चुनाव शहर की सरकार का…. रणघोष की साफ सुथरी बात…..

नामाकंन भरने के बाद चुनाव नहीं लड़ने वाला सबसे खतरनाक, मतदाताओं को अलर्ट रहने की जरूरत


रणघोष खास. रेवाड़ी


नगर निकाय चुनाव में नामाकंन भरने का सिलसिला जोरों पर है। यह चुनाव छोटे स्तर का होने की वजह से आगे की राजनीति में अच्छा खासा असर डालने जा रहे हैं। नामाकंन भरने से लेकर वापसी और मतदान के दिन तक बहुत कुछ बदलता रहता है। इस बार मतदाताओं को अपने मत के प्रति बेहद जागरूक होकर नामाकंन भरने वालों के क्रिया कलाप पर भी नजर रखनी चाहिए। निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जो सामने नजर आएंगे उसमें 50 प्रतिशत टिकट नहीं मिलने की वजह से या अपनी जमीनी जनाधार की बदौलत अंतिम समय तक मतदान तक डटे रहेंगे। इसके अलावा कुछ ऐसे रहेंगे जो ऐन वक्त पर मतदान के दिन गायब हो जाएंगे या किसी के समर्थन में आ जाएंगे। ऐसे उम्मीदवारों से मतदाताओं को अलर्ट रहने की जरूरत है। ये वो उम्मीदवार होते हैँ जिनका छिपा हुआ एजेंडा होता है। ये मौका देखकर मजबूत दावेदार से भीतरखाने अपना हित साध लेते हैं। चूंकि मुकाबले में मजबूती से डटे प्रत्याशी के लिए एक- एक वोट बेहद बेशकीमती होती है। इसलिए वह ऐसे आजाद उम्मीदवार के साथ सांठगांठ कर उन्हें अपने समर्थन में ले लेते हैं। आमतौर पर यह राजनीति का वह खेल होता है जो आमजन की समझ से बाहर होता है। इसलिए मतदाताओं को ऐसे उम्मीदवार से अलर्ट रहना चाहिए जो समाजसेवा या बेहतर बदलाव के नाम पर अपना खेल करके चले जाते हैं। साफ सुथरी बात है जब चुनाव में जनसेवा के लिए उतरे हैं तो अचानक मैदान छोड़ने का मकसद क्या है। अगर हार के डर की वजह से ऐसा कर रहे हो तो राजनीति में क्यों आए। राजनीति का मतलब चुनाव में मिली हार-जीत से तय नहीं होता। दोनो ही परिस्थितियों में लड़ने वाला नेता या जनता का जनप्रतिनिधि कहलाता है।

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