जैन संत परम पूज्य आचार्य अतिवीर मुनिराज की चेतावनी

80 प्रतिशत बच्चे डिप्रेशन में, माता-पिता उन्हें इंसान नहीं नोटों की मशीन बनाने में लगे हैं..


रणघोष अपडेट. रेवाड़ी


विख्यात जैन संत आचार्य अतिवीर मुनिराज ने स्पष्ट तौर से अभिभावकों को आगाह करते हुए कहा कि उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए बच्चों को बेहतर  इंसान बनाने की बजाय नोट छापने की मशीन बनाने के लिए सभी सभी मर्यादाओं को दरकिनार कर दिया है। लिहाजा आज 80 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे डिप्रेशन में हैं।  इसके लिए हमारी  मौजूदा शिक्षा प्रणाली भी पूरी तरह से जिम्मेदार है। सरकार को समय रहते समझना होगा नहीं तो परिवार- समाज एवं राष्ट्र का स्वरूप इतना विकृत हो जाएगा कि उसे पहचाना मुश्किल हो जाएगा।

रेवाड़ी स्थित नसिया जी में चातुर्मास भव्य मंगल अवसर पर रणघोष से विशेष बातचीत में अतिविर मुनिराज ने मौजूदा हालात के लिए पूरी तरह बाजार में तब्दील हो चुकी शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह जिम्मेदार माना। उन्होंने कहा कि 8 वीं में होते ही बच्चों के दिलो दिमाग में अधिक से अधिक पैसा व शोहरत कमाने के रास्तों पर चलने के लिए तैयार करना शुरू कर दिया जाता है। इससे पहले शिक्षा शिक्षा व इंसानियत का रास्ता प्रशस्त करते हुए बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करती थी। आज बच्चे प्रोडक्ट नहीं मशीनों में तब्दील हो रहे हैं। स 24 घंटे उनके दिमाग में  ज्यादा से ज्यादा धन कमाने की प्रवृति ने कब्जा कर लिया हैं। इसलिए जब भी बोर्ड के परीक्षा परिणाम आते हैं नंबरों का भंयकर जाल उन्हें अपने में जकड़ लेता हैं। 90 से 99 प्रतिशत तक नंबर आ रहे हैं। हद तो जब हो रही है कि सभी विषयों में बच्चों के शत प्रतिशत नंबर आ रहे हैं यानि बच्चों में ओर सीखने और बेहतर बनने की गुंजाइश भी खत्म करते जा रहे हैं। यह सरासर बच्चों की जिंदगी को खत्म का दुस्साहस है। सरकार व शिक्षा नीति बनाने वालों को समझना होगा यह कैसे संभव है कि तीन घंटे की परीक्षा में विद्यार्थी सभी विषयों में  शत प्रतिशत नंबर प्राप्त कर ले।  ऊपर से ही बदलाव आएगा तभी बात बनेगी। माता-पिता के चाहने से कुछ होने वाला नहीं है। संपूर्ण शिक्षा प्रणाली को बदलने का समय आ चुका है। समाज में अलग अलग तरह के जो अपराध हो रहे हैं उसकी वजह ही यह बाजारू शिक्षा प्रणाली है। पहले नैतिकता का पीरियड अनिवार्य था उसे भी खत्म कर दिया। बच्चे पूरी तरह से किताबी कीड़ों में तब्दील  हो चुके हैं। गुरु शिष्यों के पवित्र संबंधों में जिस तरह गिरावट आ रही है उसकी वजह भी बच्चों को इंसान बनाने की बजाय मशीन बनाने की मानसिकता जिम्मेदार है। कमाल देखिए मशीनों को इंसान ने बनाया और इंसान ही मशीनों पर पूरी तरह से निर्भर हो गया। पहले गांव का हैडमास्टर किसी भी रास्ते से गुजरता था सभी उसके सम्मान में खड़े हो जाते थे आज स्थिति को शब्दों से भी बताना मुश्किल है। पहले की शिक्षा प्रणाली में अच्छे बुरों की पहचान थी, इंसान को परखा जाता था आज पैसो को ही शिक्षा का मुख्य आधार बना दिया। इसके लिए हम सभी जिम्मेदार है। पहले रजल्ट में पास होने की खुशी में माता- पिता बच्चों को गले लगाते थे आज सीधे नंबरों का हिसाब पूछकर गले लगाना तो दूर नंबर कैसे कम आए पर डांटना शुरू कर देते हैं। इस स्थिति में बच्चों की मनो दशा पर कितना खतरनाक प्रभाव पड़ता है यह समाज में आए दिन हो रही घटनाओं से पता चल रहा है। अभी भी समय है। इससे पहले मौजूदा शिक्षा प्रणाली पूरी तरह पतन के चरम पर पहुंच जाए हम सभी अपने स्तर पर अपने बच्चों को बेहतर इंसान बनने के संस्कारों की जडों को मजबूत करने में लग जाए। सरकार से भी उम्मीद है कि वह इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाएगी। ऐसा कर पाए तो हम परिवार- समाज एवं राष्ट्र के असल स्वरूप को बचा पाएंगे।

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