कमला हैरिस की हार, ट्रंप की शानदार जीत के पीछे गिरजाघरों का हाथ?

रणघोष अपडेट. यूएसए से 

क्या झूठा आदमी अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत सकता है? ग़रीबों व मध्यवर्ग को तबाह करने वाला, लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक और तानाशाही को बढ़ाने वाला, महिला विरोधी काम करने वाले शख्स को क्या राष्ट्रपति चुनाव में विरोधी उम्मीदवार के क़रीब भी पहुँचना चाहिए? इसका सीधा जवाब तो यही हो सकता है कि ऐसे किसी शख्स को शायद ही कोई वोट दे! चुनाव से पहले जिस न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादकीय बोर्ड ने 112 शब्दों के संपादकीय में ट्रंप की बखिया उधेड़ दी, ट्रंप को झूठा बताया, ग़रीबों व मध्यवर्ग को तबाह करने वाला क़रार दिया, लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक बताया और तानाशाही को बढ़ाने वाला बताया, वही ट्रंप ने शानदार जीत दर्ज की है। तो सवाल है कि यह चमत्कार कैसे हुआ?अब जो रिपोर्टें आ रही हैं उसके अनुसार ट्रंप की जीत में अन्य चीजों के अलावा चर्च यानी गिरजाघरों की बड़ी जबरदस्त भूमिका है। शहरों से दूर ग्रामीण इलाक़ों में गिरजाघरों की जबरदस्त पकड़ है और लोग अक्सर अपनी ज़िंदगी के फ़ैसले तक लेने के लिए गिरजाघरों पर निर्भर रहते हैं। ट्रंप के अभियान चलाने वाली टीम ने इन्हीं गिरजाघरों का सहारा लिया।ट्रंप के अभियान ने डेमोक्रेट्स को केवल एक विरोधी पार्टी के रूप में नहीं बल्कि अस्तित्व के लिए खतरा, देशद्रोही, यहां तक ​​कि अराजकता के एजेंट के रूप में पेश किया। गर्भपात केस में कमला हैरिस के रुख को चर्च वैसे भी ईश्वर विरोधी मान रहे थे। मौजूदा बाइडन-हैरिस प्रशासन के कार्यकाल में महंगाई और आर्थिक तंगी ने भी आग में घी का काम किया। 

स्तंभकार रुचिरा गुप्ता ने अपने एक स्तंभ में लिखा है कि ‘जब मैं पेंसिल्वेनिया के बीचों-बीच से गुज़री, जहाँ मीलों-मील तक काफ़ी दूरी-दूरी पर घर थे, और आख़िरकार एक बड़ा गिरजाघर था। तो मुझे उसके जैसे चर्चों का प्रभाव समझ में आया। परिदृश्य ने खुद ही कहानी बयां कर दी: यहाँ-वहाँ घर, स्कूल और अस्पताल मीलों दूर, समुदाय-केंद्रित चर्चों के अलावा लोगों को जोड़ने के लिए कुछ भी न के बराबर है।’उन्होंने द एशियन एज में स्तंभ में लिखा है, ‘वे सिर्फ़ प्रार्थना स्थल नहीं थे, बल्कि स्थानीय केंद्र थे, जो शिक्षा, बच्चों की देखभाल, सामाजिक सेवाएँ और हाँ, राजनीतिक सीख देते थे। ऐसे समुदायों में जहाँ स्थानीय बुनियादी ढाँचा कमज़ोर और अलग-थलग है, ये चर्च ऐसी भूमिका निभाते हैं जिसका बखान करना भी मुश्किल है।’रुचिरा गुप्ता ने दूर-दराज के गाँवों में स्थानीय लोगों से बातचीत के आधार पर कहा है कि उनमें एक सामान्य बात यह घर कर गई कि ट्रंप अमेरिका को बचाने वाले शख्स हैं। रुचिरा ने एक उबर ड्राइवर से बात की जिसके अनुसार ट्रंप एक तरह से बाइबिल के पात्र हैं, एक नेता जो अराजकता की ओर बढ़ रही दुनिया के खिलाफ़ खड़ा है। उसके लिए, डेमोक्रेट सिर्फ़ एक प्रतिद्वंद्वी पार्टी नहीं थे; वे एक गिरोह थे जो सक्रिय रूप से अमेरिका के विनाश की साजिश रच रहे थे, जाहिर तौर पर चीन के साथ मिलकर। उन्होंने लिखा है कि जब उन्होंने पूछा कि उसने यह सब कहाँ सुना, तो उसने जवाब दिया मेरे चर्च से। उन्होंने लिखा है, ‘मैं हैरिसबर्ग के बाहर एक ट्रक चालक के भोजनालय में रुकी और एक खेत मजदूर से बातचीत की। अनजाने में वह लगभग वही बातें दोहरा रहा था जो मेरे उबर ड्राइवर ने कही थीं- ट्रम्प अमेरिका की रक्षा करने वाला व्यक्ति है, डेमोक्रेट भ्रष्ट अभिजात वर्ग हैं।’ उन्होंने लिखा है कि जब मैंने पूछा कि उसने यह कहाँ सुना है, तो उसने अपने चर्च की ओर इशारा किया। उन्होंने न्यूयॉर्क में एक होटल कर्मचारी के विचार भी साझा किए हैं। रुचिरा गुप्ता ने लिखा है कि जब मैंने पूछा तो उसने बताया कि वह अपस्टेट में एक बड़े इवेंजेलिकल चर्च में जाती थी, जहाँ उसके पादरी नियमित रूप से आप्रवास, गर्भपात और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरों जैसे मुद्दों पर बात करते थे। यह ऐसा था जैसे लगभग एक अभियान भाषण की तरह।रुचिरा ने लिखा है, ‘उन्होंने जो कहा, उसमें एक अजीब सी एकरूपता थी, मानो वे एक ही स्क्रिप्ट पढ़ रहे हों। इन वार्तालापों ने एक ऐसी ज़रूरी बात को रेखांकित किया, जिसे डेमोक्रेट और कमला हैरिस भूल गए: स्थानीय समुदाय से जुड़ना।’उनके अनुसार कमला हैरिस और डेमोक्रेटिक पार्टी ने संदेश देने के लिए मुख्यधारा के मीडिया और सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर भरोसा किया, ट्रम्प के अभियान ने स्वतंत्र इवेंजेलिकल मेगा-चर्चों के विशाल, शक्तिशाली प्रभाव का सीधे तौर पर इस्तेमाल किया।उन्होंने लिखा है, ‘यह विचार कि ट्रम्प अमेरिका के रक्षक हैं, सिर्फ़ कुछ ऐसा नहीं था जिस पर वे विश्वास करते थे; यह कुछ ऐसा था जिसे वे महसूस करते थे, जिसे हर हफ़्ते मंच से और सामुदायिक सभाओं के माध्यम से पुष्ट किया जाता था।बढ़ती महंगाई और आर्थिक तंगी मतदाताओं के दिमाग में थी और ट्रंप की टीम को यह पता था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कमला हैरिस के पास बढ़ती महंगाई को हल करने के लिए अमीरों पर कर लगाकर और मध्यम वर्ग को मूल्य वृद्धि से बचाकर एक खाका था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह एक असफल व्यवसायी थे जिसने छह बार दिवालियापन घोषित किया था।ट्रंप के अभियान ने डेमोक्रेट्स को केवल एक विरोधी पार्टी के रूप में नहीं बल्कि अस्तित्व के लिए खतरा, देशद्रोही, यहां तक ​​कि अराजकता के एजेंट के रूप में पेश किया।रुचिरा ने लिखा है कि ‘कमला हैरिस केवल अपनी नीतियों या पहचान के कारण नहीं हारीं। वह इसलिए हारीं क्योंकि उनका संदेश स्वतंत्र मेगा-चर्चों के अत्यधिक संगठित, गहरे प्रभावशाली नेटवर्क में प्रवेश नहीं कर सका, जिसने राष्ट्रीय मुद्दों को लाखों लोगों के दैनिक जीवन में बुना। ट्रम्प की टीम ने इन सभाओं में अपने राष्ट्रीय अभियान को स्थानीय स्तर पर पहुँचाया, उन्हें उनके जीवन के तरीके के रक्षक के रूप में पेश किया।