सामयिक आलेख: ‘जन’ को रोकेगी दीवार

देश के दिल ‘दिल्ली’ में जबरिया प्रवेश रोकने की पूरी तैयारी


सुशील कुमार ‘नवीन’

बाहर से कोई अन्दर न आ सके, अन्दर से कोई बाहर न जा सके।

सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो,सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो…। 70 के दशक में आनंद बख्शी साहब ने जिस संजीदगी के साथ इस गीत को लिखा था, उसी रूप में लक्ष्मी-प्यारे की धुन ने गीत को ऐसी अमरता प्रदान की, वक्त-बेवक्त गुनगुनाने का मन कर ही जाता है। सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो…. इतना ही गुनगुनाने पर उस दौर के युवा और आज के बुजुर्गों के मन में ये गीत अब भी हिलोरें पैदा करने वाला है। खैर छोड़िए वो एक प्रेम कहानी का गीत था। वो दौर दूसरा था ये दौर दूसरा है..। कृषि कानूनों को रद्द करवाने पर दिल्ली बॉर्डर पर अड़े बैठे किसानों के लिए फिलहाल पुलिस प्रशासन द्वारा ऐसी ही व्यवस्था की जा रही है। 26 जनवरी को जो हुआ वो फिर ना होने पाए। ऐसे में फिलहाल पुख्ता प्रबंध किए जा रहे है कि किसान तो क्या कोई परिंदा भी दिल्ली सीमा को पार न कर पाए। नुकीले सरियों को सड़क के बीचों-बीच गाड दिया गया है ताकि कोई वाहन आगे पार न हो सके। किसी ने प्रयास भी किया तो टायर पंचर नहीं होगा, सीधे फट ही जाएगा। कंक्रीट की मोटी दीवारें इस प्रकार बनाई जा रही है कि किसी भी हालत में ये टूटने न पाएं। कहीं 4 तो कही 7, 12 लेयर की बेरिकेडिंग निश्चित रूप से किसी बड़े अनिष्ठ के होने की संभावना सी जता रही हैं। सुरक्षा के हिसाब से ये तैयारियां बिल्कुल सही है। दिल्ली देश का दिल है। और दिल में कोई जबरदस्ती प्रवेश थोड़े ही न कर सकता है। इतिहास गवाह है दिल तक पहुंचने के लिए जिंदगियां कुर्बान हो जाती है। दिल तक पहुंचना तो दूर,  दिल का दर तक नहीं खुल पाता है। दो माह से भी अधिक समय से किसान बॉर्डर पर डेरा जमाए बैठे हैं। दिल्ली में एक ही दिन घुसे थे,उसका प्रभाव अब तक नहीं मिट पाया है। उसकी पुनरावृति न होने पाए, इसलिए ऐसे ठोस प्रबन्ध निश्चित रूप से किये जाने जरूरी है।  यहां एक बात विचारणीय है कि क्या विचारों और भावनाओं को किसी दीवार से रोका जा सकता है? किसान आंदोलन में फिलहाल ये दोनों ही प्रभावी है। टिकैत के दो आंसुओं से मृत आंदोलन के फिर से मजबूती से खड़े हो जाना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। ऐसे प्रबन्धों से किसानों के आवागमन पर कितना फर्क पड़ पाएगा। यह तो वक्त की बात है। फिलहाल तो प्रशासन के प्रबन्ध ऐसे ही है कि कोई बाहर से अंदर ना जा पाए। अंदर वाले बाहर कैसे आ पाएंगे यह सोचने का अलग विषय है।

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