अनुच्छेद 19 व 21 के तहत मौलिक अधिकार निजी व्यक्तियों/संस्थाओं के ख़िलाफ़ भी लागू होते हैं: कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 में निहित मौलिक अधिकारों को लेकर मूल सोच यह है कि इन्हें केवल राज्य के ख़िलाफ़ लागू किया जा सकता है, लेकिन समय के साथ यह बदल गया है.


 रणघोष अपडेट. नई दिल्ली


 सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 में निहित मौलिक अधिकार न केवल राज्य और इसकी इकाइयों बल्कि अन्य लोगों के खिलाफ भी लागू किए जा सकते हैं. फैसला लिखने वाले जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यम और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, बीआर गवई एवं एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि जब अनुच्छेद 21 की बात आती है तो राज्य और गैर-राज्य तत्वों से नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होती है. जस्टिस बीवी नागरत्ना ने फैसले से असहमति जताई है.लाइव लॉ के मुताबिक, न्यायाधीशों के बहुमत ने कहा कि शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद 21 का विस्तार स्वास्थ्य, पर्यावरण और कैदियों के अधिकारों एवं अन्य को शामिल करने के लिए किया है.पीठ ने एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य, एक मामला जहां शीर्ष अदालत ने वामपंथी नेता की निवारक नजरबंदी के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि अनुच्छेद 21, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है, के तहत किसी भी अदालत को कानूनी मानक की उचित प्रक्रिया लागू करने की आवश्यकता नहीं है.लाइव लॉ ने जस्टिस रामासुब्रमण्यन के हवाले से लिखा है, ‘मूल सोच कि इन अधिकारों को केवल राज्य के खिलाफ लागू किया जा सकता है, लेकिन समय के साथ यह बदल गया है.’जज ने कहा कि जस्टिस केएस पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक फैसले में निजता के अधिकार को बरकरार रखा गया, व्यक्तियों को राज्य एवं गैर-राज्य तत्वों के हस्तक्षेप के खिलाफ भी संरक्षण प्रदान किया गया.लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस नागरत्ना ने अपने असहमतिपूर्ण फैसले में ‘निजी व्यक्तियों और संस्थाओं के खिलाफ इन संवैधानिक तौर पर पवित्र अधिकारों के इस्तेमाल की अनुमति देने की व्यवहारिक कठिनाई पर प्रकाश डाला.’उन्होंने कहा, अनुच्छेद 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों के इस तरह के आवेदन की अनुमति केवल तब ही दी जा सकती है, जब मौलिक अधिकार और समान सामान्य कानूनी अधिकार के बीच प्राथमिक अंतर हो.उन्होंने कहा कि एक निजी निकाय अपनी निजी क्षमता में ‘स्वयंसिद्ध रूप से मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के दावों के लिए उत्तरदायी’ नहीं हो सकता है.ऐसे मामलों में रिट अदालतें जो मौलिक अधिकारों के मामलों से नहीं निपटती हैं, उन्हें ऐसे विवादों से भी निपटना होगा जो ऐसे सवालों से संबंधित हैं.

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