रणघोष अपडेट. देशभर से
बीजेपी नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 2014 में वाराणसी से लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने को लेकर कहा था कि ‘मुझे गंगा मैया ने बुलाया है’ तो गंगा की सफाई और स्वच्छता को लेकर बड़ी उम्मीदें जगी थीं। लेकिन क्या ऐसा हुआ? मोदी सरकार ने ‘नमामि गंगे’ परियोजना शुरू भी की। लेकिन अब बीजेपी के ही सांसद ने तो कम से कम गंगा की सफाई और स्वच्छता की बखिया उधेड़ दी है। बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने गंगा में गंदे पानी के कारण मछलियों के मरने का वीडियो साझा करते हुए ‘नमामि गंगे’ परियोजना पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने पूछा है कि नमामि गंगे पर 20,000 करोड़ का बजट बना। 11,000 करोड़ खर्च के बावजूद प्रदूषण क्यों?क्या अपनी ही पार्टी के सांसद के सवाल का मोदी सरकार जवाब देगी? वैसे यह कहना मुश्किल लगता है कि सरकार जवाब देगी। लेकिन वरुण गांधी ने जो वीडियो साझा किया है उसमें पानी गंदा दिखता है और बहुत सारी मछलियाँ मरी हुई दिखती हैं। उस वीडियो में एक शख्स बोलते सुना जा सकता है कि ‘जो बदबू कर रहा है वह ट्रीटेड (संशोधित) सीवरेज है रामनगर का। सीधे गंगा जी में जा रहा है। कहते हैं सब कि ट्रीटेड सीवरेज है। इस वीडियो को साझा करते हुए वरुण गांधी ने भी गंगा के लिए ‘माँ’ शब्द का इस्तेमाल किया है। उन्होंने कहा, “गंगा हमारे लिए सिर्फ नदी नहीं, ‘मां’ है। करोड़ों देशवासियों के जीवन, धर्म और अस्तित्व का आधार है मां गंगा…।” प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसी गंगा नदी के लिए कहा था कि ‘मुझे गंगा माँ ने बुलाया है’।तो सवाल है कि इस गंगा ‘माँ’ की हालत पहले से कितनी सुधरी है? इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले यह जान लेते हैं कि मोदी सरकार ने गंगा की स्वच्छता के लिए क्या किया है। सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण को ख़त्म करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए ‘नमामि गंगे’ नाम से एक गंगा संरक्षण मिशन को शुरू किया। यह इसलिए शुरू किया गया था कि गोमुख से लेकर हरिद्वार के सफर के दौरान गंगा 405 किलोमीटर का सफर तय करती है और इसके किनारे बसे 15 शहरों और 132 गांवों के कारण इनसे निकलने वाले कूड़ा-करकट से लेकर सीवरेज तक ने गंगा को प्रदूषित कर दिया है। इसके तहत 2017 से उत्तराखंड में गंगा की निर्मलता के लिए कोशिशें शुरू हुईं।केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गंगा नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए 2019-2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की कार्य योजना को मंजूरी दी थी। नमामि गंगे की 231 योजनाओं में गंगोत्री से शुरू होकर उत्तरप्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, बिहार और बंगाल में विभिन्न जगहों पर पानी के स्वच्छ्ता का काम किया जाना है। लेकिन इन कार्यों पर सवाल पहले से ही उठते रहे हैं। पहली बार जब नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा 2014 के बजट भाषण में ‘नमामि गंगे मिशन’ की घोषणा की गई थी, तो यह दावा किया गया था कि 2019 तक गंगा को साफ़ कर दिया जाएगा।हालाँकि, बाद में जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने साफ़ किया कि 2019 तक नदी की 80 प्रतिशत सफ़ाई हो जाएगी, लेकिन पूरी प्रक्रिया 2020 तक पूरी हो जाएगी। 2019 तक 80 प्रतिशत लक्ष्य हासिल किया गया या नहीं, यह बहस का विषय है। 2019 में एक रिपोर्ट में कहा गया था कि स्वच्छ गंगा निधि (सीजीएफ़) के तहत इकट्ठे किए गए कुल धन का तब केवल 18% ख़र्च किया गया था। 2019 की ‘द वायर’ की एक रिपोर्ट के अनुसार नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा पर कॉम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) की रिपोर्ट ने आगाह किया था कि सीजीएफ़ के तहत मिलने वाली राशि का बहुत कम हिस्सा ही ख़र्च किया गया। तब वरिष्ठ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसदीय आकलन समिति ने गंगा सफ़ाई की प्रगति पर गंभीर निराशा जताई थी और सिफ़ारिश की थी कि सरकार काम में तेज़ी लाए।