श्रमिक संगठनों ने लेबर कॉडस की देश में प्रतिलिपि जलाकर कड़ा विरोध जताया

4 श्रम कानूनों को रद्दी की टोकरी में डाल कर उसकी जगह चार लेबर कोडस बनाने के विरोध में 10 श्रमिक संगठनों ने लेबर कॉडस की देश में प्रतिलिपि जलाकर कड़ा विरोध जाहिर किया। श्रमिक संगठन एआई यू टी यूसी के राज्य प्रधान कामरेड राजेंद्र सिंह एडवोकेट ने बताया की चार लेबर कोडस, कृषि कानूनों की तरह खतरनाक है। लेबर कोडस एवं कृषि कानूनों का एकमात्र उद्देश्य पूंजीपतियों की लूट का पुख्ता इंतजाम करना है एवं श्रमिक और किसानों का भयंकर शोषण करना है। 4 लेबर कोड्स को 1 अप्रैल से लागू कर दिया गया है। श्रमिक विरोधी लेबर कोड्स के चलते यूनियन बनाने, हड़ताल करने पर भारी रुकावट डाल दी गई है। श्रमिकों की हड़ताल को तिकड़म बाजी के रास्ते अपराध की श्रेणी में लाया जा रहा है। फैक्ट्री के अंदर कानून लागू करना मालिक की मर्जी पर छोड़ दिया गया है। कारखाना अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, ट्रेड यूनियन एक्ट, बोनस एक्ट, पीएफ एक्ट आदि को समाप्त कर दिया गया है। मालिकों को 12 घंटे काम करवाने का अधिकार दे दिया गया है। 49 श्रमिक अगर ठेकेदार के नीचे काम कर रहे हैं तो उन मजदूरों का श्रम विभाग से पंजीकरण अनिवार्य नहीं रहेगा। श्रम विभाग की शक्तियों को छीन कर उसे महज फैंसी लेटर की भूमिका में ला दिया है। जिस कंपनी में 300 श्रमिक कार्यरत हैं उस कंपनी की तालाबंदी, छटनी करने के लिए सरकार की अनुमति के नियम को हटा दिया गया है। न्यूनतम वेतन निर्धारित करने के मापदंडों को समाप्त कर दिया गया है। न्यूनतम वेतन निर्धारित करने के लिए श्रमिक संगठनों के साथ जो समझौता बोर्ड का गठन होता था उसे खत्म कर दिया गया है। घंटा या आधा घंटा काम करने का आधार पर मजदूरी देने का प्रावधान भी किया गया है और स्थाई नौकरी के बजाए फिक्सड ट्रम योजना को लाया गया है। इसके चलते कोई भी श्रमिक स्थाई नौकरी में नहीं रहेगा, उसको निश्चित अवधि के लिए नौकरी पर रखा जाएगा और फिर उसे हटा दिया जाएगा जो श्रमिक फिक्स्ड श्रम पर काम करेंगे उनके लिए श्रम कानून लागू नहीं होंगे, मालिकों की मनमानी चलेगी। संगठित क्षेत्र के श्रमिकों की यूनियन में बाहरी व्यक्तियों को शामिल करने का जो प्रावधान था उसे हटा दिया गया है, केवल असंगठित क्षेत्र के मजदूरों यूनियन में दो बाहरी व्यक्तियों को लिया जा सकता है। हड़ताल करने के लिए जो 15 दिन के नोटिस का प्रावधान था अब उसे 60 दिन कर दिया गया है। सामूहिक मांग पत्र पर प्रबंधक एक श्रमिक से भी समझौता कर सकता है। 44 एवं 45 श्रम सम्मेलनों की सिफारिशों से आशा, मिडडे, आंगनबाड़ी जैसी स्कीम वर्कर्स बाहर कर दिया गया है। मोदी की सरकार ने श्रमिक संघर्षों से हासिल अधिकारों को इन लेबर कोडस के माध्यम से पूंजीपतियों के हाथों के हक मै छीन लिया है। मोदी की सरकार का इज डूइंग बिजनेस का नारा पूंजीपतियों के लिए है। पूंजीपतियों के मुनाफा लूट में जो बाधाएं थी उनको इज डूइंग बिजनेस के अंतर्गत खत्म कर दिया गया और ये लेबर कोड्स लाए गए हैं। किसान आंदोलन की तरह, आज देश में श्रमिक आंदोलन की जरूरत है।

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