दसवीं की मार्क्स सीट को मच रहे शोर में धारूहेड़ा चेयरमैन कंवर सिंह ने साफ सुथरे शब्दों में दिया जवाब

आरोप लगाने वाला कोर्ट में जाए, जनता ने उन्हें जीताया क्या वह फर्जी है|


धारूहेड़ा नगर पालिका चुनाव में करिश्माई जीत हासिल कर चेयरमैन बने कंवर सिंह ने अपनी दसवीं की मार्क्स सीट पर उंगली उठाने वालों पर सरल और सीधी भाषा में जवाब दिया। कंवर सिंह ने कहा कि जब उन्होंने नामाकंन भरा उस समय इन लोगों को मेरे प्रमाण पत्र की विश्वसनीयता पर शक नहीं हुआ। उस समय आपत्ति दर्ज क्यों नहीं कराईं। चुनाव में धारूहेड़ा की जनता ने मुझे प्यार- विश्वास और अपनापन देकर जीताया क्या वह भी फर्जी है। जीतने के साथ ही अब उन्हें मेरी शैक्षणिक योग्यता नकली नजर आने लगी। चेयरमैन ने कहा कि जब वे चुनाव में उतरे थे तो जनता से अपने लिए कभी वोट नहीं मांगा। सिर्फ इतना ही कहा कि जो बेहतर प्रत्याशी लगे उसे ही चुनना। सोचिए अगर वे चुनाव में रह जाते तो क्या यह शख्स इतनी ईमानदारी- नियम कायदे की बड़ी बड़ी बाते करता। चुनाव में वोट हासिल करने के लिए किस तरह पानी की तरह पैसा बहाया। जनता का ईमान खरीदने के लिए क्या नहीं किया गया।  अपनी लग्जरी लाइफ स्टाइल में ये लोग कितने ईमानदारी से रहते हैं। यह बताने की जरूरत नहीं है। वे कीचड़ में पत्थर मारने में यकीन नहीं करते। जनता ने उन्हें भारी विश्वास से जिम्मेदारी दी है। वे उनके प्रति जवाबदेह है। जो शख्स मेरी शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठा रहा है वह कोर्ट में जाए, आरटीआई लगाए। मीडिया में आकर किसी को गुमराह नहीं करें। जनता ने उन्हें दसवीं- बीए की योग्यता देखकर नहीं चुना। चुनाव में अपना विश्वास और प्यार देकर भेजा है। इस तरह की हरकतों से वे दबने या रूकने वाले नहीं हैं। राज्य सरकार और  जिला प्रशासन के सहयोग से उनका संकल्प धारूहेड़ा को विकास का मॉडल बनाना है। आरोप लगाने वाले जो बौखलाहट में आकर जो हरकतें की है इससे उनकी मानसिक स्तर का पता चलता है कि वे अपने स्वार्थ के लिए किस हद तक गिर जाते हैं। वे भूल जाते हैं कि चुनाव में असली योग्यता जनता का विश्वास और भरोसा होता है जो किसी कागज के टुकड़ें या पैसो के बल पर नहीं खरीदा जा सकता। चेयरमैन ने कहा कि जब धारूहेड़ा नगर पालिका नहीं बनी थी उससे पहले वे 3 अप्रैल 2005 को गांव सरपंच के बने थे। उस समय भी उनके खिलाफ लड़ने वालों की जमानत जब्त हो गई थी। उसके बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। इतने सालों बाद जब दुबारा मैदान में उतरे तो जनता का यही भरोसा सूत समेत मिल गया। यह व्यवहार किसी कागज के टुकड़े या पैसो के बल पर नहीं संस्कार- सोच एवं एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारी एवं जवाबदेही से मिलता है।

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