रेवाड़ी- बावल- कोसली में कांग्रेस उम्मीदवार अपने निजी कारणों से हारेंगे, समझदार टीम बचा सकती है
रणघोष खास. ग्राउंड रिपोर्ट
हरियाणा विधानसभा चुनाव में लगभग हर हर सीट पर कांग्रेस का मुकाबला सीधे भाजपा से हैं। टक्कर इतनी जबरदस्त है की एक समझदारी ओर एक गलती हार जीत में बदल सकती है। किसी की कोई लहर नही है। सबकुछ उम्मीदवार के चाल चरित्र, कुशल व्यवहार, सोच, अनुभव ओर समझदारी पर टिका हुआ है। कांग्रेस में अलग अलग दृष्टिकोण से प्रत्याशी जनता के बीच पहुंच रहे हैं। रेवाड़ी जिले की तीन सीटों कोसली, बावल एवं रेवाड़ी में कांग्रेस बेहद मजबूत मुकाबले में पहुंच चुकी है। यहा भाजपा को हर कदम पर अच्छा खासा पसीना बहाना पड़ रहा है। उसकी अहम वजह जितना करंट कांग्रेसी ओर प्रत्याशी समर्थकों में नजर आ रहा है उतना भाजपा में नही है। इसके बावजूद भी कांग्रेसी उम्मीदवार यह चुनाव अपनी नादानियों, कमजोर प्रबंधन और पुराने ढर्रे पर चलती आ रही मानसिकता की वजह से हार सकते हैं। रेवाड़ी से शुरूआत करते हैं। यहा सबकुछ कप्तान परिवार ही कांग्रेस ओर चुनाव प्रबंधन है। इस सीट पर इस परिवार का लंबे समय तक राज रहा है। इसकी एक नही अनेक वजह है। परिवार के मुखिया ओर छह बार यहां से विधायक रह चुके कप्तान अजय सिंह के पास अच्छे से अच्छे विरोधी को अपना बना लेने का गजब सा हुनर है। उनके पास चुनाव जीतने का अच्छा खासा गणित है। इस बार प्रबंधन ऊपर नीचे और बिखरा हुआ नजर आता है। इसकी वजह पुराने ओर सुलझे समझदार समर्थकों की टीम का इधर उधर हो जाना ओर परपंरागत सोच को समय के साथ नही बदलना विशेष तौर से शामिल है। उम्र के साथ कप्तान में वो ताकत भी साथ नही दे रही है। चिरंजीव राव ने पिछले पांच सालों में अपनी पोजीशन बनाने का प्रयास किया है लेकिन गुंजाइश बहुत है। मॉडल टाउन स्थित अपने आवास पर ऐसी टीम अभी तक नही बना पाए हैं जो उनकी अनुपस्थिति की कमी को महसूस नही होने दे। इस परिवार के अनुभवी पुराने वर्कर अलग अलग वजहों से छोडकर जा चुके हैं। एक समय था जब कप्तान का परिवार इन्हीं वर्करों की वजह से विपरित हालातों में चुनाव जीत जाता था। पिछला चुनाव भी चिरंजीव राव ने भाजपा में टिकट को लेकर जबरदस्त भीतरघात ओर बगावत की वजह से बिखरे वोटों की वजह से जीता था ना की कुशल प्रबंधन से। इससे पहले भी कप्तान की जीत वोटों के बिखराव में जीतती रही है। इस बार भी यही स्थिति नजर आ रही है लेकिन विरोधी इस बार कप्तान की रणनीति को समझकर उसकी काट करने में जुट गए हैं। कप्तान के समर्थकों में अधिकांश समझदार कम स्टाइलिश ज्यादा नजर आ रहे हैं। इनका भ्रम है की भाग्य ने कप्तान के घर डेरा डाला हुआ है वह इस बार भी अपना कमाल दिखाएंगा। इसलिए वे अपने अनुभव या बेहतर कार्य कौशल से चारों तरफ बिखरी काबलियत को एकजुट करने की बजाय मै ही श्रेष्ठ हूं की मानसिकता में ज्यादा दिख रहे हैं। इसी वजह से वे सोशल मीडिया पर हो रही उछल कूद से ही राजनीति का पैमाना बना रहे हैं जबकि वह एक तरह से ब्यूटी पार्लर वाली राजनीति का स्वरूप है। यहां कप्तान अजय सिंह एवं उनके बेटे चिरंजी राव अपनी आंतरिक क्षमता एवं व्यक्तित्व को अलग अंदाज में दिखा पाने में कमजोर साबित हो रहे हैं। वे बस आरो प्रत्यारोप की राजनीति को अपनी ताकत मान रहे हैं। उधर यहा भाजपा के उम्मीदवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रेरित होकर अपनी आतंरित ताकत को सार्वजनिक तोर पर दिखा रहे हैं। यह हरगिज नही भूलना चाहिए की 2013-2014 के लोकसभा चुनाव मे भाजपा ने अपने पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के संघर्ष को एक चाय बेचने वाला के तोर पर जबरदस्त तरीके से पेश कर देश के जनमानस को बदल कर रख दिया था जिसका प्रभाव आज तक कायम है। उधर कोसली में पूर्व मंत्री जगदीश यादव की टीम ऐसा कर पाने में कामयाब रही है। इस वजह से संघर्ष में जन्मी सहानुभूति इस प्रत्याशी को अलग ही ताकत दे रही है। यही स्थिति बावल में कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. एमएल रंगा की उन्हें मजबूत करती जा रही है। अपनी सभाओं में डॉ. रंगा सार्वजनिक तौर पर यह कहते हुए हिचक नही करते की उन्होंने इन स्थानों पर बचपन में मजदूरी की थी। खेत में घास तक काटी थी। साइिकल पर बर्फ बेची थी। यह उम्मीदवार की मजबूत छवि को पेश करती है जिससे आमजन मानस सीधा जुड़ाव महूसस करता है। यहां भाजपा उम्मीदवार डॉ. कृष्ण कुमार कमजोर साबित हो रहे हैं।