रेवाड़ी- बावल- कोसली में बीजेपी इस वजह से हारेगी, समय रहते संभल जाए
रणघोष खास. ग्रांउड रिपोर्ट
हरियाणा विधानसभा चुनाव में किसी भी उम्मीदवार की हार जीत की प्रमुख वजह अब सामने आनी शुरू हो गई है। चर्चा भाजपा रेवाड़ी- बावल- कोसली विधानसभा सीट की । तीनों सीटों पर एक जैसी स्थिति है। अंतर इतना है की प्रत्याशी अपनी सामाजिक ओर पारिवारिक छवि से चुनाव को मजबूती दिए हुए हैं। इसमें रेवाड़ी से लक्ष्मण यादव और कोसली से अनिल डहीना शामिल है। बावल में डॉ. कृष्ण कुमार एकदम नए है। उनके बारे में यही सोच है की केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के आशीर्वाद से टिकट मिली है ओर स्वास्थ्य सेवाओं को छोड़कर समाजसेवा के लिए राजनीति में आए है। इसके अलावा डॉ. कृष्ण कुमार की राजनीति यात्रा ना कम है ओर ना ज्यादा है। इसके अलावा तीनों सीटों पर इस चुनाव में पार्टी संगठन के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं में जो करंट ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार और माहौल बनाने में होना चाहिए वह आपसी गुटबाजी, भीतरघात और एक दूसरे को नीचा दिखाने में ज्यादा दौड़ता नजर आ रहा है। इसकी प्रमुख वजह हाई कमान के निर्णय जिसे पार्टी का कार्यकर्ता अनुशासन, विचारधारा और मूल्य मानकर अमल में लाता रहा है। हाईकमान चुनाव में लगातार अपने इन्हीं फैसलों की धज्जियां उड़ाता नजर आता है। टिकट बंटवारों में यह नजारा खुलेआम होता है। इस वजह से कार्यकर्ता व पदाधिकारियों का अपने शीर्ष नेतृत्व के प्रति भरोसा तेजी से कम होता जा रहा है। दूसरा पार्टी में ऐसे कार्यकर्ताओं की फौज प्रवेश कर चुकी है जिसका मकसद अपने कारोबार को सरकार में रहकर सुरक्षित करना, मजबूत करना और अर्थ- बल के दम पर आगे बढ़ जाना। ये पार्टी एजेंडे के नाम पर अपने निजी एजेंडे पर ज्यादा मेहनत करते हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात इस चुनाव में सामने आई है। संगठन ने चुनाव प्रबंधन के नाम पर इस बार अच्छा खासा बजट प्रत्येक जिले में भेजा है। जिस पर पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं में अपने अपने तरीकों से इधर उधर करने की मारकाट सी मची हुई है। कुछ के ऑडियो भी सामने आ रहे हैं। प्रबंधन के नाम पर खामियों की कोई सीमा नही है। इसे चुनावी बाजार की तरह लिया जा रहा है जिस कारण अनुभवी, मौजिज और समाज के उन चेहरों को हाशिए पर रख दिया गया है जिनकी आवाज ओर नाम पर वोट घर से बाहर निकलकर सड़कों पर झुंड बनाकर दौड़ने लगती थी। प्रबंधन में फाइनेंसर को आगे रखा गया है जिस वजह से स्वाभिमानी ओर आत्मसम्मानी लोग उन्हें देखकर पीछे हट रहे हैं। किस व्यक्ति में क्या विशेषता है का उपयोग करने की बजाय उसकी हैसियत बताकर अर्थ बल पर उसे दबाने का प्रयास इस बार घातक बनता जा रहा है। इस बार भाजपा की कोई लहर नही है। प्रत्याशी का व्यवहार और समाज में हैसियत के साथ बेहतर खराब प्रबंधन ही उसकी हार जीत की प्रमुख वजह बनेगी। अगर समय रहते इस पर कंट्रोल कर लिया तो स्थिति बेहतर भी हो सकती है। स्टार प्रचारकों का असर महज 24 घंटे तक का रहता है।