डंके की चोट पर : कांग्रेस को समझना है तो इस लेख को जरूर पढ़े

हकीकत यह है कि राहुल गांधी को अध्यक्ष बनने से रोकने के लिए खुलकर सामने आए पार्टी के जी-23


आगामी जून में जहां कांग्रेस में पूर्णकालिक अध्यक्ष के लिए चुनाव होना है तो वहीं पार्टी पांच राज्यों के चुनाव में अपनी डूबती नैया पार लगाने की कोशिश में लगी है. ऐसे समय में असंतुष्ट धड़े ‘जी-23’ समूह के कुछ नेताओं ने पार्टी को कमज़ोर बताना शुरू कर दिया है. सवाल उठ रहे हैं कि ऐन चुनाव से पहले उनका एकजुट होना क्या दबाव बनाने की रणनीति है.


 रणघोष खास. विशाल जायसवाल


पिछले साल अगस्त में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाने और संगठन में ऊपर से लेकर नीचे तक बदलाव की मांग करने वाले पार्टी के असंतुष्ट धड़े, जिन्हें जी-23 कहा जाता है, के कुछ नेताओं ने बीते शनिवार को जम्मू कश्मीर में एक मंच पर इकट्ठा होकर पहली बार सार्वजनिक तौर पर पार्टी पर जोरदार हमला बोला और उसे कमजोर करार दिया। इस पर जहां पार्टी ने उन्हें पांच चुनावी राज्यों में प्रचार की नसीहत दे डाली तो जी-23 के कुछ अन्य नेताओं ने जम्मू कश्मीर में इकट्ठा होने वाले सात नेताओं से दूरी बनानी शुरू कर दी। दरअसल जम्मू कश्मीर में एक गैर-सरकारी संगठन गांधी ग्लोबल परिवार ने शांति सम्मेलन नाम का एक गैर-राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित किया था। इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले जी-23 के प्रमुख नेताओं में से जम्मू कश्मीर से आने वाले गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राज बब्बर और आनंद शर्मा थे। इन नेताओं के एक मंच पर इकट्ठा होने पर राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई कहते है, ‘कांग्रेस की अंदरूनी रस्साकसी अब चरमसीमा पर आ गई है और जो असंतुष्ट नेता हैं, उन्हें लग रहा है कि यही सही समय है, क्योंकि चुनावी राज्यों में कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। वह कहते हैं, ‘सी-वोटर के सर्वे में दिखाया गया कि केरल में कांग्रेस हार रही है, असम में भी नहीं जीत रहे हैं और तमिलनाडु में गठबंधन जीतती है तो जीत का श्रेय डीएमके को जाएगा तो इस स्थिति में कांग्रेस कमजोर है और राहुल गांधी को अपने आपको पूर्ण कांग्रेस अध्यक्ष स्थापित करने में अड़चन होगी. उसी दृष्टि से यह सारी कार्रवाई हो रही है और उन्हें किसी भी सूरत में राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनने से रोकना है। वह कहते हैं कि जी-23 अब बचा भी नहीं है, उसमें असंतुष्टों की संख्या घटकर 7-8 रह गई है। बता दें कि जम्मू में हुई जी-23 नेताओं की बैठक से खुद को अलग करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम. वीरप्पा मोइली ने सोमवार को पार्टी के अंदरूनी मतभेद सार्वजनिक होने पर चिंता जाहिर करते हुए राहुल गांधी के फिर से पार्टी प्रमुख बनने का समर्थन किया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री मोइली पार्टी के उन 23 नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने पिछले वर्ष अगस्त में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पूर्णकालिक नेतृत्व सुनिश्चित करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा कि यह असंतुष्टों की बैठक नहीं है. हम (जी-23 के कुछ नेता) इसका हिस्सा नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘यह सोनिया गांधी, राहुल गांधी के नेतृत्व के खिलाफ नहीं था. हम सब नेतृत्व के साथ हैं. हम कांग्रेस के साथ हैं. हम उनके अध्यक्ष बनने के खिलाफ नहीं हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि राहुल गांधी चुनाव प्रक्रिया के जरिये पार्टी के प्रमुख के तौर पर वापसी कर सकते हैं. कुछ कांग्रेसी नेताओं द्वारा कांग्रेस को कमजोर बताने पर मोइली ने कहा कि जब कांग्रेस जीतना शुरू करेगी तो भाजपा कमजोर लगेगी. ऐसा हमेशा होता है। जी-23 के कुछ नेताओं द्वारा पार्टी को कमजोर बताने पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी सवाल उठाती हैं। वह कहती हैं, ‘उन्होंने जितने भी मुद्दे उठाए थे, वे सभी वाजिब थे, जिनकी सुनवाई नहीं हो रही थी. लेकिन अब चुनाव (कांग्रेस में आंतरिक चुनाव) की घोषणा हो जाने के बाद यह ऐलान करना कि कांग्रेस कमजोर है और उसे अंडरलाइन करना सही नहीं है. यह समझ में नहीं आ रहा है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? यह बारगेनिंग की चेष्टा हो सकती है या फ्रस्टेशन हो कि इतना समय बीत गया है लेकिन कुछ हो नहीं रहा है। चौधरी की बातों से सहमति जताते हुए किदवई कहते हैं, ‘किसी भी राजनीतिक दल में जब निजाम बदलता है या कोई नया अध्यक्ष आता है तब ये सब चीजें होती हैं. ये सब पुराने निजाम के लोग हैं, सोनिया गांधी का निजाम था, उससे पहले केसरी जी का था और उससे पहले पीवी नरसिंहा राव का था।  अब निजाम का बदलाव हो रहा है और ये उसका विरोध कर रहे हैं और उसको सार्वजनिक कर पार्टी को कमजोर कर रहे हैं.’वहीं, वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश भी सार्वजनिक मंच से पार्टी को कमजोर बताने की असंतुष्ट नेताओं की रणनीति से सहमत नहीं नजर आते हैं। वह कहते हैं, ‘अगर उनकी (असंतुष्ट नेताओं) कोई वास्तविक चिंता या सरोकार होता कि पार्टी बुरे दौर में है तो वे एक आइडिया या रणनीति लेकर आते लेकिन वो कह रहे हैं कि इनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है, इनको पार्टी का अध्यक्ष बना देना चाहिए, इनको कार्यकारिणी में रखना चाहिए. मुझे नहीं लगता बहुत वास्तविक तरीके से विरोध हो रहा है। वह कहते हैं, ‘संकट यह है कि पुराने दौर के नेता राहुल गांधी को उतना कारगर मानते नहीं हैं. राहुल अगर दूसरी तरह के नेता होते तो शायद वे स्वीकार कर लेते, लेकिन उनको लगता है कि मोदी के मुकाबले राहुल सही नहीं है क्योंकि वे सज्जन आदमी हैं और शराफत की बातें करते हैं, जबकि भारत अभी उस तरह का मुल्क है नहीं जो इस तरह की बातें सुनें. यह बात तो सही है कि वे बुद्धिजीवी की तरह राजनीतिक टिप्पणियां करते हैं, लेकिन उनके पास आश्वस्त करने वाली कोई राजनीतिक पहल नहीं है। उर्मिलेश आगे कहते हैं, ‘हालांकि, जो लोग विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि उनको तरजीह नहीं दी जा रही है, उनका सही उपयोग नहीं हो रहा है तो ये वही लोग हैं जो 30 साल से कांग्रेस का उपयोग कर रहे हैं. ये ऐसे लोग हैं जो हमेशा मंत्री रहे, हमेशा संसद में रहे, हमेशा महासचिव या सचिव रहे, राज्यों के प्रभारी रहे औऱ कोई ऐसी कैबिनेट नहीं रही, जिसमें वे मंत्री नहीं रहे. हालांकि, उनका खुद का कोई जनाधार नहीं है.’ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या असंतुष्ट नेताओं को यह आशंका है कि लोकतांत्रिक और पारदर्शी तरीके से चुनाव की उनकी मांगों के विपरित पार्टी दिखावटी चुनाव कराकर राहुल गांधी को अध्यक्ष बना देगी और यह चुनाव से पहले उनकी दबाव बनाने की रणनीति है.

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