आज हालात सरकार, अधिकारी, शिक्षकों को बैंच पर खड़ा करने के हैं विद्यार्थियों को नहीं

रणघोष खास. सुभाष चौधरी


दो दिन पहले हरियाणा सरकार को अचानक याद आया अरे कोविड-19 का हमला हुआ था। बच्चे कहां स्कूल गए होंगे। अभिभावक परेशान हो रहे हैं। ऐसे में हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड का दिमाग खराब हो गया है कक्षा 5-8 वीं का बोर्ड लागू कर रही है। हटाओ इसे अगले साल देखेंगे। बोर्ड का क्या जाता है। अधिकारियों ने एक सुर में कहा यस सर.। इस गलती के लिए अधिकारियों की नौकरी या वेतन में तो कटौती होने वाली है नहीं। बोर्ड का विरोध कर रहे प्राइवेट स्कूलों के लिए यह खबर ठीक उसी तरह है जिस तरह देश की सीमा पर हमारी सेना दुश्मनों को भगा देती है। नतीजा लाखों अभिभावकों से स्कूलों की तरफ से बोर्ड के नाम पर जमा की गई फीस कब वापस होगी यह पता नहीं। है ना कमाल की बात। अगर छात्र की  समय पर फीस जमा नहीं होती है तो लेट फीस लगती है। यहां तक की जुर्माना लगाया जाता है। बोर्ड कब फीस वापसी करेगा इसका कोई मापदंड नहीं है। यही  मानसिकता साबित करती है शिक्षा के हत्यारे बन चुके हैं हमारे देश के नेता, सरकारें, शिक्षा की नीतियां बनाने वाले। ये बेहतर के नाम पर शिक्षा का गला घोंटते हैं। द्रोपदी की तरह  सरेआम उसका आए दिन चीरहरण करते रहते हैं। कोई कसर रह जाती हैं तो गली मोहल्ले में खुली शिक्षा की दुकानों के ठेकेदार अपनी चकाचौंध से अभिभावकों को जीते जी मारने में लग जाते हैं। हालात देखिए साहब। सरकारी स्कूल के शिक्षक अपनी गाड़ियों से स्कूल पहुंचते है और उनके विद्यार्थी टूटी साइकिल व पैदल..। सरकारी स्कूलों में पढ़ाते समय इन शिक्षकों को शर्म आती हैं। वजह  क्लास में पढ़े जरूरतमंद बच्चों की कमीज से आ रही पसीने की बदबू इन्हें परेशान करती हैं। इसलिए तो येअपने बच्चों को इनके साथ पढ़ाने में तौहीन समझते हैं। हां इतना जरूर है कि ये शिक्षक बेहतर शिक्षा के नाम पर विद्यार्थियों की मिशाल पेश की बजाय खुद की प्रतिभा को ज्यादा निखार रहे है। अब आते हैं अभिभावकों पर है। वर्तमान परिवेश में अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के प्रति ईमानदार नहीं है। सोचिए गरीब बताकर 134 ए के तहत प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराने की जिद पर अडे अभिभावक गरीब कैसे हो सकते हैं। जब हैसियत इजाजत नहीं दे रही है तो अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला कराइए। दिखावे के नाम पर अपने बच्चों को संपन्न परिवारों के बच्चों के साथ बैठाकर उन्हें हीन भावना से जीते जी क्यों मार  रहे हैं। ये वो अभिभावक है जो ब्यूटी पार्लर से निकल रहे चेहरों को सुंदरता मान रहे हैं। आज देश के जितने भी महान एवं सफल लोग हुए हैं उसमें 99 प्रतिशत तो सरकारी शिक्षण संस्थानों से पढ़कर निकले हैं। आज भी राष्ट्रीय स्तर पर कोई परिणाम आता है उसमें सरकारी स्कूलों में पढ़े बच्चों की संख्या लाजवाब होती है। ये अभिभावक क्यों भूले जाते हैं कि तीन साल पहले कक्षा दसवीं एवं 12 वीं की बोर्ड परीक्षाओं में सरकारी स्कूलों की बेटियों ने ही हरियाणा में प्रथम पोजीशन हासिल की थी। कुल मिलाकर हम सभी मिलकर शिक्षा की गरिमा, पवित्रता, संस्कार एवं सोच के साथ ना केवल दुराचार कर रहे हैं साथ ही शिक्षा के बाजार में उसे सरेआम नीलाम करते हुए बोली लगा रहे हैं। इसके लिए सबसे ज्यादा वे शिक्षक जिम्मेदार है जिसकी कथनी करनी में साफ अंतर नजर आ रहा है। इन शिक्षकों ने खुद को वेतनभोगी- सुविधाभोगी बना लिया है। वे भूल गए कि गुरु के तौर पर इतिहास आज भी उन्हें ईश्वर से बड़ा सम्मान देता आ रहा है।

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