। चुनाव में तो नेताओं के चरित्र का रंग होली को भी फीका कर देता है। इसी तरह जिस जनता की भावनाओं, समस्याओं एवं मुद्दों  को आगे बढ़कर सामने रखा। चुनावी रजल्ट आया तो इसी जनता ने उसे ही भारी मतों से जीता दिया जिसे वह कोस रही थी। जिस भ्रष्टाचार को सार्वजनिक किया। पता चला की वह  चुनावी बांड की माला पहनकर घर के आगे से विजयी जुलूस निकालता जा रहा था। अब आप ही बताइए हे लोकतंत्र मै किस रंग में खुद को रंग लू। अब तो डंके की चोट पर लिखना आ बैल मुझे मारने जैसा है। बस अब तो इतना ही लिखना और बोलना है जिससे मेरी रोजी रोटी पर संकट नहीं आए। सरकारों के पक्ष में लगातार लिखने से कम से कम रात को आराम से नींद तो आ जाती है। गलती से जब भी कोई सवाल खड़े किए वो  नींद भी छिन कर ले जाते हैं। इसलिए होली के बहाने मैने तो अपना रंग दिखा दिया है अब आपकी बारी है.. हैप्पी होली..