चुनाव शहर की सरकार का, पढ़िए धारूहेड़ा चेयरमैन की दावेदारी का गणित

धारूहेड़ा में मुद्दे गायब, जेलदार परिवार में बगावत, बाहरी वोटर बिगाडेंगे गणित, चार से ज्यादा निर्दलीय मैदान में उतरे


 रणघोष खास. धारूहेड़ा


नगर निकाय चुनाव में धारूहेड़ा नगर पालिका चेयरमैन की सीट भाजपा सरकार की सहयोगी पार्टी जेजेपी के खाते में के बाद तेजी से समीकरण बदल रहे हैं। भाजपा से टिकट दावेदार भाजपा युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष संदीप बोहरा ने 16 दिसंबर को निर्दलीय उम्मीदवार नामाकंन भरने का एलान किया है। वहीं जेलदार परिवार में भाजपा टिकट के ही प्रमुख दावेदार राव शिवरतन के बेटे शिवदीप राव ने टिकट नहीं मिलने पर आजाद प्रत्याशी के तौर पर उरतने का निर्णय लिया है। शिवदीप नपा से पहले गांव धारूहेड़ा के सरपंच भी रह चुके हें। वे मतदाताओं में जाना पहचाना चेहरा है। जबकि जेलदार परिवार से ही राव मंजीत सिंह के बेटे मान सिंह को जेजेपी ने टिकट दी है। यहां मजीत सिंह चर्चित चेहरा है लेकिन बेटे की पहली बार राजनीति में एंट्री हो रही है। इसी आधार पर जेलदार परिवार राजनीति में दो धड़ों में बंटा हुआ नजर आ रहा है। अगर मतदान से पहले  यह परिवार एकजुट रहता है तो मुकाबले में मजबूती के साथ बना  रहेगा नहीं तो इसका सीधा फायदा अन्य आजाद उम्मीदवारों को मिल सकता है। जिसमें खासतौर से संदीप बोहरा ज्यादा सक्रिय नजर आ रहे हैं। इसके अलावा धारूहेड़ा के पूर्व सरपंच कंवर सिंह भी मैदान में उतरने की तैयारी कर चुके हैं। कांग्रेस खेमें से ज्ञानी यादव शैक्षणिक योग्यता नहीं होने पर अपनी पत्नी राज यादव को चुनाव लड़ाने की तैयारी में जुट गए हैं। बाबूलाल लांबा सेक्टरो के वोटों को अपनी ताकत बनाकर पहले ही लड़ने का रणघोष कर चुके हैं। सोमवार को नए चेहरे के तौर पर सैनी समाज से खेमचंद सैनी भी मैदान में आ गए हैं। यहां सैनी समाज की भी अच्छी खासी वोट है। चेयरमैन सीधे बनने के निर्णय  के बाद नगर निकाय चुनाव की तस्वीर पूरी तरह से विधानसभा- लोकसभा की तरह बन गई है। इस सीट की महत्वपूर्ण बात यह है कि जेलदार परिवार पहली बार चुनाव मे बंटा हुआ नजर आ रहा है। यहां बता दें कि 21 हजार वोट वाली इस नगर पालिका में 50 प्रतिशत से ज्यादा मतदाता बाहरी वोटर के तौर पर  है। यानि जिसके पास इन मतदाताओं पर सीधी पकड़ होगी वहीं जीत की मजबूत दावेदारी में नजर आएगा। अगर जेलदार परिवार एकजुट नजर आता है तो वे पूरी तरह से मुकाबले में नजर आएंगे। बिखराव की स्थिति में उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। दूसरा कहने को भाजपा- जेजेपी गठबंधन से टिकट का बंटवारा हुआ है। जमीनी हकीकत यह है कि दोनो दलों के कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी जीतने के लिए साथ होना तो दूर आपस में संपर्क भी नहीं कर रहे हैं। ऐसा लग नहीं रहा है कि दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ रहे हो। इस सीट पर बांसवाड़ा रोड विशेष तौर से हार- जीत तय करेगा। इस रोड पर बाहरी मतदाता का करीब 8 हजार से ज्यादा वोट बैक है जिस पर सभी की नजर है। उधर संदीप बोहरा का कमजोर पक्ष यह है कि उसने चेयरमैन रहते हुए अपने 6 माह के कार्यकाल में अतिक्रमण हटाने के नाम पर रेहड़ी चालकों के खिलाफ कार्रवाई की थी। उनकी नाराजगी की कीमत उन्हें चुकानी पड़ सकती है। इसके अलावा जेलदार परिवार का कमजोर पहलु यह है कि वह आमजन से ज्यादा घुल मिल नहीं पाता है। कुल मिलाकर अब धारूहेड़ा सीट पर भी मुकाबला दिलचस्प बन चुका है जब एक उम्मीदवार एक दूसरे की कमजोरियों का खुलासा करके जीतने का प्रयास करते नजर आएंगे।

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