ज़ीरो नंबर वाले को एडमिशन देने के फैसले के बाद भी संभावना है कि

नीट-पीजी की 1700 सीटें खाली रह सकती हैं


20 सितंबर को एक सर्कुलर के माध्यम से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एमबीबीएस उम्मीदवारों को, जिन्होंने नीट-पीजी 2023 की परीक्षा दी थी, मेडिकल कॉलेजों में बची हुई सीटों का विकल्प चुनने की अनुमति दी थी.


 रणघोष खास. सुमी सुकन्या दत्ता दी पिंट से 

नई दिल्ली: शीर्ष सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि मेडिकल कॉलेजों में बची हुई स्नातकोत्तर (पीजी) सीटों के लिए योग्यता अंक घटाकर जीरो करने के केंद्र के फैसले के बावजूद, संस्थानों में लगभग 1700 सुपर स्पेशियलिटी सीटें खाली रहने की संभावना है. 20 सितंबर को जारी एक सर्कुलर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी छात्र-छात्राओं – जो राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (पीजी ) 2023 में उपस्थित हुए थे – को डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (एमडी) में अभी भी उपलब्ध सीटों पर प्रवेश लेने की अनुमति दी थी. मंत्रालय का यह फैसला तब आया है जब मास्टर ऑफ सर्जरी (एमएस) में दाखिले के लिए दो राउंड की काउंसलिंग हो चुकी है.इससे पहले काउंसलिंग के पहले दो राउंड में पीजी सीटों पर प्रवेश के लिए कट-ऑफ प्रतिशत अनारक्षित श्रेणी के लिए 50, पीडब्लयूडी  (विकलांग व्यक्ति) श्रेणी के लिए 45 और आरक्षित श्रेणी के छात्रों के लिए 40 था.स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया था कि इस कदम का उद्देश्य मेडिकल कॉलेजों में साल दर साल खाली बच रही पीजी सीटों को भरना है. चिकित्सा शिक्षा प्रभाग में मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “पिछले महीने निर्णय के बाद, काउंसलिंग के तीसरे और कई दौर आयोजित किए गए थे. अखिल भारतीय कोटा के तहत, किसी भी छात्र ने 105 सीटों पर प्रवेश लेने में रुचि नहीं दिखाई है.”अधिकारी ने कहा, “इसके अलावा, 400 अन्य जिन्हें सीटें आवंटित की गई हैं, वे पहले दो दिनों के दौरान एडमिशन के लिए नहीं आए. हालांकि, एडमिशन कराने का समय अगले सप्ताह की शुरुआत में खत्म हो रहा है.”

अधिकारी ने कहा कि कुल मिलाकर, सभी नीट- पीजी उम्मीदवारों को बची हुई सीटों में से चुनने का विकल्प दिए जाने के बावजूद अखिल भारतीय कोटा के तहत लगभग 500 सीटें और राज्य कोटा के तहत लगभग 1200 सीटें खाली रहने की संभावना है.एक अन्य अधिकारी ने कहा, “सभी खाली सीटें नॉन क्लिनिकल ब्रांच में है.” उन्होंने कहा कि मेडिकल कॉलेजों में अंतिम लिस्ट अगले दस दिनों के भीतर संकलित होने की उम्मीद है.नॉन क्लिनिकल में ​​​​या रिसर्च सब्जेक्ट में शरीर रचना विज्ञान, जैव रसायन, शरीर विज्ञान, सूक्ष्म जीव विज्ञान और फार्माकोलॉजी शामिल हैं.ऊपर उद्धृत दूसरे अधिकारी ने कहा कि ये विषय पारंपरिक रूप से पीजी  करने में रुचि रखने वाले अधिकांश एमबीबीएस छात्रों के लिए अंतिम प्राथमिकता रहे हैं क्योंकि वे नॉन क्लिनिकल ब्रांच में कोई संभावना नहीं देखते हैं.दिप्रिंट ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव सुधांश पंत से उनकी टिप्पणियों के लिए संपर्क किया, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर विस्तार से कुछ नहीं बताया.मंत्रालय द्वारा शेयर किए गए विवरण के अनुसार, मेडिकल कॉलेजों में लगभग 49,000 एमएस औरएमडी सीटें हैं, जिनमें से कट-ऑफ प्रतिशत को 40 तक कम करने के बावजूद पिछले साल 4,400 सीटें खाली रह गईं.

‘गुणवत्ता से समझौता तर्कसंगत नहीं’

नीटी पीजी प्रतिशत को जीरो करने के सरकार के कदम पर मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिली. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन जैसे निकाय इसके समर्थन में सामने आए. हालांकि, हेल्थकेयर प्रोफेशनल के एक वर्ग ने इसका जमकर विरोध भी किया.

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सी.वी. बिरमनंदम – जिसे राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था – ने दिप्रिंट को बताया कि अगर खाली सीटें अभी भी नहीं भरी जा सकीं तो समस्या गहरी है.उन्होंने कहा, “योग्यता परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाले सभी छात्रों को पीजी सीटों पर प्रवेश लेने के लिए कहकर चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता को कम करने में मुझे कोई तर्क नजर नहीं आता.”उन्होंने कहा कि अगर सरकार मेडिकल कॉलेजों में नॉन क्लिनिकल ब्रांच के लिए संकाय बनाने के बारे में चिंतित है, तो उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए दूसरे तरीके पेश किए जाने चाहिए ताकि प्रतिभाशाली छात्रों को यह विकल्प सही लगे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *