अब हर विधानसभा चुनाव मोदी बनाम विपक्ष होगा!

रणघोष खास. अनिल जैन 

आगामी लोकसभा चुनाव से पहले इस साल और अगले साल यानी 2023 में होने वाले किसी भी राज्य के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार पेश नहीं करेगी। सभी चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और चेहरे पर ही लड़े जाएंगे। बताया जाता है कि जिन राज्यों में चुनाव होने हैं वहां भारी गुटबाजी, मुख्यमंत्रियों के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी और प्रतिकूल हो रहे सामाजिक समीकरणों के चलते तथा कुछ क्षत्रपों को ठिकाने लगाने की शीर्ष नेतृत्व की योजना के तहत पार्टी बिना कोई चेहरा पेश किए चुनाव लड़ेगी। यानी हर चुनाव अब मोदी बनाम विपक्ष होगा। वैसे, यह कोई नई बात नहीं है, क्योंकि बीजेपी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह का युग शुरू होने के बाद पिछले आठ साल में पार्टी ने लगभग सभी विधानसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़े हैं और जीतने के बाद शीर्ष नेतृत्व के पसंदीदा चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया है। अलबत्ता उत्तर प्रदेश और राजस्थान के पिछले चुनाव तथा 2015 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव को ज़रूर अपवाद कहा जा सकता है। उत्तर प्रदेश में पार्टी ने योगी आदित्यनाथ और राजस्थान में वसुंधरा राजे के चेहरे पर चुनाव लड़ा था, जबकि दिल्ली में उसने किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ने वाली यह स्थिति बताती है कि पार्टी में राज्य स्तर पर नेतृत्व विकसित करने की जो प्रक्रिया भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के दौर में जारी थी, उसे अब लगभग ख़त्म कर दिया गया है। वाजपेयी और आडवाणी भी मोदी और शाह की तरह पार्टी के सर्वमान्य शीर्ष नेता थे। उनके भी दौर में पार्टी का अध्यक्ष भले ही कोई भी रहा हो लेकिन दोनों का राजनीतिक क़द पार्टी के किसी भी पद से बड़ा था, लिहाजा होता वही था जो वे चाहते या तय करते थे। पार्टी के आम कार्यकर्ताओं और पार्टी के मतदाता वर्ग में भी वाजपेयी और आडवाणी को ही नेता माना जाता था। लेकिन अपनी इस निर्द्वंद्व हैसियत के बावजूद उन्होंने न सिर्फ केंद्रीय स्तर पर नेतृत्व की दूसरी कतार तैयार की थी बल्कि विभिन्न राज्यों में भी पहली और दूसरी कतार के नेता तैयार किए थे। लेकिन पार्टी की कमान मोदी और शाह के हाथों में आने के बाद वह प्रक्रिया हर स्तर पर ख़त्म हो गई। पार्टी में अब सब कुछ सिर्फ दो लोगों (मोदी और शाह) की मर्जी से होता है, जिस पर पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और संसदीय बोर्ड मंजूरी की औपचारिक मुहर लगा देते हैं। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले कुल 11 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इस साल के आखिर में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव है और अगले साल की शुरुआत यानी फरवरी-मार्च में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों- मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में चुनाव होंगे। उसके बाद मई में कर्नाटक और फिर साल के अंत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा के चुनाव होंगे। इस साल सबसे पहले हिमाचल प्रदेश में चुनाव होना है, जहां भाजपा सत्ता में है और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस है। पारंपरिक रूप से मुकाबला इन दोनों पार्टियों के बीच ही होता रहा है। इस बार भी आम आदमी पार्टी की सक्रियता के बावजूद मुकाबला भाजपा बनाम कांग्रेस ही होना है। इस सूबे में पिछले कई दशकों से हर पांच साल में सत्ता बदलने का रिवाज़ रहा है जिसे बीजेपी इस बार बदलना चाहती है। जबकि कांग्रेस इस चुनाव में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के पांच साल के कामकाज को मुद्दा बना कर सत्ता हासिल करना चाहती है। बजेपी उसे ऐसा करने से रोकने की कोशिशों में जुटी है। इन्हीं कोशिशों के तहत उसने अभी से माहौल बना दिया है कि चुनाव के बाद नया मुख्यमंत्री भी बन सकता है। इसलिए वह चुनाव जयराम ठाकुर के चेहरे पर नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ेगी और मोदी डबल इंजन की सरकार की दुहाई देकर लोगों से बीजेपी के लिए वोट मांगेंगे। यही स्थिति गुजरात में है, जहाँ हिमाचल प्रदेश के तत्काल बाद चुनाव होने हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के इस गृह राज्य में ठीक एक साल पहले बीजेपी ने मुख्यमंत्री सहित सारे मंत्री बदल दिए थे। विजय रूपानी की जगह भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया था। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर देते हुए मुक़ाबले लगभग बराबरी का बना दिया था लेकिन बीजेपी जैसे-तैसे सरकार बनाने में सफल हो गई थी। पिछले पाँच साल के दौरान वहाँ भाजपा ने कांग्रेस के कई विधायकों और दूसरे नेताओं से दलबदल करा कर कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश की है। आम आदमी पार्टी की सक्रियता भी कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है लेकिन इसके बावजूद मुख्य रूप से मुक़ाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होना है। कांग्रेस राज्य सरकार के कामकाज को मुद्दा बना कर बीजेपी को चुनौती देने की तैयारी कर रही है। गुजरात में कांग्रेस को लग रहा है कि पिछले आठ साल में बीजेपी ने तीन मुख्यमंत्री बदले हैं। उनके कामकाज पर अगर चुनाव होगा तो वह बीजेपी को अच्छी टक्कर दे पाएगी। बीजेपी भी इस बात को समझ रही है। इसलिए वह स्थानीय नेताओं की बजाय मोदी का चेहरा आगे कर रही है। चूँकि पूरा चुनाव मोदी के नाम पर ही लड़ा जाना है, इसलिए पार्टी ने मुख्यमंत्री और सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को छोड़ कर पूरा फोकस सिर्फ़ मोदी के चेहरे पर ही बनाया है। जुलाई महीने में मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने चुनाव के मद्देनज़र 15 दिवसीय ‘वंदे गुजरात विकास यात्रा’ की शुरुआत की थी, इसमें प्रधानमंत्री मोदी के बजाय मुख्यमंत्री मोदी के कामकाज का ही गुणगान किया गया। ग़ौरतलब है कि नरेंद्र मोदी करीब 21 साल पहले गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। वे करीब तेरह साल तक मुख्यमंत्री रहे और पिछले आठ साल से देश के प्रधानमंत्री हैं। भाजपा ने मोदी के इस पूरे कार्यकाल को ही चुनाव प्रचार की थीम बनाया। ‘वंदे गुजरात विकास यात्रा’ में बांटे जाने वाले परचों में भी इन 21 वर्षों के दौरान गुजरात के लिए किए मोदी के कामकाज का ही जिक्र किया गया। मोदी से पहले मुख्यमंत्री रहे केशुभाई पटेल और मोदी के बाद मुख्यमंत्री बनीं आनंदी बेन पटेल और उनके बाद मुख्यमंत्री बने विजय रुपानी का भी इसमें कोई जिक्र नहीं किया गया।  हिमाचल प्रदेश और गुजरात के बाद अगले वर्ष फ़रवरी-मार्च में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों- मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इनमें से सिर्फ त्रिपुरा में भाजपा की सरकार है, जहां पार्टी ने कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री बदला है। पार्टी यहां भी मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी। बाकी के दो राज्यों-मेघालय और नगालैंड में क्षेत्रीय दलों की सरकारें हैं और भाजपा की मौजूदगी नाममात्र की है, इसलिए इन प्रदेशों में भाजपा क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन करके चुनाव लड़ेगी और विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश करेगी। इन चुनावों के बाद मई में कर्नाटक विधानसभा का चुनाव होना है, जहाँ भाजपा ने एक साल पहले अपने कद्दावर नेता बीएस येदियुरप्पा को हटा कर उनकी ही सिफारिश पर लिंगायत समुदाय के नेता बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री तो बना दिया लेकिन उनकी लोकप्रियता और राजनीतिक क्षमता पर पार्टी नेतृत्व को संदेह है। चूँकि राज्य में लिंगायत समुदाय राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली है इसलिए बोम्मई को बनाए रखना पार्टी की मजबूरी है लेकिन चुनाव के बाद भी उन्हीं को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा नहीं की जाएगी और पार्टी मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी।  अगले साल के आखिर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इनमें से पहले तीन प्रदेशों में भाजपा को अपने तीन पुराने क्षत्रपों को किनारे करना है। इन तीनों राज्यों में भाजपा पिछली बार हार कर सत्ता से बाहर हो गई थी, लेकिन मध्य प्रदेश में वह एक साल बाद ही कांग्रेस में बड़े पैमाने पर हुई बगावत का फायदा उठा कर कांग्रेस की सरकार गिरा कर अपनी सरकार बनाने में सफल हो गई थी। चूँकि विशेष परिस्थिति में सरकार बनी थी इसलिए आलाकमान को न चाहते हुए भी मजबूरी में फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था। शिवराज सिंह बीजेपी में सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं लेकिन इसके बावजूद पिछले दिनों उन्हें जिस तरह पार्टी के संसदीय बोर्ड से बाहर किया गया है, उससे लगता है कि अब पार्टी नेतृत्व उनको किनारे लगाने का मन बना चुका है।  खुद शिवराज सिंह को भी इस बात का अहसास हो चुका है, इसीलिए उन्होंने अपने को संसदीय बोर्ड से बाहर किए जाने के बाद कहा था कि पार्टी अगर उन्हें झाडू लगाने का काम भी सौंपेगी तो वे खुशी-खुशी उसे स्वीकार करेंगे। बहरहाल, पार्टी उन्हें क्या नई ज़िम्मेदारी देगी, यह अभी साफ़ नहीं है। राजस्थान में भाजपा ने पिछला चुनाव तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के चेहरे पर लड़ा था लेकिन सत्ता से बाहर हो गई थी। वसुंधरा ने अभी भी खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार मानते हुए अपना चुनाव अभियान शुरू कर दिया है। लेकिन माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने राज्य में नया नेतृत्व तैयार करने का फैसला कर लिया है। इस बात का संकेत पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया ने भी दे दिया है। इसी तरह छत्तीसगढ़ में 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह अभी भी खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार मान रहे हैं लेकिन पार्टी ने तय कर लिया है कि नए नेतृत्व का फैसला चुनाव बाद होगा। हालाँकि तेलंगाना में भाजपा का महज एक विधायक है और फिलहाल पार्टी का लक्ष्य कांग्रेस को पीछे धकेल कर सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र परिषद के खिलाफ अपने को मुख्य विपक्ष के रूप में स्थापित करना है। इसलिए वहां अभी यह सवाल ही नहीं है कि मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा। मिजोरम में भी पार्टी की स्थिति नगण्य है, इसलिए वहां भी इस तरह का कोई सवाल नहीं है। इस प्रकार इन सभी राज्यों में भाजपा नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी।

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