कमाल है.. देश में देशभक्ति के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है

जब देश में सरकारें जाति- धर्म पर बन सकती हैं तो अहीर रेजीमेंट मांग में नाजायज कुछ भी नहीं है। सबसे बड़ी बात सेना में जवान उन परिवारों से आते हैं जिनके कंधों पर सुबह- शाम संघर्ष बैठा रहता है। संपन्न परिवारों के बच्चों के लिए सेना में भर्ती होना ठीक उसी तरह है जिस तरह नेता जी झाड़ू लगाकर सफाई अभियान का शुभारंभ करते हैं।


रणघोष खास. प्रदीप नारायण


भारतीय सेना में अहीर रेजीमेंट गठन को लेकर सड़क से संसद में मच रहा शोर देशभक्ति का नया चेहरा सामने ला रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं  सेना में भर्ती होते ही जवान देश की अमूल्य धरोहर बन जाता है। इसलिए हमारे जवानों का सम्मान सर्वोच्च स्थान पर है। जिस अहीर (यादव) रेजीमेंट को लेकर इस जाति विशेष के लोगों की भावनाए आक्रोश बनकर सड़कों पर चिल्ला रही है। उसे अलग अलग दृष्टिकोण से समझना जरूरी है। देश में करीब 20 करोड़ यादव है। देश की सेना में सबसे ज्यादा इस समाज के युवाओं की भागेदारी है। जाहिर है जब जाट- गुर्जर- सिख- राजपूताना समेत अनेक जातियों की रेजीमेंट बन सकती है तो यादव जाति के नाम पर रेजीमेंट पर खामोशी क्यो हैं । यह मांग पिछले कई सालों से माहौल व हैसियत के हिसाब से उठती- दबती रही है। वर्तमान में केंद्र व अधिकांश राज्यों में भाजपा सरकार है। जिस तरह से माहौल बन रहा है उससे स्पष्ट जाहिर हो रहा है कि  2024 से पहले भाजपा अहीर रेजीमेंट के मुद्दे को पूरी तरह  राजनीति की कढ़ाई में उबाल रही है। इस मांग को स्वीकार करने के लिए भाजपा के रणनीतिकार शुभ मुहूर्त निकलवा रहे हैं। इसलिए सत्ता में बैठे यादव समाज के मंत्री- सांसद व विधायकों की जिम्मेदारी लगाई है कि वे सड़कों पर बैठे अपने समाज के लोगों से मन की बात लेकर रिपोर्ट बनाए। भाजपा यह बेहतर तरीके से जानती है कि किसान आंदोलन में सिख- जाट समाज का वोट बैंक उससे काफी जुदा हुआ है। यूपी में बेशक भाजपा की वापसी हुई है लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव पहले से ज्यादा मजबूत होकर निकले हैं। ऐसे में यादव समाज की अनदेखी आने वाले दिनों में भारी पड़ सकती है। इसलिए वह समय रहते इस मसले पर अपनी मोहर लगाने का ऐसा रास्ता निकाल रही है जो 2024 के लोकसभा चुनाव तक भी असरदार रहे। सेना में जवानों की नौकरी को देशभक्ति ही माना जाता है। लिहाजा देश में आजादी के बाद यह इस तरह का पहला आंदोलन है जहां देशभक्ति के लिए भी युवाओं के साथ बड़े बुजुर्ग- महिलाओं को संघर्ष करना पड़ता है। कुल मिलाकर यह भी कह सकते हैं जब देश में सरकारें जाति- धर्म पर बन सकती हैं तो इस मांग में नाजायज कुछ भी नहीं है। सबसे बड़ी बात सेना में जवान उन परिवारों से आते हैं जिनके कंधों पर सुबह- शाम संघर्ष बैठा रहता है। संपन्न परिवारों के बच्चों के लिए सेना में भर्ती होना ठीक उसी तरह है जिस तरह नेता जी झाड़ू लगाकर सफाई अभियान का शुभारंभ करते हैं।

 

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