मम्मी छोटी थी नाना- नानी चल बसे, पिता मजदूरी करते बड़े हुए

Logo

राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बावल की छात्राएं बता रही हैं


WhatsApp Image 2021-04-08 at 6.24.53 PMरणघोष खास. सलोनी की कलम से


मेरा नाम सलोनी है। स्कूल में 10 वीं की छात्रा हूं। पिता का नाम सुंकाराम और माताजी आशा देवी है। दोनों पारिवारिक परिस्थितियों के हिसाब से 8 वीं से ज्यादा नहीं पढ़ पाए। मम्मी बहुत छोटी थी नानी चल बसी। एक दो साल बाद नानी भी छोड़कर चले गए।  मम्मी का बचपन कैसे गुजरा होगा जब छोटी सी उम्र में उनके सिर पर से अपने माता-पिता का साया उठ जाए। बचपन में जिम्मेदारियों ने मेरे माता-पिता को यह अहसास नहीं होने दिया कि वे बच्चे हैं। वे आज जिस परिवेश में हमें पढ़ा रहे हैं वहां हर मुलभूत आवश्कताएं समय पर पूरा हो रही है। वे अपने बचपन में छोटी से छोटी चीजों को तरसते थे। मजदूरी करते हुए जवान हुए और आज तक हमारी पढ़ाई और खुशियों के लिए दिन रात मेहनत करते हैं। दैनिक रणघोष की पहल पर हमारे स्कूल संचालक ने माता-पिता के संघर्ष की कहानी की जो शुरूआत की वह कोई लेख नहीं जीवन को सही मायनों में समझने का सबसे खुबसूरत अहसास है। हे ईश्वर हमें माफ करना अगर अनजाने में भी हमसे अपने माता-पिता को समझने में भूल गई हो।  हमें जीवन को समझने और जानने की सही राह मिल गई है। हम  बहुत सौभाग्यशाली है जो ऐसे स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं जहां पढ़ाई के साथ साथ बेहतर इंसान के संस्कारों की जड़ों को मजबूत किए जाने की जनचेतना चल पड़ी हैं। माता-पिता के संघर्ष को शब्दों में बयां नहीं कर सकते बस उन्हें अहसास किया जा सकता है। यह लेख नहीं मेरी जिंदगी का नया अध्याय है जो जिंदगी भर प्रेरणा बनकर मुझे मार्गदर्शित करता रहेगा। मेरे स्कूल के सभी शिक्षकों को मेरा बारम्बार नमन..।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *