सीधी सपाट बात : 7 जनवरी को पशु पकड़ने का टेंडर छूटा, 30 को नगर परिषद पुलिस सहायता मांग रही है

आवारा पशुओ से ज्यादा घातक नप अधिकारियों की काम नही करने की मानसिकता


 रणघोष खास. सुभाष चौधरी

शहर में आए दिन लोगों पर जान लेवा हमला कर रहे आवारा पशुओं से ज्यादा नगर परिषद के अधिकारी और संबंधित ठेकेदार की मानसिकता  सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो रही है। रेवाड़ी विधायक लक्ष्मण यादव के लगातार प्रयासों से  7 जनवरी को आवारा पशुओं को पकड़ने का टेंडर छोड़ दिया गया था। कायदे से ठेकेदार को मौजूदा हालात को देखते हुए तुरंत पशुओं को पकड़ने की कार्रवाई शुरू कर देनी चाहिए थी लेकिन पहले की तरह सबकुछ कागजों में डकार लेने की मानसिकता ने उन्हें कुछ नही करने दिया। पिछले एक सप्ताह में जब दो से तीन घटनाए हो गई तो 30 जनवरी को नगर परिषद को होश आया की उसे आवारा पशु पकड़ने के लिए पुलिस प्रशासन के सहयोग की जरूरत है। इतना ही नही वह जिन जाटूसाना और धारूहेड़ा की गौशालाओं में इन पशुओं को छोड़ने की बात कह रही है वहां पहले ही रखने की जगह नही है। 

30 जनवरी गुरुवार को कार्यकारी अधिकारी पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर आवारा पशु पकड़ने वाली टीम के लिए पुलिस सहायता का अनुरोध कर रही है। अब सवाल यह उठता है की टेंडर छूटने के 23 दिन बाद नगर परिषद को यह याद आता है की उसे पुलिस की मदद चाहिए। अगर ये घटनाए नही होती तो क्या अधिकारी और ठेकेदार ईमानदारी से टेंडर प्रक्रिया के तहत समय पर पशुओं को पकड़ने का काम करते। जाहिर है हरगिज नही। इससे पहले भी करीब 30 लाख रुपए की राशि कागजों में पशुओं को पकड़ने पर खर्च की जा चुकी है जबकि हालात पूरी तरह से बेकाबू है। यहा बता दे की पिछले चार सालों में पशुओं के जानलेवा हमले में दो से तीन लोगों की दर्दनाक मौत हो चुकी है और 20 से ज्यादा बुरी तरह से घायल हो चुके हैं।

अधिकारी- ठेकेदार यह समझ ले पशु हमला चेहरा देखकर नहीं करते हैं

 नगर परिषद के अधिकारी, ठेकेदार और नगर परिषद को चलाने वाले जन प्रतिनिधि यह अच्छी तरह से समझ ले की सड़कों पर गुजरते नागरिकों पर पशु चेहरा देखकर हमला नही कर रहे हैं। जिन लोगों की जानें गई हैं, घायल आज तक पूरी तरह से ठीक नही हो पाए हैं। यह घटना उनके साथ भी हो सकती है। फिर उन्हें अहसास होगा पीड़ा क्या होती है।

शहर के हर मोर्चे पर पूरी तरह से नाकाम नगर परिषद

कई बार तो नगर परिषद के हालात को देखकर लगता है की यह लूट का अडडा बनने के अलावा कुछ नही है। एक भी ऐसा कार्य नही है जिस पर नप के अधिकारी गर्व के साथ शहर के लोगों को बता सके। कई सैकड़ों करोड़ों रुपए के कार्य शहर को सुंदर और साफ सुथरा बनाने के नाम पर होते हैं लेकिन हालात शर्मसार करने वाले होते हैं।

 यह सीधे तौर पर गौ पालको– अधिकारी– ठेकेदार का सीधा खेल

शहर  में जितनी भी गाए घूम रही है उसमें आधी से ज्यादा गौ पालकों की दुधारू गाय है। जो दूध निकालने के बाद उन्हें खुला छोड़ देते हैं। देखा जाए तो ये गौ पालक एक तरह से पाप कर रहे हैं। गायों को खुला छोड़ने के बाद ये कचरों में मुंह मारती नजर आती है। पॉलीथीन तक खा रही है। सबकुछ पता होते हुए भी अधिकारी, ठेकेदारों ने पहले भी इन गौ पालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नही की। उलटा पशु पकड़ने के नाम पर वसूली  का खेल चलता रहा। अगर इस मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए तो बड़ा खुलासा हो सकता है। 

 नप से बेहद खफा विधायक, विपुल गोयल से आग्रह, कड़ी कार्रवाई करें

 रेवाड़ी विधायक लक्ष्मण यादव नगर परिषद की कार्यप्रणाली से बेहद खफा है। वे 9 जनवरी को शहरी स्थानीय निकाय मंत्री विपुल गोयल को शहर की समस्याओं को लेकर लिखित में दे चुके हैं। समाधान शिविर में भी विधायक ने  नगर परिषद के अधिकारियों की जमकर खिंचाई की थी। इतना ही नही हरियाणा विजिलेंस की टीम भी नप में छापा मारकर उनकी नाकामियों का चिट्‌ठा तैयार कर चुकी है।

तबादला कराने की जुगाड़ में लगे हुए हैं अधिकारी

नगर परिषद के अधिकारी व कर्मचारी पूरी तरह से समझ चुके हैं की अब उनकी दाल गलने वाली नही है। इसलिए वे अपना तबादला कराने की जुगत में लगे हुए हैं।