महज वेतन भोगी शिक्षकों के लिए यह कहानी प्रेरणा है

यूपी की एक सरकारी शिक्षिका ने बदली 650 दिव्यांग बच्चों की जिंदगी


 रणघोष खास. सीधे यूपी से


बरेली की एक सरकारी शिक्षिका ने एक मुहिम के तहत 650 दिव्यांग बच्चों का प्रवेश सरकारी स्कूल में करवा कर देश के दूसरे जिलों को राह दिखाई है.भारत में सरकारें दिव्यांग बच्चों को शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही हैं. जैसे कि उत्तर प्रदेश, जहां सबसे अधिक दिव्यांग हैं, वहां सरकारी प्राथमिक स्कूलों में विशेष शिक्षक रखे गए हैं जो दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित होते हैं. लेकिन पढ़ाई शुरू करने से पहले ही एक चुनौती होती है, जिस कारण हजारों दिव्यांग स्कूल नहीं पहुंच पाते. वह है इन दिव्यांग छात्रों को चिन्हित करके उन्हें स्कूल में प्रवेश दिलवाना. बरेली की एक शिक्षिका दीपमाला पांडेय ने इस चुनौती से पार पाना अपना ध्येय बना रखा है. वह बरेली जनपद के भुता विकास खंड के गांव डभौरा गंगापुर प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं. उनके स्कूल में तीन साल पहले एक दिव्यांग बच्चे अनमोल ने प्रवेश लिया. इस बच्चे ने इनको काफी कुछ सोचने के लिए मजबूर कर दिया. दीपमाला बताती हैं कि अनमोल मानसिक रूप से दिव्यांग था और बोलने में उसे काफी कठिनाई थी. वह आम बच्चों की तरह पढ़ नहीं सकता था। मैंने उसके ऊपर विशेष ध्यान देना शुरू किया. ये तो नहीं कह सकते कि वो अन्य बच्चों के बराबर पहुंच गया लेकिन मेहनत करने से उसे कुछ मदद मिली. सबको साथ जोड़ा दीपमाला के अनुसार अनमोल जैसे दूसरे बच्चों तक शिक्षा पहुंचाने पर उन्होंने काफी सोच-विचार किया और अपने साथी शिक्षकों से भी बात की. अनमोल के कारण ही उन्होंने एक कार्यक्रम ëवन टीचर वन कॉल’ शुरू किया. इसके अंतर्गत उन्होंने अपने साथी शिक्षकों को जोड़ना शुरू कर दिया. सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप से सब लोग आपस में जुड़े. इनमें बरेली के अलावा निकट के अन्य जनपदों के भी शिक्षक जुड़ गए. देखते-देखते यह संख्या 350 हो गई. इस मॉडल में सब शिक्षकों को कम से कम एक दिव्यांग बच्चे की जिम्मेदारी लेनी थी और उसका स्कूल में प्रवेश करवाना था. उनके इस प्रयास से 650 दिव्यांग बच्चों को स्कूल में प्रवेश करवाया गया। उनकी इस पहल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितम्बर के अपने मन की बात उद्बोधन में भी सराहा और इस मॉडल की प्रशंसा की. धीरे-धीरे दीपमाला का ‘वन टीचर वन कॉल’ मॉडल अब कई जगह पहुंच गया है. उनका मानना है कि ऐसे विशेष बच्चों के प्रति समाज की जिम्मेदारी है और वह उसे निभा रही हैं. दीपमाला यहीं नहीं रुकीं. उन्होंने अन्य शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए प्रेरित करना भी शुरू कर दिया. पिछली 9 जनवरी को नेत्रहीन विद्यार्थियों को उचित प्रकार से शिक्षित करने के लिए शिक्षकों को मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु ब्रेल लिपि सिखाने की वर्कशॉप का आयोजन किया गया. दीपमाला ने अपने प्रयास से दिव्यांग बच्चों को विभिन्न प्रतियोगिताओं में जाने के लिए प्रेरित किया और उनके लिए अलग श्रेणी में मूल्यांकन करने का कार्य किया. दीपमाला बताती हैं कि शुरुआत में झिझक होती थी कि पता नहीं ये बच्चे हमसे जुड़ पाएंगे या नहीं लेकिन जब आप बच्चों से बात करेंगे और उनको समझने की कोशिश करेंगे तो धीरे-धीरे एक रिश्ता बन जाता है, जो बच्चे के लिए जरूरी होता है. कितनी बड़ी है चुनौती? भारत में वर्ष 2011 की जनसंख्या के अनुसार कुल 121 करोड़ लोगो में से 2 .68 करोड़ लोग दिव्यांग है. इनमें से 56प्रतिशत पुरुष हैं जबकि 44प्रतिशत महिलाएं हैं.

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