विश्व-भर के प्रवासी भारतीयों को एकता के सूत्र में पिरो रही है हिंदी- नारायण कुमार

नारनौल। हिंदी भारत की तो संपर्क भाषा है ही, अब विश्व की संपर्क भाषा भी बनती जा रही है। यह कहना है अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद्, नई दिल्ली के निदेशक नारायण कुमार का। मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित ‘वर्चुअल विश्व हिंदी-दिवस समारोह’ के ‘हिंदी-विमर्श’ शीर्षक प्रथम सत्र में बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए उन्होंने कहा कि विश्व-भर में फैले प्रवासी भारतीयों और भारतवंशियों को एकता के सूत्र में पिरोने का महत्त्वपूर्ण और सराहनीय कार्य कर रही है हिंदी। वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर (उत्तर प्रदेश) की कुलपति डॉ निर्मला एस मौर्य ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में स्पष्ट किया की फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम, गुयाना और त्रिनिडाड जैसे देशों की हिंदी का स्वरूप हमारी हिंदी से कुछ भिन्न हो सकता है, लेकिन है वह हिंदी ही, जो हमें इन देशों में भारतीयता का अहसास करवाती है। भारत के राष्ट्रपति के विशेष कार्याधिकारी डॉ राकेश दुबे ने, इस अवसर पर अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करवाते हुए, अपने संबोधन में कहा कि हिंदी की प्रतिष्ठा के लिए हमारे प्रयास निरंतर जारी हैं तथा हमें पूर्ण विश्वास है कि जल्दी ही हिंदी देश में ही नहीं, विदेशों में भी सही और सम्मानजनक स्थान प्राप्त करेगी। ऑकलैंड (न्यूजीलैंड) की  ई-पत्रिका ‘भारत-दर्शन’ के संपादक रोहितकुमार ‘हैप्पी’ तथा नई दिल्ली की पत्रिका ‘प्रवासी-संसार’ के संपादक राकेश पांडेय ने विशिष्ट अतिथि वक्ता के रूप में हिंदी के स्वरूप, महत्त्व और प्रासंगिकता पर तथ्यपरक ढंग से प्रकाश डाला तथा स्पष्ट किया कि हिंदी आज विचार और संस्कार की भाषा तो है, किंतु रोजगार और व्यापार से जुड़े बिना यह वैश्विक परिदृश्य में अपनी प्रासंगिकता सिद्ध नहीं कर सकती।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, नारनौल के जिला अध्यक्ष डॉ जितेंद्र भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-गीत के उपरांत चीफट्रस्टी डॉ रामनिवास ‘मानव’ के प्रेरक सान्निध्य तथा डॉ पंकज गौड़ के कुशल संचालन में यह समारोह ‘हिंदी-विमर्श’ और ‘कविता-कुंभ’ शीर्षक दो सत्रों में संपन्न हुआ। प्रभात प्रकाशन एवं ओसियन मीडिया, नई दिल्ली के सीईओ पवन अग्रवाल की अध्यक्षता में संपन्न हुए द्वितीय सत्र ‘कविता-कुंभ’ में सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी बड़ी (राजस्थान) के कुलपति डॉ उमाशंकर यादव मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। अपने संबोधन में डॉ यादव ने कहा कि कविता भावना के स्तर पर न केवल व्यक्ति का विस्तार करती है, बल्कि व्यक्ति को व्यक्ति और समाज से जोड़ती भी है। पवन अग्रवाल ने कविता की अपील को सार्वजनिक बताते हुए स्पष्ट किया की कविता प्रकाशित होते ही, किसी व्यक्ति-विशेष की न रहकर, सार्वजनिक संपत्ति बन जाती है।  उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की। इस अवसर पर डॉ रामनिवास ‘मानव’ ने, हिंदी को आजादी के बाद समुचित सम्मान नहीं मिलने का दु:ख, अपने दोहों के माध्यम से, कुछ इस प्रकार प्रकट किया-‘हिंदी को संविधान से, ऐसा मिला प्रसाद। रानी से दासी बनी, आजादी के बाद।। जिस भाषा के जोर पर, हमको मिला सुराज। विधवा-सी दर-दर फिरे, वही भटकती आज।।’

इन्होंने किया काव्य-पाठ : साढ़े तीन घंटों तक चले इस महत्त्वपूर्ण समारोह में एक दर्जन देशों के विद्वानों और कवियों-कवयित्रियों ने सहभागिता की। ‘कविता-कुंभ’ में काव्य-पाठ करने वालों में टोक्यो (जापान) की डॉ रमा पूर्णिमा शर्मा, मस्कट (ओमान) के तुफैल अहमद, मास्को (रूस) की श्वेता सिंह, बर्लिन (जर्मनी) की योजना शाह जैन, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) की रेखा राजवंशी, दोहा (कतर) की डॉ मानसी शर्मा, अमेरिका से सिएटल की डॉ मीरा सिंह और सेनडियागो की डॉ कमला सिंह, दार-ए-सलाम (तंजानिया) के जितेंद्र भारद्वाज, काठमांडू (नेपाल) की तारा केसी, मेडान (इंडोनेशिया) के आशीष शर्मा और भारत से नई दिल्ली की डॉ नीलम वर्मा और उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’, भिवानी से विकास कायत तथा नारनौल से डॉ जितेंद्र भारद्वाज और डॉ पंकज गौड़ के नाम उल्लेखनीय हैं। ट्रस्ट की दिल्ली-प्रभारी उर्वशी अग्रवाल  द्वारा धन्यवाद-ज्ञापन के पश्चात्, अपनी सफलता को रेखांकित करते हुए, यह भव्य समारोह संपन्न हुआ।

इनकी रही उल्लेखनीय उपस्थिति : विश्वबैंक की अर्थशास्त्री डॉ एस अनुकृति, वाशिंगटन डीसी (अमरीका), ट्रस्टी डॉ कांता भारती (नारनौल), प्रोफेसर अशोककुमार श्रीवास्तव, जौनपुर (उत्तर प्रदेश), प्रोफेसर मानस पांडे, नई दिल्ली, प्रोफेसर सुशीला आर्या, भिवानी और डॉ राजेश शर्मा (हरियाणा), डॉ जनार्दन यादव, नरपतगंज (बिहार), रमेश मस्ताना, नेरटी-कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश), कामिनी अग्रवाल और वंदना गुप्ता, नई दिल्ली आदि ने अपनी महनीय स्थिति से समारोह को गरिमा प्रदान की।

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