आइए देश के पांच मामलों से समझे हमारे देश में चेहरा देखकर तिलक क्यों होता है

कोरोना एक- कानून एक फिर नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन के दलालों पर देशभर में कार्रवाई अलग अलग क्यों


    इन पांच रिपोर्ट से यह खुलासा हो जाएगा कि एक जैसे मामले होते हुए भी किसी जज ने आरोपियों को जेल भेजा तो किसी ने जमानत देने में एक मिनट भी नहीं लगाईं। इतना ही नहीं बिहार के केस में तो प्रभावशाली नेता इन दलालों को बचाने में जुट गए। अधिकतर केसों में नकली दवा- इंजेक्शन का खेल करने वाले तुरंत जमानत पर आकर दुबारा से इस कारोबार में पूरे जोश के साथ जुट गए हैं।


रणघोष खास. प्रदीप नारायण

कोविड-19 मरीजों के इलाज में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाने का देश के अलग अलग कोनो में पर्दाफाश हुआ। मोटे- मोटे अक्षरों में मीडिया में जबरदस्त कवरेज हुईं। पुलिस ने जमकर शाबाशी ली। ऐसा दिखाया और बताया गया मानो हमारे देश का तंत्र संकट के समय कितनी ईमानदारी के साथ मुस्तैद ओर सजग नजर आता है। हकीकत में यह सब सफेद झूठ के अलावा कुछ नहीं है।  उलटा हमारे देश का सिस्टम किसी की जिंदगी से खेलने वाले इस कारोबार को फलने फूलने के लिए नए तौर तरीके ओर बता जाता है। हाल ही में हरियाणा के रेवाड़ी- भिवानी समेत अनेक जिलों में रेमडेसिविर नकली इंजेक्शन बेचने के मामले में पकड़े दलाल सत्यनारायण समेत चार लोगों को  जितनी तत्परता से पुलिस ने पकड़ा उतनी ही चुस्ती फुर्ती से उन्हें कोर्ट से आसानी से जमानत मिल गईं।हम देश भर के अलग अलग राज्यों में नकली रेमडिसिविर इंजेक्शन को लेकर सरकार- पुलिस और न्यायालय की गई कार्रवाई की 5 केस की स्टडी रिपोर्ट बता रहे हैं जिससे साफ अंदाजा  लग जाएगा कि देश में कोरोना ने अपना रंग नहीं बदला लेकिन हमारा सिस्टम कार्रवाई के नाम पर गिरगिट की तरह बदलता रहा। आइए जानिए ओर सही लगने पर इस लेख को ज्यादा से ज्यादा शेयर करिए

केस नंबर 1.  यह मामला उत्तराखंड  रूड़की का है। एक मई को मीडिया ने इसे एक्सपोज किया।  स्थानीय ड्रग विभाग ने  रुड़की और आसपास क्षेत्रों में नकली दवा बनाने के कई मामले पकड़े थे। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने उत्तराखंड में नकली रेमडेसिविर बनाने वाली फैक्टरी पर छापा मारा था। पुलिस ने जिस महिला को नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन के साथ पकड़ा है, वह रुड़की निवासी एक व्यक्ति से इंजेक्शन की खरीद के बाद सप्लाई करती थी। रुड़की के नन्हेड़ा में कुछ लोगों ने एक फर्जी फर्म खोली हुई है, जिसकी आड़ में अन्य कंपनियों के एंटीबायोटिक पर रेमडेसिविर का लेबल लगाकर अवैध रूप से बेचा जाता है। इसमें कइयों की गिरफ्तारी भी हुई लेकिन वे जल्द ही जमानत पर बाहर आ गए और दुबारा से इसी कारोबार में जुट गए हैं।

केस नंबर 2.  यह मामला एमपी जबलपुर का है। 8 मई को मीडिया ने इसका खुलासा किया। गुजरात के मोरबी शहर से शुरू हुई नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन की जांच की आंच जबलपुर तक पहुंच गई। इस मामले  में  सबसे पहला नाम भगवती फार्मा के संचालक सपन जैन का सामने आया है।  सपन जबलपुर में भी बड़े पैमाने पर नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन का कारोबार कर चुका है। इतना सबकुछ होने के बाद अब इस तरह का खेल करने वाले खुलेआम घूम रहे हैं बल्कि डर वो रहे हैं जिन्होंने इस मामले का खुलासा करने में पुलिस की निस्वार्थ मदद की थी।

केस नंबर 3.  29 अप्रैल को गाजियाबाद से  मीडिया में इसका पर्दाफाश हुआ था जिसमें बताया गया कि रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी के आरोप में गिरफ्तार प्रख्यात न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मोहम्मद अल्तमश की मेडिकल स्टोर वालों से तगड़ी सेटिंग थी। इतनी किल्लत के बावजूद इसकी पर्ची देख मेडिकल स्टोर वाले तत्काल इंजेक्शन दे देते थे। यहां तक कि एक ही पर्ची पर दस-दस इंजेक्शन भी मिल जाते थे। एक अनुमान के मुताबिक, डॉक्टर प्रतिदिन 100 इंजेक्शन निकलवाता था और फिर उसकी कालाबाजारी करता था। यह खुलासा खुद डॉ. अल्तमश ने पुलिस की पूछताछ में किया था। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, डॉ. अल्तमश खुद एम्स में काम कर रहा था, इसलिए उसकी पर्ची पर एम्स के स्टोर से दवाइयां मिलने में दिक्कत नहीं होती थी। लेकिन उसकी सेटिंग दिल्ली सरकार के अस्पतालों में भी थी। इसके अलावा तमाम दवा वितरकों से उसके अच्छे संबंध थे, चूंकि वह खुद डॉक्टर था, इसलिए वितरक उसे थोक में भी इंजेक्शन की खेप पहुंचा देते थे। डॉ. अल्तमश और उसके दो साथियों कुमैल और जाजिम को गाजियाबाद नगर कोतवाली पुलिस और अपराध शाखा की टीम ने बुधवार को गिरफ्तार किया था। आरोपी के पास से रेमडेसिविर के 70 और दो अक्टेमरा एंजेक्शन के अलावा 36 लाख 10 हजार रुपये नकद बरामद किए गए थे। आरोपियों की सेटिंग गाजियाबाद के अस्पतालों में भी थी। पर्ची तैयार होने से पहले ही आरोपियों को खबर मिल जाती थी कि किस अस्पताल में किसको रेमडेसिविर की आवश्यकता है। आरोपियों ने डॉक्टर से मरीज के परिजनों पर दबाव भी बनाते थे।आरोपी डॉक्टर अल्तमश ने पुलिस की पूछताछ में बताया कि स्टोर पर सिप्ला कंपनी के इस इंजेक्शन की कीमत 4000 रुपये है, लेकिन उनकी पर्ची पर मेडिकल एक हजार रुपये अपना मुनाफा रखकर 5000 रुपये में दे देता था। वहीं दो हजार रुपये वह खुद रखकर सात हजार रुपये में यह इंजेक्शन दूसरे आरोपी जाजिम को देता था। इसके बाद जाजिम और कैमूल इसे 40 से 50 हजार रुपये तक में बेचते थे।रेमडेसिविर की कालाबाजारी के आरोप में गिरफ्तार प्रख्यात न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मोहम्मद अल्तमश की जमानत याचिका अदालत ने खारिज कर दी है। इसी के साथ उसे और उसके दोनों साथियों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है। जब आरोपी को अदालत में पेश किया गया तो उसके वकील पहले से जमानत याचिका लेकर अदालत में मौजूद थे, लेकिन अदालत ने अभियोजन पक्ष की दलील सुनने के बाद आरोपी की याचिका पर ज्यादा विचार नहीं किया।

केस नंबर चार: 20 दिन पहले एमपी के ग्वालियर में  कोविड महामारी के दौर में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बेचने के आरोपी वीरेंद्र धाकड़ को न्यायालय ने जमानत का लाभ देने से मना कर दिया। आरोपी की ओर से गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत का आवेदन पेश किया था। न्यायाधीश प्रवीण हजारे ने आवेदन खारिज करते हुए कहा- महामारी के दौर में जीवनरक्षक दवाओं की कालाबाजारी में वृद्धि को देखते हुए प्रथम दृष्टया आरोपी को राहत नहीं दी जा सकती। अपर लोक अभियोजक वसीम खान ने बताया कि फरियादी मनीष शर्मा ने अपने रिश्तेदार के इलाज के लिए इंजेक्शन खरीदे थे। जांच में पता चला कि ये इंजेक्शन नकली है। इसकी शिकायत पुलिस थाना बहोड़ापुर में की गई। जांच के बाद पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया।

केस नंबर 5:  बिहार से जुड़े इस मामले को मीडिया ने 8 मई को दिखाया था। इसमें भारत के पड़ोसी देश नेपाल की पुलिस ने नकली रेमडेसिविर बनाने वाले गिरोह का पर्दाफाश किया था।. इस गिरोह के सदस्य नेपाल में 90 रुपये में मिलने वाले एंटीबायोटिक इंजेक्शन ‘स्टासेफ’ की बोतलों में रेमडेसिविर का लेबल लगा कर सात से 35 हजार रुपये में बेचने का काम करते थे. सीमावर्ती इलाका होने के कारण ये गिरोह बिहार  के अररिया समेत अन्य जिलों में भी फैला हुआ था. भारत और नेपाल के लोग मिलकर कोरोना काल में ये गोरखधंधा कर रहे थे। दरअसल, नेपाल के विराटनगर नगर पुलिस की विशेष शाखा को सूचना मिली थी कि दवा दुकानदार नकली दवा का कारोबार कर रहे हैं. सूचना के आधार पर दो दवा दुकानदार सोनू आलम और श्रवण यादव की गिरफ्तारी की गई. उनके पास से नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन भी बरामद किए गए हैं।एंटीबायोटिक दवा स्टासेफ और कोरोना के इलाज में कारगर रेमडेसिविर इंजेक्शन के डब्बे का साइज एक होने का फायदा ये नकली दवा के कारोबारी उठा रहे थे. ये कोरोना मरीजों को सात से 35 हजार रुपये लेकर नकली रेमडेसिविर देते थे। यहां गौर करने लायक बात यह है कि  पकड़े गए नकली दवा कारोबारियों का नाम पहले भी दवा तस्करी में आ चुका है. इससे पूर्व टिकुलिया से सटे नेपाल के दरहिया से श्रवण यादव को भारत से रेमडेसिविर इंजेक्शन की तस्करी में दवा के साथ पुलिस ने गिरफ्तार किया था. लेकिन राजनीतिक दबाव के बाद जमानत पर वह रिहा हो गया था। अभी भी इन दलालों को बचाने के लिए नेता पूरी मुस्तैदी से जुटे हुए हैं।

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