ईश्वर द्वारा मानव को दिया हुआ अनमोल उपहार है “मां” –आनन्द मुनि

माता-पिता की छाया में ही जीवन संवरता है। माता-पिता, वे निःस्वार्थ भावना की मूर्ति हैं, अपनी संतान को ममता, त्याग, परोपकार, स्नेह, जीवन जीने की कला सिखाते हैं। इन दो स्तंभों पर भारतीय संस्कृति मजबूती से स्थिर है। यही दोनों भारतीय संस्कृति के ध्रुव हैं। माँ इस जगत का सबसे सुंदर शब्द है। इसमें वात्सल्य, माया, अपनापन, स्नेह, आकाश के समान विशाल मन, सागर समान अंतःकरण, इन सबका संगम ही है। उसके मन की विशालता, अंतःकरण की करुणा मापना आसान नहीं है।यह बात आज स्थानीय छोटी बजारी स्थित जैन स्थानक परिसर उपस्थित श्रद्धालुओं को इन दिनों नगर प्रवास पर पधारे उप प्रवर्तक महाश्रवण पंडित रत्न आनंद मुनि तथा प्रवचन दिवाकर दीपेश मुनि ने बताई। मुनियों ने बताया कि कहा कि परमेश्वर की निश्छल भक्ति का अर्थ ही माँ है। ईश्वर का रूप कैसा है, यह माँ का रूप देखकर जाना जा सकता है। ईश्वर के असंख्य रूप माँ की आँखों में झलकते हैं। वेद वाक्य के अनुसार प्रथम नमस्कार माँ को करना चाहिए। सारे संसार का प्रेम माँ रूपी शब्द में व्यक्त कर सकते हैं। माँ को देखने के लिए भी दृष्टि चाहिए होती है। आंखें  होते हुए भी मां को न देख सकने वाले बहुतायत में होते हैं। ईश्वर का दिव्य स्वरूप एक बार देख सकते हैं, मगर माँ के विशाल मन की थाह लेने के लिए बड़ी दिव्य दृष्टि लगती है। माँ यानी ईश्वर द्वारा मानव को दिया हुआ अनमोल उपहार।पिता हमारे जीवन का सही अर्थों में भाग्य-विधाता है। जीवन को योग्य दिशा दिखलाने वाला महत्वपूर्ण कार्य वह सतत करता है। कभी गंभीर, कभी हँसमुख,मन ही मन स्थिति को समझकर पारिवारिक संकटों से जूझने वाले पिता क्या और कितना सहन करते होंगे, इसकी कल्पना करना आसान नहीं है। माता-पिता व संतान का नाता पवित्र है। माता-पिता को ही प्रथम गुरु समझा जाता है। माता-पिता ही जीवन का मार्ग दिखलाते हैं। माता-पिता के अनंत उपकार संतान पर रहते हैं। जग में सब कुछ दोबारा मिल जाता है, लेकिन माता-पिता नहीं मिलते। माता-पिता की सेवा और उनकी आज्ञा पालन से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। पिता-पुत्र संबंधों का सबसे उदात्त स्वरूप राम और दशरथ के उदाहरण से मिलता है। पिता की आज्ञा को सर्वोच्च कर्तव्य मानना और उसके लिए स्वयं के हित और सुख का बलिदान कर देना राम के गुणों में सबसे बड़ा गुण माना जाता है और इस आदर्श ने करोड़ों भारतीयों को इस मर्यादा के पालन की प्रेरणा दी है। प्रवचन दिवाकर दीपेश मुनि जी ने बताया कि आगामी 10 जनवरी को जैन समाधि स्थल गुरु मंदिर में 9:30 से 11:30 तक गुरु गुण कीर्तन का आयोजन किया जाएगा और उसके बाद भंडारे  के रूप में प्रसाद  वितरित किया जाएगा।समस्त कार्यक्रम आचार्य रघुनाथ जी महाराज मेमोरियल धर्मार्थ ट्रस्ट के तत्वावधान में आयोजित किया जाएगा

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