सीधी सपाट बात : ऐसा क्यों लग रहा है कुछ उम्मीदवारों के लिए चुनाव लड़ना धंधा है..

रणघोष खास. एक मतदाता की नजर से

 प्रत्येक विधानसभा सीट पर दो से तीन उम्मीदवार ऐसे नजर आएंगे जिन्हें पता है की उनकी चुनाव में जमानत जब्त है। या उससे भी बुरी स्थिति है। वे महज चुनाव के दौरान ही सक्रिय होते हैं उसके बाद वापस अपने ठिकानों पर चले जाते हैं। फिर भी चुनाव में लाखों करोड़ों रुपए खर्च करते हैं। उनके पास यह राशि कहां से आती है ओर वे ऐसा करके क्या हासिल करना चाहते हैं। इस सवाल का सही जवाब तलाशना बहुत जरूरी है। एक मोटे तौर पर एक बात उभरकर सामने आई। जिसमें यह साबित हो रहा है कि चुनाव किसी सेवा भाव के लिहाज से नही लड़ा जाता। इसके पीछे एक सोचा समझा एजेंडा काम करता है। कुछ मजबूत प्रत्याशी अपनी रणनीति के तहत उम्मीदवारों को अपने विरोधी का नाम राशि खड़ा करते हैं ताकि मतदाता एक  नाम देखकर उलझन में आकर इधर उधर वोट डाल आए। दूसरा जातिगत आधार पर चुनाव में ऐसे प्रत्याशियों को नाम से उतारा जाता है ताकि वोटों के बिखराव में फायदा मिल जाए। जो कमजोर प्रत्याशी जिसका अपना कोई वजूद नही होता उसके पूरे खर्चे का बजट पहले से ही वह उम्मीदवार वहन करता है जिससे उसे फायदा होना है ओर उसे चुनाव हर हालत में जीतना है। लगभग हर विधानसभा सीट पर यह खेल खुलेआम  नजर आ रहा  है। यहा वोटों को खरीदने ओर शराब से मतदाताओं को मदहोश करने का प्रचलन आम है। यहा गोर करने वाली बात यह है की चुनाव में एक मजबूत प्रत्याशी कई करोड़ रुपए पानी की तरह खर्च करता है। उसके पास यह राशि कहां से आती है। उस पर प्रशासनिक तंत्र कितनी निगरानी रखता है। क्या उसके पास कार्रवाई करने के तमाम संशाधन है। आमतौर पर प्रशासन भी चुनाव आयोग की गाइड लाइन पर जागरूकता अभियान चलाकर ही औपचारिकता पूरी करता नजर आ रहा है। चुनाव में इन तमाम हथकंडों के चलते 30 से 35 प्रतिशत वोट हासिल करने वाला उम्मीदवार जीत जाता है जबकि उसके विरोध में डाली गई 65 प्रतिशत वोट स्तरहीन होकर अगले पांच साल तक के लिए कोमा में चली जाती है। इसी कारण सत्ता में जनमत वाला जनप्रतिनिधि पहुंचने की बजाय जुगाड़ु ओर साम दंड भेद वाला उम्मीदवार विधायक बनकर सत्ता पर आसीन हो जाता है जो अगले पांच सालों तक अपनी मनमानी, तानाशाही और चुनाव में खर्च किए बेहिसाब पैसो को सूत समेत वसूलने के लिए लूट का खेल शुरू कर देता है। यह सिलसिला सालों साल चलता आ रहा है ओर आगे भी इसी तरह से चलता रहेगा। किसी भी सिस्टम में इतनी ताकत नही की वह इन्हें रोक कर दिखाए। सही मायनों में यही आज का लोकतंत्र है।