रितू की यह कहानी बाजारू शिक्षकों पर तमाचा, कोचिंग सेँटरों पर ताला लगा देगी, जरूर पढ़े..

जो रिश्तेदार- परिवार के दूर दराज सदस्य रितू की पढ़ाई के खिलाफ थे। वे नसीहत देते ज्यादा मत पढ़ाओ नीचा दिखाएगी। जमाना खराब है। जितना पढ़ाने पर खर्च कर रहे हो उसकी शादी के लिए जोड़ो। 7 सितंबर 2022 को नीट का रजल्ट आया तो सबकुछ बदल गया। 17 लाख 64 हजार 571 परीक्षार्थियों में रितू टॉप 100 में खिलखिलाती नजर आईं। नीचा दिखाने का कटाक्ष करने वाले अब रितू के साथ फोटो खिंचवाने पर इतरा रहे हैं। आइए इस कहानी को अपने बच्चों से सांझा करें। यह बाजार में पैसो से भी नहीं मिलेगी।


रणघोष खास. प्रदीप नारायण


एनटीए नीट 2022 की परीक्षा में बैठे 17 लाख 64 हजार 571 विद्यार्थियों में 100 वीं पोजीशन लेने वाली हरियाणा के रेवाड़ी जिले के गांव पाडला की बेटी रितु शर्मा की कहानी  हर घर में पढ़नी पढ़ानी चाहिए।  उसने जिस परिवेश में जन्म लिया। माता-पिता को मजदूरी करते देखा। लिहाजा संघर्ष साये की तरह उसके साथ बड़ा होता गया। गांव के सरकारी स्कूल में बहनों के साथ 7 वीं तक की पढ़ाई की। आठवीं में हुईं तो पांच किमी दूर कुंड राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल में पैदल आती जाती रही। सुबह मां खाना बनाती तो स्कूल आने के बाद पिता को दाल रोटी बनाते देखा। इसी दौरान बीमार दादा दुलीचंद का समय पर इलाज नहीं हुआ तो वे छोड़कर चले गए।

इस घटना ने रितु के दिलों दिमाग पर असर  डाल दिया। वह स्कूल में शिक्षकों से डॉक्टर कैसे बनते है का सवाल पूछने लगी तो उसे सही दिशा मिल गईं।  दसवीं में 75 प्रतिशत नंबर आए तो झट 11 वीं में मेडिकल विषय में दाखिला ले लिया। 2020 में  12 वीं की परीक्षा के समय कोविड-19 का हमला हो गया। लिहाजा बिना परीक्षा दिए 84 प्रतिशत नंबर आ गए। अब चुनौती  क्या करें। घर के हालात सामान्य नहीं थे। बड़ी बहन दिव्या बीएससी कर रही थी, छोटी अंजली 12 वीं करने के बाद कंप्यूटर का कोर्स और भाई आईटीआई कर रहा था।  मजदूरी से पार नहीं पड़ी तो पिताजी ने गांव के बस स्टैंड पर सब्जी की दुकान खोल ली। बीच पढ़ाई में बहन की शादी भी कर दी। घर के हालात को देख रितू ने पास के एक निजी अस्पताल में नर्स की नौकरी शुरू कर दी। शुरू में कुछ नहीं मिला, काम सीखा तो 4 हजार महीने मिलने लग गए। उसे लगा कि डॉक्टर बनने का उसका सपना बिखर गया लेकिन साए की तरह चल रहे संघर्ष ने उसे टूटने नहीं दिया। बिना तैयारी किए 2021 की नीट परीक्षा दी तो 585 वीं रैंक आ गईं। इस रैंक में सरकारी कॉलेज मिलना मुश्किल था। प्राइवेट में डोनेशन के नाम पर खेल चलता था।

लिहाजा चुपचाप नर्स की नौकरी करती रही लेकिन दिलों दिमाग में 2022 की नीट परीक्षा की तैयारी का इरादा बना लिया था। नौकरी छोड़ तैयारी में जुट गईं। एनसीईआरटी के सिलेबस को अपनी ताकत बनाया। इधर उधर से टिप्स लिए।  परीक्षा सिर पर थी। चार माह बचे थे। नोट्स व तैयारी के लिए एक कोचिंग सेंटर से बातचीत की। उनकी दो शर्तें थी। या तो ढाई लाख रुपए फीस दो या स्कालरिशप परीक्षा पास करने पर 22 हजार  जमा कराओ।   परीक्षा में  मैरिट तो आ गईं लेकिन 22 हजार कहां से लाए। जो वेतन मिलता था वह घर के खर्च में चला जाता था। माता-पिता ने किसी तरह फीस जमा करा दी। चार महीने रितू कोचिग जरूर गईं लेकिन उसे जो फायदा मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। वह घर पर ज्यादा मेहनत करती। गांव में बिजली का संकट था। वह रात दो बजे तक पढ़ती तो मां उसकी मोमबत्ती, दीया व लालटेन के साथ उसका हौसला बढ़ाती। पिता ने किसी तरह इनवर्टर की व्यवस्था कर दी। दो कमरों के घर में एक रितू को दे दिया ताकि उसकी पढ़ाई बाधित नहीं हो। घर गुजारे के लिए इध्र उधर से पैसे लेकर भैस ले आए ताकि दूध बेचकर ढंग से गुजारा हो जाए। रिश्तेदार- परिवार के दूर दराज के सदस्य रितू की पढ़ाई के खिलाफ थे। वे नसीहत देते ज्यादा मत पढ़ाओ नीचा दिखाएगी। जमाना खराब है। जितना पढ़ाने पर खर्च कर रहे हो उसकी शादी के लिए जोड़ो। वे चुप रहे। 7 सितंबर 2022 को नीट का रजल्ट आया तो सबकुछ बदल गया।

17 लाख 64 हजार 571 परीक्षार्थियों में रितू टॉप 100 में खिलखिलाती नजर आईं। नीचा दिखाने का कटाक्ष करने वाले अब उसके साथ फोटो खिंचवाने में आगे रहते हैं।  रितू ने जो कर दिखाया वह उन बाजारू शिक्षकों, छोटे बड़े माल की शक्ल में खुले कोचिंग सेंटर  जहां बच्चों को प्रोडेक्ट की तरह तैयार  किया जाता है के मुंह पर जोरदार तमाचा है। यह तमाचा उन सरकारी शिक्षक,अधिकारियों एवं शासन व्यवस्था पर भी है जिन्हें अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढा़ने में बदबु आती है लेकिन जब यहीं से रितु खुशबु बनकर चारों तरफ फैलती है तो यहीं जमात उसे घेरकर उसकी शोहरत पर कब्जा करना शुरू कर देती है। रितु की यह कहानी उन सभी माता-पिता के लिए अहसास है जो शिक्षा की बाजारी चकाचौंध की गिरफ्त में आकर लाखों रुपए फीस व सुविधा के नाम पर लूटा देते हैं। रितु उन बच्चों के लिए आइकान है जो असफल होने पर टूटकर आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। रितु उन बेहद साधारण परिवारों की उम्मीद है जो आर्थिक कमजोरी से टूटकर बिखर जाते हैं। रितु सही मायनों में सावन की वह बरसात है जिन्हें देखकर खेत खलिहान खिलखिला उठते हैं। आइए इस कहानी को अपने बच्चों से सांझा कर ले यह बाजार में पैसो से भी नहीं मिलेगी।

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