इस जमीनी रिपोर्ट में छिपा है दक्षिण हरियाणा में किसान आंदोलन से जुड़ा सबसे बड़ा सवाल

अहीरवाल में क्यों नहीं हो रहा किसान आन्दोलन/ किसान आन्दोलन से दूर क्यों है यहां की जमीन


रणघोष खास. राहुल यादव

26 नंवबर 2020 को जब किसान दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे तो उनकी योजना थी कि दिल्ली को चारों तरफ़ से घेरा जाए ताकि सरकार पर ज़बरदस्त दबाव बनाया जा सके।

सिंघु, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर घेरने में तो किसान सफ़ल रहें। मगर दिल्ली का गुरुग्राम की तरफ़ सरहौल गांव के नज़दीक लगने वाला बॉर्डर किसान नहीं घेर पाए। ये बॉर्डर मुख्यतः दिल्ली को जयपुर से जोड़ने वाले नेशनल हाईवे नम्बर 8 पर पड़ता है।किसानों द्वारा दिल्ली – गुरुग्राम बॉर्डर न घेर पाने के पीछे मुख्य कारण था अहीरवाल। दिल्ली से सटे हरियाणा के सभी इलाक़ों में किसान आन्दोलन की मज़बूत पकड़ है। चाहे आप दिल्ली से सटे बहादुरगढ़ – रोहतक बॉर्डर को देख लीजिए, सोनीपत- कुंडली बॉर्डर को देख लीजिए या फिर गाज़ीपुर बॉर्डर को देख लीजिए. मगर इन सब में एक अपवाद है दिल्ली- गुडगाँव बॉर्डर जहाँ आपको किसान आन्दोलन का जरा सा भी असर देखने को नहीं मिलेगा। ऐसा क्यों है कि किसान आन्दोलन को लेकर अहीरवाल के लोगों में किसी प्रकार का कोई उत्साह नहीं है,इसको विस्तार से समझतें हैं।

अहीरवाल में बाकी हरियाणा के किसानों के मुक़ाबले कम ज़मीन होना

रेवाड़ी ज़िले के 55 वर्षीय किसान रविंदर 1.5 एकड़ भूमि पर खेती करते हैं. उनसे जब हमने किसान आन्दोलन के बारे में पुछा तो उन्होंने कहा, “ देखो जी हमारी साइड तो लोगों के पास ज़मीन ही बहुत कम बची है. ज्यादातर 1-2 कीले वाले किसान हैं. हमारी खेती से कोई मोटी कमाई तो होती नहीं इसलिए हम इस लफड़े में नहीं पड़ेंगे। किसान रविंदर की कम ज़मीन वाली बात की तस्दीक करने के लिए हमने हरियाणा सरकार के सरकारी रिकॉर्ड को खंगाला. रिकॉर्ड इस बात की पुष्टि करता है कि अहीरवाल क्षेत्र में प्रति परिवार ज़मीन की दर हरियाणा के बाक़ी इलाक़ों से कम है.

अहीरवाल में पूरी तरह से खेती पर निर्भर परिवार बहुत कम है

दरअसल पानी की क़िल्लत और कम ज़मीन होने के कारण अहीरवाल क्षेत्र के लोग खेती के अलावा दूसरेव्यवसायों में अधिक हैं. यहाँ के लोग नौकरी-पेशा में अधिक विश्वास रखतें हैं. इसके पीछे एक बड़ा कारण अहीरवाल काऔद्योगीकरण भी है. गुरुग्राम और रेवाड़ी जिलें के कई क्षेत्र ओद्योगिक हब के रूप में बनकर उभरे हैं. जहाँ लगभग पूरा गुडगाँव ज़िला एक आधुनिक शहर में बदल गया वहीं रेवाड़ी ज़िले के बावल और धारूहेड़ा जैसे कस्बों में बड़ी- बड़ी कम्पनियां लग गई हैं। इसलिए लोग खेती छोड़कर प्राइवेट धंधो की तरफ़ ज़्यादा जा रहे हैं. यहाँ लगभग परिवारों में खेती आमदनी का दूसरा साधन बन गई है, मुख्य कमाई नौकरी पेशे से आ रही है.

अहीरवाल में भूमिगत जल की भारी क़िल्लत होना

महेंद्रगढ़ ज़िले के गांव बुडीन निवासी पियूष बताते है कि, “ मेरे गाँव में 80 प्रतिशत कुओं का पानी सूख चूका है. गाँव में केवल एक तिहाई खेती की ही सिंचाई हो पाती है बाक़ी सब बारिश पर निर्भर है. लोगों ने गेहूँ बोना छोड़ दिया है। पियूष ने ये भी बताया कि उनके इलाक़े में कहीं- कहीं नहरें तो आई मगर उनमे पानी समय पर नहीं आता. लोग अपने एक कुए से नाली दबाकर दूर- दूर तक खेतों में पानी ले जाने को मज़बूर हैं। ज़िला रेवाड़ी के गाँव कुंडल निवासी बिक्रम सिंह 4 एकड़ की खेती करतें हैं. उन्होंने गाँव सवेरा को बताया कि, “हमारे गाँव में ऐसे – ऐसे किसान हैं जो 2-3 बार बोरिंग कर चुके हैं मगर कुए में पानी नहीं लगा. जिसके यहाँ लगा भी है उसका 1-2 साल के अंदर सूख गया. हम खेती करें तो भी मरे न करे तो भी मरे। रेवाड़ी के ही गाँव टिंट के रहने वाले रामकिशन के पास बोरिंग मशीन है. वो कहते हैं कि, “एक बार बोरिंग करवाने का ख़र्च लगभग 1 लाख रूपए आता है। ऊपर से डार्क ज़ोन होने की वजह से कुएं के लिए नया बिजली कनेक्शन नहीं मिलता. किसी का ठप हुए कुएं का कनेक्शन आप अपने नाम करवा सकतें हैं. उसके लिए भी लोग मनमाना पैसा वसूलतें हैं क्योंकि नए कनेक्शन न मिलने के कारण पुराना कनेक्शन ख़रीदना लोगों की मज़बूरी है। वैसे तो हरियाणा के लगभग सभी ज़िलों में भूमिगत जल का स्तर लगातार तेज़ी से गिर रहा है. साल 2017 में आई राज्य सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा के कुल 128 ब्लॉक  में से 78 ब्लॉक “डार्क ज़ोन” की श्रेणी में चिन्हित किए गए हैं. डार्क ज़ोन उस इलाक़े को कहाँ जाता है जहाँ 100 प्रतिशत से भी अधिक भूमिगत जल का दोहन हो रहा हो.

अहीरवाल के तीनों ज़िलों को मिलाकर यहाँ 14 ब्लॉक पड़ते हैं. इन 14 ब्लॉक्स में सेज़िला रेवाड़ी के जाटूसाना ब्लॉक को छोड़कर बाक़ी सभी 13 ब्लॉक्स डार्क ज़ोन की श्रेणी में आते हैं. केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक़ इन 13 ब्लॉक्स में भूमिगत जलस्तर काफ़ी तेजी से नीचे जा रहा है और यहाँ तुरंत जल संरक्षण पर काम करने की आवश्यकता है।

अहीरवाल में किसान यूनियनों का मज़बूत न होना

भारतीय किसान यूनियन (चढुनी) के ज़िला प्रधान समय सिंह कहतें हैं, “ मैं साल 2010 से गुरनाम सिंह चढुनी जी की किसान यूनियन से जुड़ा हुआ था और उस समय जाटूसाना ब्लॉक का प्रधान था. हमने ख़ूब कोशिश की अहीरवाल के किसानों को जोड़ने की मगर यहाँ के नेता राव इंद्रजीत सिंह के प्रभाव के कारण लोग किसी भी तरह से उनके ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाते. उसके बाद हमारी यूनियन एक तरीके से निष्क्रिय हो गई। समय सिंह ने ये भी बताया कि देशभर में किसान आन्दोलन की शुरुआत के बाद उन्होनें  दोबारा से अहीरवाल में किसान यूनियन को सक्रिय किया है. अब उनके संगठन का विस्तार हो रहा है और उन्होनें लगभग 50 लोगों की एक सक्रीय टीम तैयार कर ली है जो किसानों के मुद्दों पर लगातार आवाज़ उठा रही है। जय किसान आन्दोलन की रेवाड़ी इकाई से जुड़े राजबीर सिंह का कहना है कि, “अहीरवाल में कभी भी किसानों के नाम पर राजनीती नहीं हुई. यहाँ से चौधरी छोटू राम या चौधरी देवी लाल जैसे किसान नेता भी नहीं निकले. यहाँ तो सामंती व्यवस्था है जिसमें रामपुर हाउस पहले भी राज करता था और आज भी कर रहा है। राजबीर ने आगे जोड़ते हुए कहा कि, “2014 में मोदी लहर के दौरान समूचे देश ने सत्ता परिवर्तन किया था मगर अहीरवाल ने नहीं. यहाँ सिर्फ़ पार्टी और झंड़े बदले चेहरे आज भी वही है. जबतक इस इलाक़े के लोग रामपुर हाउस की सामंती व्यवस्था को नहीं तोड़ते, अहीरवाल का विकास नहीं हो सकता। गाँव राजपुरा से किसान रोहतास सिंह कहते हैं कि, “ हमारे यहाँ किसान यूनियनें बिलकुल भी सक्रीय नहीं है. यूनियनों में चाहिए पैसा, कम जोत होने के कारण यहाँ के किसानों के पास इतना पैसा नहीं है कि वो यूनियन को दे सकें। किसान यूनियनों के मज़बूत न होने के कारण अहीरवाल के किसानों तक कृषि कानूनों का केवल वही पक्ष पहुंचा है जो सरकार पहुँचाना चाहती है. अधिकतर किसानों को इन कृषि कानूनों के बारे में पूरी जानकारी ही नहीं है।  

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