क्या ऐसा कोई इंसान है जो खुद ईमानदार कोरोना को बेईमान साबित कर दें ….

♦याद रखिएगा दुनिया पर राज करने वाला सिकंदर तभी महान कहलाया जब उसके अंदर अच्छे इंसान का जन्म हुआ। काश हमारे धार्मिक स्थल, शिक्षण संस्थान एवं धरती पर न्याय की रक्षा के लिए बनी अदालतें बेहतर इंसान बनाने के अपने मकसद में कामयाब हो जाती तो हमें सुधारने के लिए कोरोना का जन्म नहीं होता। यह लेख साइंस की नहीं इंसानी प्रयोगशाला में बैठकर लिखा गया है। इसलिए इसे पढ़े और भूल जाइए क्योंकि यह आर्थिक पैकेज नहीं है।

रणघोष खास. प्रदीप नारायण | क्या धरती पर एक भी ऐसा इंसान नहीं है जो यह दावा कर सके कि वह पूरी तरह से ईमानदार है और यह कोरेाना महामारी- छल- कपट- बेईमानी से अपना कहर बरपा रही है। अगर कोई  ऐसा है तो अभी तक सामने क्यों नहीं आ रहा है । इसका मतलब इंसानी असलियत सामने आ चुकी है। कोरोना का कहर तब तक जारी रहेगा जब तक हम खुद को नहीं सुधारेंगे। हमारे पास अपनी गलती, खामियां एवं खुद को बचाने का अभी भी मौका है। अपनी आंखों में धूल ना झोंके।

आप चाहे कितने ही सुख सुविधा में रहते हो, रसूकधारी हो, अधिकारी, नेता, उद्योगपति, धर्म गुरु, बदमाश या सबसे ज्यादा पढ़े लिखे हो, सबसे पहले खुद को बेहतर इंसान साबित करना होगा। यह जंग इंसान की इंसान में नहीं ऐसे वायरस से हैं जो नजर नहीं आता लेकिन हर लिहाज से हमसें बेहतर साबित हो रहा है। क्या उसने इंसानों की तरह अपने स्वार्थ के लिए हवा- पानी से सराबोर प्रकृति को तहस- नहस किया, क्या उसने अपनी ताकत के घमंड में चूर,अनाप- शनाप तरीके से आगे बढ़ने वालों को छोड़कर मजबूर- बेसहारा- असहाय को निशाने पर लिया। ऐसा नहीं है तो हाथ जोड़कर अपील है कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है संभल जाओ।

Danke ki chota par logo
रेवाड़ी- डंके की चोट पर।

कोरोना देश में नेताओं की तरह राजनीति करने या चुनाव लड़ने नहीं आया है कि उसे अपने हिसाब से घूमा लोंगे। पैसों या पिस्टल की नोंक से वश में कर लोंगे। सामने वाला तुम्हारी चिंता कर रहा है यह भूल जाओ। अगर वह इतना मजबूत होता तो आज चेहरा नहीं ढकता। हमारी दिक्कत है कि सबकुछ जानते हुए भी उसे इसलिए स्वीकार नहीं करते क्योंकि इंसानी तौर पर हम खुद को कमजोर बना चुके हैं। नासमझ बच्चों को छोड़कर खुद को समझदार कहने वाले ईमानदारी से मंथन करें कि उनकी जिंदगी में जितने भी अच्छे बुरे बदलाव आए।

उसमें अधिकांश फैसले किसने लिए। पता चल जाएगा इंसान- इंसान को अपने स्वार्थ- लालच के लिए एक दूसरे को अपने दिमाग से घूमा रहा था।  कोरोना ने दो माह से अधिक समय तक हमें घरों में इसलिए बैठाया ताकि यह महसूस करें कोन अपना- पराया है। हमने क्या गलतियां की, जिनके प्रति हमारी जिम्मेदारी- जवाबदेही थी उसे कितनी ईमानदारी से निभा पाए। अफसोस हम ऐसा कर पाने में अभी तक नाकाम रहे इसलिए कोरोना का गुस्से में कहर जारी है। हमारे दिमाग में इतना जबरदस्त कचरा भरा पड़ा है कि उसे निकालने के लिए एक नहीं कई कोरोना चाहिए।

इसलिए देखा होगा जिस देशों में तेजी से लाशों के ढेर लगने लगे तो इंसान चिल्ला- चिल्लाकर कहने लगा कि  वह सुधर गया है, गलती हो गई, रहम करो, इसलिए वहां से कोरोना वापस लौट रहा है। हमें भी अब सुधरने के लिए अपने आस पास बिखरी लाशों से आने वाली संडाध चाहिए। याद रखिएगा दुनिया पर राज करने वाला सिकंदर तभी महान कहलाया जब उसके अंदर अच्छे इंसान का जन्म हुआ। हम जिन्हें अपने इतिहास में महान लोग कहते आ रहे हैं वह इसलिए नहीं कि वे बड़ों पदों पर विराजमान थे। त्याग, समर्पण, ईमानदारी से वे ऐसी राह पर चल पड़े थे जहां इंसान को इंसान बनाने पर जोर दिया जाता था।

काश हमारे धार्मिक स्थल, शिक्षण संस्थान एवं धरती पर न्याय की रक्षा के लिए बनी अदालतें बेहतर इंसान बनाने के अपने मकसद में कामयाब हो जाती तो हमें सुधारने के लिए कोरोना का जन्म नहीं होता। यह लेख साइंस की नहीं इंसानी प्रयोगशाला में बैठकर लिखा गया है। इसलिए इसे पढ़े और भूल जाइए क्योंकि यह आर्थिक पैकेज नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *