आज यह चाँद एक तिरछी सी सुनहरी लकीर सा है। रात आज सोई सोई सी है

होई जबै द्वै तनहुँ इक


आँगन के पार द्वार ( अध्याय 11 )


Babuरणघोष खास. बाबू  गौतम


” मैंने जब बावरी को मृत मानने से इनकार किया तो मैं उसकी जुदाई के दुख से बौराया नहीं था। बल्कि मैं मृत्यु को अक्षम करके बावरी को अंतिम साँस तक अपने साथ रखना चाहता था। मैं खुश हूँ कि मैं सफल हुआ। अगर इसमें कुछ नाटकीय लग रहा है, तुम्हें, तो वह ‘मैं’ है। यह “मैं शब्द” मैं बोलना ही भूल गया था , उसके प्यार में। मैं और तुम, हम प्रेम पाश से बाहर निकल कर बनते हैं। तब तक हम एक जीवनदायिनी श्वास-क्रिया होते हैं ….संयुक्त श्वास क्रिया ….. याद करो कभी प्यार किया है तो।” वह अपनी दार्शनिकता का बखान एक घटित सत्य की तरह कर रहा था। अब फिर उसने अचानक विषय परिवर्तन किया तो मुझे लगा वह बावरी की मौत की ओर जाने से हिचकिचा रहा है।

” बावरी के साथ ऐसी लबालब ज़िंदगी जी मैंने कि तुम्हारी तरह दूसरों के जीवन में जाकर रहने की ख्वाहिश ही नहीं हुई…. एक कहानीकार यही तो करता है।”

” तुम्हें किसने कहा कि मैं कहानियाँ लिखता हूँ?” मैं तुनक कर बोला।

” आप भूल रहे हैं। जब मैंने आप से पूछा- कहानियाँ लिखते हो? तो आप ने मना नहीं किया था।”

मुझे याद आया।

” खैर, मैं भी एक अनजान आदमी को इसलिए अपनी कहानी सुना रहा हूँ कि वह मुझे पैसे देगा। चाहे अपना घर बेच कर दे।”

मैं जानता था वह मुझे कील चुभो कर उत्तेजित कर रहा है। मैं चुप रहा। पर पैसे की उलझन मन में थी। निस्संदेह।

वह धूप की ओर देख कर शुरू हुआ।

” मौसम बदलते गये। मुझे लगता रहा, गर्मी की लू, बरसात की झड़, और सर्दी की ठिठुरन, सब हमारे प्यार को पुख़्ता करने के लिए आते हैं। पुरुष के लिए प्यार सानिध्य से शुरू हो कर, शैथिल्य पर समाप्त होने वाली एक दैनिक यात्रा है। उसे यही परिभाषा मिली होती है प्यार की। पास बैठना, बोलना, लिखना, हँसना, खेलना उसके लिए सब इस यात्रा के उपक्रम हैं। पल पल, जीवन भर प्रेममय रहना स्त्री का गुण है। जो मुझे जल्द ही एहसास हो गया था।

मैं एक दिन छत पर दरी बिछा कर लेटा हुआ था। बावरी मेरे पास बैठी थी। बहुत पास, छुए बिना। हम चाँद तारों की बातें कर रहे थे। ना जाने कब उसकी बाँह मेरे पीठ से सट गयी। उसे पता भी नहीं था। मेरे पुरुष हृदय के लिए यह निमंत्रण था। मैंने उसे खींच कर बाहों में भर लिया। वह मेरी आँखों में देखती रही। फिर धीरे से मुझे पीछे धकेल कर बोली,” थाम्बो जी थाम्बो चाँद ताही देखो ज़रा…. मैं तुम्हें हिन्दी में बताता हूँ हालाँकि मुझे लगता है बावरी की बोली तुम अच्छे से समझते हो। वह बोली– आज यह चाँद एक तिरछी सी सुनहरी लकीर सा है। रात आज सोई सोई सी है। अब यह चाँद रोज़ बढ़ता जाएगा। थोड़ा थोड़ा। और पंद्रह दिन में एक सुनहरे थाल सा बन जाएगा। पता है इसके साथ साथ ही समंदर का पानी भी ऊपर चढ़ रहा है थोड़ा थोड़ा, हर रोज़। पंद्रहवें दिन, चाँद पूरा हो जाएगा। रात में एक उन्माद सा आ जाएगा और समुद्र में ज्वार। दैहिक प्रेम एक प्राकृतिक क्रिया है। स्वत: स्फूर्त। पुरुष को पता नहीं क्यों एक बिगड़ैल बच्चे की तरह खूब सारा छीन कर, समय से पहले छीनकर, प्यार के नाज़ुक एहसास को काम का उपद्रव बनाने का उतावलापन रहता है। मैं अवाक था, दोस्त। मुझे पता था यह ज़रूर उसकी दादी ने ही बताया होगा।

उसके बाद मैं अनुभव करने लगा, हवा में और धूप में, खुशबू में और खामोशी में, काम और रति का आवेदन।

तब से गायों के लिए चारा काटना या खेत में नीवाल करना, सब प्यार का विस्तार सा हो गया।

गाँव ने चाहे एक सांसर औरत को बिहा लाने के दंड में मेरा हुक्का पानी बंद कर दिया था, पर भाग्य ने लगता था सुख के द्वार खोल दिए हैं। आँगन के पार द्वार था। और द्वार से निकलते ही रास्ता। मुझे लग रहा था, जीवन एक सुरक्षित सा घर है। मगर कौन जाने कब दस्तक सुनाई दे। वह दस्तक उजले भविष्य की होगी या कलुषित अतीत की, कोई नहीं जानता।

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