चुनाव शहर की सरकार का : धारूहेड़ा मे जेजेपी के पास मैनेजमेंट के नाम पर जुगाड़ , चल गया तो ठीक, नहीं तो जय राम जी की

रणघोष खास. वोटर की कलम


नगर पालिका धारूहेड़ा में चेयरमैन पद के जिस भी प्रत्याशी की हार- जीत तय होगी उसकी वजह एकदम अलग नजर आएगी। रेवाड़ी में प्रत्याशियों के पास मैनेजमेंट सिस्टम ठीक है तो धारूहेड़ा में जुगाड़ से काम चलाया जा रहा है। शुरूआत पहले धारूहेड़ा में जेजेपी के काम करने के तौर तरीको से करते हैं। करीब 22 हजार वोट वाली इस नगर पालिका में आधे वोट बाहर से आकर यहां रह रहे वोटरों के हैं। यानि ये वो मतदाता है जिनका आना जाना लगा रहता है। स्थानीय मतदाता ना के बराबर इधर उधर पलायन करते हैं। जाहिर है दोनों की सोच में भी बदलाव मिलेगा। जेलदार परिवार यह सोचकर चलता है कि बाहरी मतदाताओं को उनकी जरूरत इसलिए है क्योंकि वे अपने क्षेत्र में प्रभाव रखते हैं। ऐसे मतदाताओं को नौकरी या व्यवसाय के बाद सुरक्षा का ख्याल रहता है। इसलिए वे रसूक वालों के हिसाब से ज्यादा चलते हैं चाहे वो राजनीति करने वाला हो, मजबूत परिवार हो या फिर ऐसा संघर्ष शील दमदार चेहरा जो मनी एंड मसल पॉवर से अपना प्रभाव रखता हो। इसलिए यहां वोट सरकार एवं नपा द्वारा करवाए गए विकास कार्यों की वजह से कम व्यक्ति विशेष के बढ़ते घटते प्रभाव से मिलता है। इस बार के चुनाव में जेलदार परिवार से दो चेहरे मैदान में हैं। जेजेपी से राव मान सिंह एवं निर्दलीय शिवदीप।  जाहिर है इस चुनाव में पहली बार इस परिवार की  ताकत भी बिखरती नजर आएगी। जिसका फायदा तीसरे को मिलेगा। किसे मिलेगा यह 30 दिसंबर को आने वाले रजल्ट से तय हो जाएगा। इस परिवार के किसी भी सदस्य का अपना कोई बड़ा विजन नहीं है। बस एक सोच चलती आ रही है। जेलदार परिवार  से हैं सबसे ज्यादा जमीन ओर दुकाने हैं जिसमें अधिकांश किराएदार बाहर से रहने वाले हैं। आर्थिक संपन्नता को ही ये अपनी असली ताकत मानते हैं। इसी मानसिकता की वजह से राव मंजीत जेलदर राजनीति में आज तक संघर्ष करते आ रहे हैं। नहीं तो इनके बुजुर्गों का इतिहास देखे तो देश की बहुत ही नामी हस्तियों में रहा है। इस बार उन्होंने आनन फानन में अपने बेटे राव मान सिंह को जेजेपी की टिकट से चेयरमैन पद के लिए उतार दिया है। मंजीत जेलदार राजनीति में इसलिए धोखा खाते हैं कि वे चुनाव में नजर आने वाली भीड़ को अपनी समझ लेते हैं और सुबह शाम तारीफ करने वालों को अपना सच्चा हितैषी। रजल्ट के बाद जब हार-जीत का मंथन होता है तो परेशान होकर राजनीति से कुछ समय के लिए दूर हो जाते हैं। फिर अचानक चुनाव की आहट  सुनकर सक्रिय हो जाते हैं। इस बार के चुनाव में भी कुछ ऐसा ही नजारा बना हुआ है। फर्क इतना है कि जेजेपी का इस छोटे चुनाव में पहला प्रयोग है। इसलिए अगर वह कामयाब नहीं होती है तो भी वह राजनीति तोर पर फायदे मे रहेगी। उसे अपनी टीम की जमीनी ताकत समय रहते पता चल जाएगी और गलतियों से सबक लेकर आगे की रणनीति तैयार करेगी। अगर जीत मिलती है तो जाहिर है आने वाले दिनों मे इस चुनाव के सहारे  दक्षिण हरियाणा में बड़ा दांव खेलेगी और चुनाव में जुटे पदाधिकारियों का कद बड़ा होने के साथ मजबूत होगा। मौजूदा हालात की बात करें तो मंजीत जैलदार के बेटे का चुनाव कुशल प्रबंधन नीति से नहीं जुगाड़ से चल रहा है जहां उसके साथ नजर आ रहे अधिकांश में जिसका दांव चल रहा है वह अपने स्तर पर इसे शानदार अवसर मानकर अपने जुगाड़ में ही लगा हुआ है। मीडिया पैकेज की खबरों में बेशक जेजेपी यह दावा करें कि भाजपा की टीम उनके साथ है जबकि असलियत अभी ऐसा नहीं है। उनके साथ तकरीबन वो ही नजर आ रहे है जिनका देसी  जुगाड़ बना हुआ है। यह जुगाड़ कितना कामयाब हो पाता है यह रजल्ट ही बताएगा।

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