डंके की चोट पर : क्या मोदी को पटेल से बड़ा दिखाना चाहती है बीजेपी?

रणघोष खास. देशभर से 

जो बीजेपी कांग्रेस को यह कह कर कोसती रही है कि उसने सरदार बल्लभ भाई पटेल के साथ न्याय नहीं किया, उन्हें जो स्थान मिलना चाहिए था नहीं दिया, उसी बीजेपी ने गुजरात के मोटेरा स्थित सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बद़ल कर नरेंद्र मोदी के नाम पर कर दिया है। ऐसा क्यों किया गया ये समझे के परे हैं। एक, पटेल के नाम के स्टेडियम का नाम बदलने की ज़रूरत क्या थी। और मोदी के नाम से किसी स्टेडियम का नाम रखना ही था तो किसी और स्टेडियम का नाम बदल देते। क्या ये बदलाव पटेल का अपमान नहीं है।

नेहरू बनाम पटेल

लेकिन अहम सवाल स्टेडियम का नाम पटेल की जगह मोदी करने पर है। बीजेपी और ख़ास कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आने के पहले से ही पटेल को उचित स्थान नहीं देने के मुद्दे पर कांग्रेस के घेरते रहे हैं। केंद्र की सत्ता में आने के बाद बीजेपी का हमला और तेज़ हो गया। उसने बहुत ही सुनियोजित ढंग से यह नैरेटिव गढा कि देश की तमाम समस्याओं के लिए जवाहरलाल नेहरू ज़िम्मेदार हैं और यदि पहले प्रधानमंत्री पटेल बने होते तो देश की तसवीर कुछ और होती।

नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर 2018 में सोमनाथ मंदिर के एक कार्यक्रम में जवाहरलाल नेहरू का नाम लिए बग़ैर उन पर ज़ोरदार हमला बोला था। इसके अलावा आम चुनाव के ठीक पहले दिल्ली में बीजेपी कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि यदि देश के प्रथम प्रधानमंत्री सरदार पटेल हुए होते तो यह स्थिति नहीं हुई होती, देश की तसवीर कुछ और हुई होती। वे उस कार्यक्रम में आतंकवाद की बात कर रहे थे।

पटेल की प्रतिमा

इसी तरह मोदी ने 3,000 करोड़ रुपए खर्च कर सरदार पटेल की मूर्ति यूनिटी स्टैच्यू बनवाई। सरकार ने उसके पहले जो विज्ञापन टेलीविज़न चैनलों पर चलाया था, उसमें साफ कहा गया था कि यह काम तो बहुत पहले हो जाना चाहिए था, अब तक क्यों नहीं हुआ था।

पटेल की विरासत हथियाने की कोशिश

इसके साथ ही बीजेपी पटेल की विरासत को हथियाना चाहती है। वह यह स्थापित करना चाहती है कि सरदार दरअसल आरएसएस और बीजेपी के नज़दीक थे। ज़ाहिर है, इसके राजनीतिक फ़ायदे हैं। पर इतिहास खँगालने से लगता है कि सच यह नहीं है। ‘नेहरू अभिनंदन ग्रंथ – अ बर्थडे बुक’ में नेहरू के नाम पटेल की लिखी एक चिट्ठी छपी थी। मौक़ा था नेहरू के 60वें जन्मदिन पर आयोजित एक समारोह का। 14 अक्टूबर 1949 को लिखी चिट्ठी पटेल और नेहरू के रिश्तों पर रोशनी डालती है। इससे यह भी साफ़ होता है कि पटेल देश के पहले प्रधानमन्त्री के बारे में क्या सोचते थे। जो लोग यह साबित करने में लगे हैं कि नेहरू और पटेल में नहीं बनती थी या यह कि पटेल की उपेक्षा हुई और कांग्रेस या सरकार में उन्हें वह स्थान नहीं मिला, जिसके वे हक़दार थे, यह उनके लिए एक जवाब हो सकता है।पटेल ने लिखा: “एक साथ इतनी नज़दीकी से काम करने और कई क्षेत्रों में एकसाथ काम करने की वज़ह से हम एक-दूसरे को बहुत ही पसन्द करते हैं। जैसे-जैसे समय बीतता गया, एक-दूसरे के प्रति हमारा स्नेह बढ़ता गया, लोगों के लिए यह समझना असम्भव है कि जब हम अलग रहते हैं और समस्याओं को एकसाथ बैठ कर निपटारा नहीं कर रहे होते हैं, तब एक-दूसरे को कितना याद करते हैं।”

नया नैरेटिव गढ़ने की कोशिश

बीजेपी कश्मीर के मुद्दे पर भी नेहरू को घेरती है और यह बार-बार कहती आई है यदि पटेल नहीं रहे होते तो जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं हुआ होता। उसने यह नैरेटिव भी गढ़ने की कोशिश की है कि नेहरू ने पटेल की नहीं सुनी वर्ना पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर भी भारत का ही अंग होता। इसी तरह बीजेपी अनुच्छेद 370 पर यह नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश करती रही है कि पटेल यह अनुच्छेद नहीं चाहते थे और नेहरू की वजह से ऐसा किया गया था। आरएसएस-बीजेपी के इस दावे में कि 370 के लिए नेहरू ज़िम्मेदार हैं और सरदार पटेल ने इसका विरोध किया था, इसमें रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है। इसके विपरीत तमाम दस्तावेज़ इस बात की तसदीक करते हैं कि सरदार पटेल उस संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा थे, जिनके तहत अनुच्छेद 370 को भारत के संविधान में जोड़ा गया।

पटेल से बड़े मोदी!

अब बीजेपी ने उसी सरदार पटेल के नाम पर बने स्टेडियम का नाम बदल कर नरेंद्र मोदी के नाम पर कर दिया है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसके पीछे सोच मोदी की ‘लार्जर दैन लाइफ़ इमेज’ बनाने की है। चूंकि यह सबसे बड़ा स्टेडियम है, इसलिए उसके साथ मोदी का नाम जुड़ना सम्मान की बात है।लेकिन सवाल यह है कि इससे क्या संकेत नहीं जाता है कि मोदी खुद को सरदार पटेल से बड़ा दिखाने की कोशिश में है। यदि ऐसा होता है तो यह बीजेपी की अब तक की रणनीति में फिट नहीं बैठता है।

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